जप माला की प्राण प्रतिष्ठा संपूर्ण विधि विधान

जप माला की प्राण प्रतिष्ठा संपूर्ण विधि विधान

प्रेषित समय :20:15:57 PM / Wed, Apr 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

प्राण प्रतिष्ठा से तात्पर्य है कि किसी वस्तु में प्राणों का संचार करना. बिना प्राणों के किसी भी वस्तु में स्वयं की न तो कोई ऊर्जा होती है और, न ही वह किसी अभीष्ट प्राप्ति में सहायक ही सिद्ध हो सकती है.
प्राण संस्कार भी उनमें से ही एक बेहद महत्वपूर्ण क्रिया है. अब तक हमने प्राण प्रतिष्ठा के कुछ प्रयोगों को पिछली कई पोस्ट के माध्यम से देखा और सीखा है 
एक साधारण रुद्राक्ष, मूंगा या कमलगट्टे की माला को ही कैसे प्राण प्रतिष्ठित करें कि वह भी एक विशेष तांत्रिक माला बनकर हमें हमारे अभीष्ट की प्राप्ति में सहयोगी सिद्ध हो.
आज की यह पोस्ट इसी महत्वपूर्ण विषय पर है.
आप जानते हैं कि विभिन्न प्रयोगों के लिए विभिन्न मनकों की माला का उपयोग होता है , कभी 51 तो कभी 31 पर अधिकांश प्रयोगों और साधनाओं में 108 मनकों से युक्त माला का प्रयोग होता है.
पर  १०८ ही क्यों?
यूं तो सभी का एक विशेष अर्थ हैं पर मनीषियों  ने कई जगह स्पष्ट किया है कि मानव शरीर में 7 नहीं बल्कि 108 चक्र होते हैं, और उन्होंने इस संदर्भ में विभिन्न उदाहरण भी दिए हैं. साथ ही साथ इस हेतु एक बार एक विशिष्ट दीक्षा १०८ चक्र जागरण दीक्षा भी उन्होंने प्रदान की थी, तो जब भी हम 108 मनकों की माला से मंत्र जप करते हैं तब हर मनके के माध्यम से एक विशेष चक्र पर स्पंदन होता ही है. फिर उसे हम महसूस  कर सकें या न कर सकें. यही एक गोपनीय तथ्य है इन मनको का 108 होने का, तभी तो 108 मनको वाली माला सर्वार्थ सिद्धि प्रदायक कही जाती है. और, जब इसको प्राण संस्कारित करके कोई साधना की जाती है तो सफलता मिलना तो स्वाभाविक ही है और यह माला ही तो इस साधना का एक विशेष उपकरण है. 
माला में प्राण प्रतिष्ठा

प्रथम तरीका
शैव और शक्तों के लिए सर्वाधिक सरल तरीका तो यह है कि आप किसी भी माला अथवा मालाओं को किसी भी ज्योतिर्लिंग या शक्ति पीठ के मुख्य विग्रह से स्पर्श करा दें. उनकी प्राण ऊर्जा से माला स्वतः ही प्राण प्रतिष्ठित हो जाती है.

यदि आप रुद्राभिषेक कर सकते हैं अथवा आपके घर में किसी व्यक्ति अथवा पंड़ित द्वारा रुद्राभिषेक किया जा रहा हो तो, उस काल में किसी भी पात्र में यह माला, जिसे प्राण प्रतिष्ठित किया जाना है, उसे रख दें, यह स्वयं ही प्राण प्रतिष्ठित हो जाती है. 

द्वितीय तरीका
यदि आपके जो भी गुरु हों, उनके हाथों के स्पर्श मात्र से भी यह प्रक्रिया सुगमता पूर्वक संपन्न हो जाती है 

