सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मंदिरों में वीआईपी दर्शन पर निर्देश देना हमारा अधिकार नहीं, खारिज की जनहित याचिका

सुप्रीम कोर्ट: मंदिरों में वीआईपी दर्शन पर निर्देश देना हमारा अधिकार नहीं, खारिज की जनहित याचिका

प्रेषित समय :14:45:15 PM / Fri, Jan 31st, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. मंदिरों में वीआईपी दर्शन के लिए शुल्क वसूलने और खास वर्ग के लोगों को तरजीह देने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह हमारे अधिकार क्षेत्र का मामला नहीं है. यह मुद्दा मंदिर प्रबंधन और सोसाइटी के निर्णय से जुड़ा है.

सुप्रीम कोर्ट में वीआईपी दर्शन के खिलाफ दायर याचिका पर शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने सुनवाई से इनकार कर दिया. पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय लेना सोसाइटी और मंदिर प्रबंधन का काम है और अदालत कोई निर्देश नहीं दे सकती. हमारा मानना है कि मंदिर में कोई विशेष व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन यह अदालत निर्देश जारी नहीं कर सकती.

कोर्ट ने कहा कि हमें नहीं लगता कि यह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए उपयुक्त मामला है. हम स्पष्ट करते हैं कि याचिका खारिज होने से उपयुक्त प्राधिकारियों को आवश्यकतानुसार उचित कार्रवाई करने से नहीं रोका जाएगा.

वीआईपी दर्शन की प्रथा मनमानी

सुप्रीम कोर्ट में वीआईपी दर्शन को लेकर वृंदावन स्थित श्री राधा मदन मोहन मंदिर के सेवायत विजय किशोर गोस्वामी ने याचिका दायर की है. कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील आकाश वशिष्ठ ने कहा कि वीआईपी दर्शन पूरी तरह से मनमानी प्रथा है. इसके लिए कुछ मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाने की जरूरत है. याचिका में कहा गया है कि वीआईपी दर्शन की प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में निहित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह शुल्क वहन करने में असमर्थ भक्तों के साथ भेदभाव है.

अतिरिक्त शुल्क को लेकर जताई गई चिंता

याचिका में मंदिर में देवताओं के पास पहुंचकर पूजा करने के लिए लगाए गए अतिरिक्त शुल्क पर भी चिंता जताई गई है. याचिका में कहा गया है कि विशेष दर्शन सुविधा के लिए 400 से 500 रुपये तक शुल्क वसूल किया जाता है. इससे संपन्न श्रद्धालु और वंचित वर्ग के बीच विभाजन हो जाता है.

सभी राज्यों को दिए जाएं निर्देश

याचिका में कहा गया कि गृह मंत्रालय को अवगत कराने के बाद भी केवल आंध्र प्रदेश को निर्देश जारी किए गए. जबकि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों को कोई निर्देश नहीं दिया गया. याचिका में अतिरिक्त शुल्क लगाने को समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के सांविधानिक अधिकारों का उल्लंघन घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई.

याचिका में यह मांगें भी की गईं

मंदिर परिसरों में सभी श्रद्धालुओं से एक सा व्यवहार करने और मंदिरों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए केंद्र द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने के निर्देश देने की मांग की गई है. इसके अलावा देशभर के मंदिरों के प्रबंधन और प्रशासन की देखरेख के लिए एक राष्ट्रीय बोर्ड गठित करने की भी मांग की गई है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-