कुंडली के दूसरे भाव में धन का, ग्यारहवें भाव से लाभ का और छठे भाव से कर्ज का पता चलता

कुंडली के दूसरे भाव में धन का, ग्यारहवें भाव से लाभ का और छठे भाव से कर्ज का पता चलता

प्रेषित समय :20:12:37 PM / Thu, Apr 24th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

दूसरे भाव में धन का, ग्यारहवें भाव से लाभ का और छठे भाव से कर्ज का पता चलता है. 
दूसरे भाव और लाभ भाव का अगर आपस में परिवर्तन हो यानी धन का स्वामी लाभ में और लाभ का स्वामी धन में बैठा हो तो ये लक्ष्मी योग बनता है. ऐसा व्यक्ति धनवान होता है लेकिन अगर छठे भाव की स्थिति कमजोर हुई तो उसे नौकरी, कर्ज संबंधी समस्या रहती है. 

1 - अगर किसी कुंडली में नीच का पाप ग्रह छठे भाव में हो और लग्नेश दुर्बल हो तो ऐसा व्यक्ति कर्ज का शिकार होता है. अगर मारकेश छठे भाव में सम्बन्ध बना रहा तो तो मुमकिन है कि बीमारी के लिए जातक कर्ज ले. यहां यह समझना बेहद जरूरी है कि सूत्र में पाप ग्रह नीच राशि में ही होना चाहिए. छठे भाव में सूर्य, मंगल और राहु जैसे ग्रह शुभ फल कारक माने गए है. ये व्यक्ति के शत्रु का नाश करते है लेकिन अगर ग्रह नीच है और पीड़ित है तो वो व्यक्ति को शुभ फल नहीं देता है. 
2 - छठे भाव में ग्रहण योग हो और धन, लाभ के स्वामी पीड़ित हो तो भी जातक कर्ज में जाता है. दरअसल राहु-सूर्य, सूर्य-मंगल, सूर्य-केतु जैसे पाप ग्रह अगर छठे भाव में युति करे तो वो उस भाव के शुभ फल में कमी करते है. उस स्थिति में ये आवश्यक हो जाता है कि धन और लाभ के स्वामी बलवान हो लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो जातक उन ग्रहों की दशा में अवश्य ही कर्जदार होगा. 
3- छठे भाव का स्वामी खुद कमजोर हो और छठे भाव में शनि राहु, शनि मंगल या शनि केतु की युति हो तो भी यह योग बनता है. दरअसल छठे भाव को उपचय भाव यानी वृद्धि का भाव कहा गया है. अगर छठे भाव का स्वामी नीच होकर केंद्र में जाए तो भाव के शुभ फल में कमी हो. वहीं शनि मंगल या शनि राहु की युति इस भाव में मनुष्य के शत्रु द्वारा धन का नाश करवाती है. शनि मंगल की युति छठे भाव में कभी भी व्यक्ति को सफल नहीं होने देती. 
4- गुरु अगर धन का स्वामी होकर राहु के साथ छठे भाव में हो और लग्नेश कमजोर हो तो भी व्यक्ति पीड़ित होता है. दरअसल गुरु जीव कारक ग्रह है और राहु के साथ युति होने पर वो गुरु चांडाल योग का निर्माण करता है. यह युति जिस भाव में होती है उसी भाव के शुभ फल में कमी आ जाती है. राहु छल का कारक है और छठा भाव शत्रु का, अगर गुरु धन का स्वामी होकर छठे में बैठे और राहु भी वही हो तो ऐसे व्यक्ति का धन छल कपट से लूट लिया जाता है और वो कर्ज में डूबता है.
कौन से योग बनाते हैं व्यक्ति को कर्जदार
ऋणी होना व्यक्ति की सर्वाधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में से एक है. ऋणग्रस्त व्यक्ति सदैव मानसिक अवसाद से घिरा रहता है. अथक परिश्रम करने के उपरान्त भी वह अपने ऋण से मुक्त नहीं हो पाता. आइए जानते हैं वे कौन से ग्रह योग होते हैं जो जातक को ऋणी बनाते हैं.
'ऋण योग' का विचार करने के लिए जन्मपत्रिका के तीन भावों का मुख्य रूप से विश्लेषण करना आवश्यक है- धन भाव, आय भाव एवं ऋण भाव. जन्मपत्रिका के द्वितीय भाव से धन,एकादश भाव से आय व षष्ठ भाव से ऋण का विचार किया जाता है. यदि किसी जन्मपत्रिका में निम्न ग्रह स्थितियां निर्मित होती हैं तो जातक को आर्थिक मामलों में अत्यन्त सावधानी रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि ये ग्रह योग जातक को ऋणी बना सकते हैं.
1.  यदि धन भाव का अधिपति (धनेश) व आय भाव (आयेश) का अधिपति दोनों ही अशुभ स्थानों में हो व ऋण भाव का अधिपति लाभ भाव में स्थित हो.
2. यदि धनेश व लाभेश व्यय भाव में स्थित हों व ऋण भाव का अधिपति केन्द्र या त्रिकोण में लग्नेश के साथ स्थित हो. 
3. यदि धनेश के साथ षष्ठेश की युति हो व लाभेश व्यय भाव में हो व लग्नेश पीड़ित व निर्बल हो.
4. यदि लाभेश के साथ षष्ठेश की युति हो व धनेश व्यय भाव में स्थित हो व लग्नेश पीड़ित व निर्बल हो.
5. यदि धनेश छठे भाव में, लाभेश व्यय भाव में एवं षष्ठेश एकादश भाव में हो.
6. यदि लग्नेश व षष्ठेश की युति हो व धनेश व लाभेश अशुभ स्थानों में हो.
7. यदि लग्नेश, धनेश व लाभेश तीनों पाप ग्रहों के प्रभाव में हों.

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