डॉ. सत्यवान सौरभ
15 अगस्त 1962 — देश के स्वतंत्रता दिवस पर, पंजाब के सांस्कृतिक रूप से समृद्ध गांव फातुही खेड़ा में एक ऐसा व्यक्तित्व जन्म लेता है, जो शिक्षा, सेवा और सृजन की त्रिवेणी से समाज को सतत् प्रेरणा देता रहा है. यह कहानी है विजय गर्ग की — एक शिक्षक, लेखक, वैज्ञानिक सोच के संवाहक और समाजसेवी, जिनका जीवन अपने आप में एक जीवंत पाठशाला बन गया.
शिक्षा के क्षेत्र में समर्पण
एमएससी, बीएससी, बीएड और पीजीडी इन स्टैटिस्टिक्स की शिक्षा पूरी करने के बाद विजय गर्ग ने पंजाब शिक्षा विभाग में गणित के अध्यापक के रूप में 20 वर्षों तक कार्य किया. इसके बाद उन्होंने 4½ वर्ष तक पीईएस-1 प्रिंसिपल सरकारी कन्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल, एमएचआर मालौट में प्राचार्य के रूप में सेवाएं दीं. उन्होंने सरकारी सेवा से प्रिंसिपल प् के पद से सेवानिवृत्ति ली. उनके अध्यापन का दायरा केवल अंकगणित तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने अपने विद्यार्थियों को जीवन के मूल्य और नैतिकताएँ भी सिखाईं. आज उनके शिष्य देश के विभिन्न क्षेत्रों में डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं.
शिक्षक से समाजशिल्पी तक
विजय गर्ग की भूमिका केवल एक शिक्षक तक सीमित नहीं रही. वे एक मार्गदर्शक, एक विचारक और एक समाजशिल्पी भी हैं. उन्होंने डिजिटल माध्यमों का उपयोग करते हुए "न्यू नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी" की स्थापना की, जहाँ विज्ञान और गणित के विद्यार्थियों के लिए अध्ययन सामग्री, मार्गदर्शन, प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें और सामान्य ज्ञान संबंधी संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं. विशेष रूप से व्हाट्सएप ग्रुप्स के माध्यम से उन्होंने में ( नीट/ जेईई / युपीऐससी / आईएएस / ओलंपियाड / अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें) जैसी कठिन परीक्षाओं के लिए सैकड़ों छात्रों को डिजिटल फॉर्मेट में किताबें और गाइड मुफ्त में उपलब्ध कराईं.
लेखन: विचारों की मशाल
विजय गर्ग ने लेखन को केवल शौक या पेशा नहीं, बल्कि एक सामाजिक उत्तरदायित्व माना. उन्होंने अंग्रेज़ी, हिंदी और पंजाबी भाषाओं में हज़ारों लेख राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित किए. वे 'जूनियर साइंस रिफ्रेशर' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में नियमित स्तंभकार रहे हैं. उनके लेखों का विषय केवल शिक्षा नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, पर्यावरण, विज्ञान प्रसार, जीवन कौशल और विद्यार्थियों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं तक विस्तृत रहा है.
125 से अधिक पुस्तकें: ज्ञान का खजाना
एक लेखक के रूप में उन्होंने 125 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं. ये पुस्तकें एनपीएसई , एनएमएमएस, वैदिक गणित, सामाजिक विज्ञान, IX-X कक्षा की गणित और XII गणित के त्वरित संशोधन के लिए समर्पित हैं. उनके लेखन में सबसे बड़ी बात यह रही कि उन्होंने कठिन विषयों को सरल भाषा और रोचक उदाहरणों के माध्यम से विद्यार्थियों के लिए सुगम बनाया. उनकी पुस्तकों ने विशेषकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों को आत्मविश्वास दिया कि वे भी बड़े सपने देख सकते हैं.
विज्ञान के प्रति समर्पण
उनकी वैज्ञानिक दृष्टि केवल सिद्धांतों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने राष्ट्रीय विज्ञान मेलों में भाग लेकर विद्यार्थियों को नवाचार की दिशा में प्रेरित किया. वे दो बार राष्ट्रीय विज्ञान मेला और तीन बार राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में भाग ले चुके हैं. इसके अलावा, 'जय विजय' पत्रिका में प्रकाशित उनके लेखों को भी कई बार प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ. उनके छात्रों की विज्ञान परियोजनाएं राज्य स्तर पर चयनित होकर सम्मानित होती रही हैं.
सेवानिवृत्ति के बाद भी सक्रियता
सेवा से रिटायरमेंट नहीं होता — यह उन्होंने साबित किया. 58 वर्ष की आयु में जब उन्होंने शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्ति ली, तब भी उनका जीवन ठहरा नहीं. वे आज भी नई पुस्तकों के लेखन, डिजिटल शिक्षण सामग्री के वितरण और कैरियर काउंसलिंग में सक्रिय हैं. छात्रों और अभिभावकों के लिए वे निःशुल्क कैरियर मार्गदर्शन सत्र आयोजित करते हैं, जिनसे सैकड़ों परिवार लाभान्वित हो चुके हैं.
सम्मान और मान्यता
उनके योगदान को शिक्षा विभाग ने भी पहचाना. उन्हें "पंजाब शिक्षा सचिव" द्वारा विशेष प्रशंसा प्रमाण पत्र प्रदान किया गया. यह सम्मान उनके सतत योगदान का एक औपचारिक मूल्यांकन है, मगर असली पहचान तो वे छात्र हैं जो आज उनके आशीर्वाद से जीवन में आगे बढ़ रहे हैं.
पारिवारिक जीवन और विरासत
विजय गर्ग की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी शिक्षा के मूल्यों से भरी रही है. उनके पुत्र डॉ. अंकुश गर्ग, श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एमडी रेडियोलॉजी कर रहे हैं — यह इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने अपने बेटे में भी वही मूल्यों की नींव रखी है.
थकान के पार समर्पण की शक्ति
आज, 62 वर्ष की आयु में जब शरीर विश्राम चाहता है, विजय गर्ग का मन और मस्तिष्क नई रचनाओं, नए विचारों और समाज सेवा की योजनाओं से व्यस्त रहता है. उनका जीवन एक जीवंत प्रमाण है कि सेवा और सृजन की कोई उम्र नहीं होती. वे निरंतर सीखने, सिखाने और समाज को दिशा देने में लगे हुए हैं.
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति, यदि संकल्पित हो तो बिना किसी मंच, बिना किसी पद या प्रचार के, समाज को दिशा दे सकता है. विजय गर्ग न केवल एक शिक्षक हैं, बल्कि वे एक विचारधारा हैं — सेवा और सादगी की विचारधारा, जो समय के साथ और प्रासंगिक होती जा रही है.
ऐसे व्यक्ति का जीवन किसी पुस्तक का विषय नहीं, बल्कि एक आंदोलन की शुरुआत हो सकता है — एक ऐसा आंदोलन जिसमें हर शिक्षार्थी शिक्षक बन सके और हर शिक्षक समाज का वास्तुकार बन सके.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-