दीपिका कुमारी बामणिया
जैसलमेर, राजस्थान
संदेह मेरा स्वभाव है,
सत्य को परखता मनभाव है,
शून्य से पूछूँ हर एक सवाल,
क्या है जीवन? क्या है काल?
स्वतंत्र विचार मेरी रीति,
न बंधन, न कोई नीति,
जो सोचूं, वही मैं कहूं,
भीड़ से अलग, खुद में रहूं,
न स्वर्ग की है मुझे कोई आशा,
न नरक की है मुझ में कोई छाया,
मैं खुद ही अपना सत्य बनाऊं,
अंधविश्वासों से मुक्त हो जाऊं।।