तृतीय तरीका
तीसरा तरीका (शास्त्रीय प्रक्रिया)
देव पूजन और आसन धुप दीप आदि का क्रम वही होगा हो हर पूजा में होता है उसके बाद आप पीपल के नौ पत्ते इस प्रकार से रखें कि एक पत्ता बीच में रहे और बाकी अन्य पत्ते उसे केन्द्र मानते हुये इस प्रकार रखें जैसे कि एक अष्ट दल कमल बन जाए. बीच के पत्ते पर अपनी माला रखे दें और हिंदी वर्ण माला के वर्ण ॐ अं से लेकर क्षं तक सभी का उच्चारण करते हुए उस माला को पंचगव्य से स्नान करायें.
माला-स्नान :
माला को स्नान कराने के लिए उस पर जल चढ़ाएं.
ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती.
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेsस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः स्नानं समर्पयामि.
पंचगव्य स्नान :
अब माला को पंचगव्य से स्नान कराएं.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः पंचगव्य स्नानं समर्पयामि.
शुद्धोदक स्नान :
माला को पुनः पवित्र जल से स्नान कराएं.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि.
( पवित्र जल से धोने के बाद माला को दूसरी थाली (सामग्री की थाली) में पीपल के एक पत्ते पर रखें. )
गंध :
माला को चंदन व कुमकुम का तिलक करें.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः गंधं समर्पयामि.
पुष्प :
सुगंधित पुष्प चढ़ाएं.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः गंधं समर्पयामि.
तुलसी :
तुलसी के पत्ते चढ़ाएं.यदि रुद्राक्ष की माला हो तो बेलपत्र चढ़ाएं 
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः तुलसीदलं समर्पयामि.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः बिल्वपत्र  समर्पयामि.
तुलसी हेमरूपांच रत्नरूपां च मंजरिं.
भवमोक्षपदा रम्यामर्पयामि हरिप्रियाम्..
वा 
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् त्रिजन्म पापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम्
अक्षत :
अक्षत चढ़ाएं.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः अक्षतान् समर्पयामि.
धूप
धूप जलाकर दिखाएं.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः धूपं आघ्रापयामि.
इष्ट देव की प्रतिष्ठा :
हाथ में पुष्प लेकर हाथ जोड़ें. माला में इष्टदेव की प्रतिष्ठा की भावना से प्रार्थना करें और पुष्प चढ़ाएं.
अखण्डानन्दबोधाय शिष्यसंतापहारिणे. सच्चिदानन्दरूपाय तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ तापत्रयाग्नितप्तानां अशांतप्राणीनां भुवि. गुरुरेव परा गंगा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
प्रार्थना :
हाथ में पुष्प लेकर माला को प्रार्थना करें और पुष्प चढ़ाएं.
ॐ माले महामाले सर्वतत्त्व स्वरूपिणी. चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्ततस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥ ॐ त्वं माले सर्वदेवानां सर्वसिद्धिप्रदा मता. तेन सत्येन मे सिद्धिं देहि मातर्नमोऽस्तु ते ॥ त्वं माले सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा भव. शिवं कुरुष्व मे भद्रे यशो वीर्यं च सर्वदा.. 
माला को गंगा जल से स्नान करायें और निम्न मंत्र उसी माला से 108 बार जप लें. यह भी एक सुगम तरीका है –
ॐ मां माले महामाले सर्व तत्व स्वरुपिणी. चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्त स्तस्मंमे सिद्धिदा भव..
फिर सद्योजात मंत्र का उच्चारण करें –
ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः. भवे भवे नाति भवे भवस्य माँ भवो द्वावाय नमः..
निम्न  वामदेव मन्त्र से चन्दन माला पर लगायें
बलाय नमो बल प्रमथ नाय नमः सर्व भूतदहनाय नमो मनोन्मथाय नमः..
धुप बत्ती अघोरमंत्र से दिखाएं   
ॐ अघोरेभ्योSथ घोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:
फिर तत्पुरुष मंत्र से लेपन करे
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवी धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात..
फिर इसके एक-एक दाने पर एक बार या सौ-सौ बार ईशान मंत्र का जप करें.
 ॐ ईशान: सर्व विद्यानामिश्वर: सर्व भूतानां ब्रह्माधिपतिर ब्रह्मणोSधिपतिर्ब्रह्मा शिवो में अस्तु सदाशिवोSम..
अब बात आती है कि कैसे देवता की स्थापना की जाए तो यदि आप इस माला को शक्ति कार्यों में उपयोग करना चाहते हैं तो  “ह्रीं ” इस मंत्र के पहले लगा कर और लाल रंग के पुष्पों  से इसका पूजन करें.
ॐ ऐं ह्रीं अक्षमाला यै नमः..
और वैष्णवों के निम्न मन्त्र  का उपयोग करें
ॐ ऐं श्रीं अक्षमाला यै नमः..
 फिर हर वर्ण मतलब अं से लेकर क्षं तक लेकर इनसे संपुटित करके  १०८-१०८ बार अपने इष्ट मन्त्र का उच्चारण करें.
फिर यह प्रार्थना  करे.
ॐ त्वं माले सर्वदेवानां सर्व सिद्धिप्रदा मता. तें सत्येन में सिद्धिं  देहि मातर्नामोSस्तुते ||
आपको जो भी विधि उचित लगे उसका उपयोग करके एक प्राण प्रतिष्ठित माला का निर्माण आप कर सकते हैं और उसे साधना में प्रयोग कर सकते हैं और, अब इस माला को हर किसी के सामने दिखाए नहीं.एवं जप के वक्त गोमुखी का प्रयोग करें.
चतुर्थ तरीका ( तंत्रोक विधान)
विशेष शक्ति युक्त तांत्रिक माला का निर्माण
अब तक की प्रकिया मणि माला को संस्कारित करने की हैं पर विशेष शक्ति युक्त तांत्रिक माला का निर्माण कैसे किया जाए , यह विधान पहली बार ही सामने आ रहा हैं, तो इसमें आपको –
.. ॐ सर्व माला मणि माला सिद्धि प्रदात्रयि शक्ति रुपिंयै नमः..
इस मंत्र का १०८ बार उच्चारण करना है. इस दौरान माला हाथ में घुमाते रहें.
बाकि सभी विधियाँ वही होगी हो हम ने दे राखी है जहाँ मंत्र जाप होना है उस जगह आप इस मंत्र को प्रयोग करें और भूल कर भी जप माला को धारण ना करें जब तक की संकल्पित मंत्र जाप पुरे ना हो.
इस विधान के माध्यम से हम किसी भी प्रकार की माला को प्राण संस्कारित कर सकते हैं जैसे कि रुद्राक्ष माला, कमलगट्टे की माला (लक्ष्मी साधनाओं के लिए सर्वोत्तम माला), स्फटिक एवं मूंगा माला इत्यादि. हमने ये भी सीखा है कि हम एक प्राण संस्कारित माला को विशेष शक्ति युक्त तांत्रोक्त माला में भी बदल सकते हैं.
आप सब सनातनी अपने जीवन में प्राण संस्कार की इस क्रिया को आत्मसात करें. 
        *Astro nirmal*

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-