नई दिल्ली. 30 दिसंबर को केन्या के उत्तरी हिस्से में स्थित मुकुकू गांव में रॉकेट के 500 किलोग्राम वजनी मलबे के टुकड़े गिरने से हड़कंप मच गया। केन्या स्पेस एजेंसी (KSA) ने पुष्टि की है कि यह मलबा एक लॉन्च वाहन का हिस्सा है, जो चरणबद्ध तरीके से पृथ्वी पर गिरा। आठ फीट व्यास वाली धातु की इस रिंग को स्थानीय प्रशासन ने घटनास्थल को सुरक्षित कर इकट्ठा किया। राहत की बात यह है कि घटना में कोई हताहत नहीं हुआ।
KSA के मुताबिक, लॉन्च के दौरान रॉकेट के विभिन्न हिस्से अलग होकर पृथ्वी पर गिरते हैं। हालांकि केन्या में ऐसी घटना पहली बार हुई है, लेकिन अंतरिक्ष मलबे की समस्या वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ रही है। पिछले साल अमेरिका में NASA के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था, जब फ्लोरिडा में एक घर पर रॉकेट का मलबा गिरा था। इस घटना ने "केसलर सिंड्रोम" के संभावित खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया है। यह सिद्धांत 1978 में NASA वैज्ञानिक डोनाल्ड जे. केसलर ने पेश किया था। उनके अनुसार, अगर पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में वस्तुओं का घनत्व एक निश्चित सीमा से अधिक हो गया, तो टकराव की श्रृंखला शुरू हो सकती है। इससे कक्षा मानव उपयोग के लिए अयोग्य हो जाएगी और अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर गहरा असर पड़ेगा।
डॉ. विष्णु रेड्डी, एक ग्रह विज्ञान विशेषज्ञ, ने कहा कि हाल के वर्षों में अंतरिक्ष में लॉन्च की संख्या में तेज़ी आई है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह जारी रहा, तो केसलर सिंड्रोम की स्थिति जल्द ही वास्तविकता बन सकती है। NASA के अनुसार, वर्तमान में LEO में लगभग 6,000 टन मलबा मौजूद है, और निजी कंपनियों की भागीदारी के साथ यह समस्या और गंभीर हो सकती है।
यह घटना वैश्विक समुदाय को इस बात पर विचार करने के लिए मजबूर करती है कि अंतरिक्ष मलबे की समस्या को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण और पृथ्वी की कक्षाओं का उपयोग असंभव हो सकता है।