उच्च शिक्षा में केंद्रीकरण, व्यवसायीकरण एवं साम्प्रदायिकरण के बढ़ावा का विरोध 

उच्च शिक्षा में केंद्रीकरण, व्यवसायीकरण एवं साम्प्रदायिकरण के बढ़ावा का विरोध 

प्रेषित समय :19:20:48 PM / Fri, Apr 4th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अनिल मिश्र/ पटना

बिहार प्रदेश के धार्मिक नगरी गया के स्थानीय टावर चौक पर केंद्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा में केंद्रीकरण, व्यवसायीकरण एवं साम्प्रदायिकरण का बढावा देकर छात्रों के सुनहरे भविष्य को बिगाड़ने के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का  पुतला दहन कर कॉंग्रेस पार्टी के नेताओं कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया.
      
इस अवसर पर उपस्थित बिहार प्रदेश कॉंग्रेस कमिटी के प्रदेश प्रतिनिधि सह प्रवक्ता प्रो विजय कुमार मिट्ठू,  पूर्व विधायक मोहम्मद खान अली,  प्रो(डॉ) अरुण कुमार प्रसाद, डॉ मदन कुमार सिन्हा,  बाबूलाल प्रसाद सिंह, राम प्रमोद सिंह, विपिन बिहारी सिन्हा, अमित कुमार सिंह उर्फ रिंकू सिंह युवा कॉंग्रेस अध्यक्ष विशाल कुमार, मोहम्मद शमीम, प्रो विश्वनाथ कुमार,  डॉ अनिल कुमार सिन्हा, टिंकू गिरी,आदि ने कहा  नई उच्च शिक्षा नीति ( एन ई पी) 2020 के लागू होने के बाद केन्द्र सरकार केवल तीन प्रमुख ऐजेंडा केंद्रीकरण, व्यवसायीकरण, और साम्प्रदायिकरण को बढावा देने का काम कर रही है.

इन सभी   नेताओं ने कहा कि पिछले दशक में सरकार की पहचान अनियंत्रित केंद्रीकरण के रूप में रही है,  जिसका  शिक्षा के क्षेत्र में बहुत  हानिकारक प्रभाव  देखने को मिला है. उदाहरण के तौर पर केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ( सी ए बी ई) की बैठक सितंबर 2019 से नहीं  बुलाई गई,  इसके साथ ही एन ई पी 2020 को लागू करते समय भी  राज्य सरकारों से एक  बार भी परामर्श नहीं  लिया गया. आज देश की कई  राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार में इस मुद्दे पर खींच, तान जारी है.

इन सभी नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण कर  गरीबो को सार्वजानिक शिक्षा से बाहर कर रही है और  उन्हें  मंहगे निजी  स्कूलों में  धकेला जा रहा है,  सरकार ने उच्च शिक्षा में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ब्लाक अनुदान प्रणाली के स्थान पर उच्च शिक्षा वित्तपोषण ऐजेंसि की शुरुआत की है जिसे  शिक्षा में निजी  निवेश बढ़ा है.

इन सभी नेताओं ने एक स्वर कहा कि शिक्षा में साम्प्रदायिकता का  समावेश कर भारतीय इतिहास के कुछ महत्त्वपूर्ण हिस्सों को पाठ्य पुस्तकों से हटाने की कोशिश की गई. जैसे महात्मा गांधी की हत्या, तथा मुगल भारत से संबंधित अनुभव,  इसके साथ ही भारतीय संविधान की प्रस्तावना को भी कुछ समय के लिए पाठ्य पुस्तकों से हटा दिया गया था,  जिसे  बाद  में सार्वजानिक  विरोध के बाद पुनः शामिल किया गया.

नेताओं ने कहा कि केन्द्र सरकार उच्च शिक्षण संस्थानों में एक  खास  विचारधारा का वर्चस्व को बढावा देते हुए देश के आई आई टी,  आई आई एम, केन्द्रीय विश्र्वविद्यालय में सरकार अपने  अनुकूल  विचारधारा वाले  लोगों का  नेतृत्व पदों पर नियुक्ति कर रही है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-