जन्म कुण्डली बताती है वास्तु दोष!

जन्म कुण्डली बताती है वास्तु दोष!

प्रेषित समय :19:40:07 PM / Sun, Jun 8th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जन्म कुण्डली में लग्न को पूर्व दिशा, सप्तम भाव पश्चिम दिशा, चतुर्थ भाव उत्तर दिशा, दशम भाव दक्षिण दिशा , द्वितीय और तृतीय भाव ईशान कोण, पंचम एवं षष्ठ भाव वायव्य कोण, अष्टम एवं नवम भाव नैऋत्य कोण और एकादश और द्वादश भाव को आग्नेय कोण ज्यौतिष शास्त्र में माना जाता है. 
    जिस भाव का स्वामी उच्च या प्रबल होकर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित होता है, उस दिशा से संबंधित वास्तु दोष नहीं प्राप्त होता है, तथा जिस भाव का स्वामी नीच, अस्त, या शत्रु क्षेत्रीय होता है, अथवा शत्रुओं के साथ बैठा है, पीड़ित है, उस भाव से संबंधित दिशा में वास्तु दोष उत्पन्न होते हैं.  यह बात ज्यौतिषाचार्य को कुण्डली देखकर वास्तु परीक्षण से पूर्व ही ज्ञात हो सकती है. 
    इसी प्रकार नवग्रह भी विभिन्न दिशाओं के स्वामी होते हैं. सूर्य - पूर्व, चन्द्र-- वायव्य, मंगल- दक्षिण, बुध-- उत्तर, गुरु--ईशान, शुक्र-- अग्नि कोण, शनि - पश्चिम, राहु और केतु -- नैऋत्य कोण का आधिपत्य रखते है. 
  यदि कोई ग्रह नीच, अस्त, शत्रु क्षेत्रीय आदि पाप प्रभावित हो तो उस ग्रह के दिशा में वास्तु दोष उत्पन्न होता है.
        प्रायः ऐसा देखा जाता है कि एक जातक का गृह परिवर्तन के बाद भी उसी प्रकार के वास्तु दोष से युक्त दूसरा घर प्राप्त होता है. अर्थात कुछ वास्तु दोष ऐसे होते हैं जो हमारी कुण्डली के दोषों को दर्शाते हैं, या हम यूँ कहे कि हमारी कुण्डली के ग्रहानुसार ही हमे भवन प्राप्त होता है. इसलिए हम सभी वास्तु दोष चाह कर भी नहीं दूर कर पाते हैं या ग्रह दोष दूर भी कर दिया जाय तो जाने -अनजाने पुन: वह वास्तु दोष वापस आ जाते हैं. 
   *लग्नेश का नीच राशि में जाना या पीड़ित होना मकान के पूर्व दिशा के वास्तु दोष को दिखाता है. 
 यह योग वास्तु दोष के साथ जातक के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. इस दोष के कारण जातक का मस्तिष्क पीड़ित होकर शारीरिक सुख में कमी होती है. 
*लग्नेश तृतीय भाव में पीड़ित होने से ईशान कोण मे टूट-फूट और ईंट का निर्माण कार्य शेष होने का सूचक होता है. 
*सप्तमेश षष्ठ भाव में हो तो पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होता है. 
*अष्टमेश पंचम में हो तो नैऋत्य दिशा में वास्तु दोष होने की संभावना रहती है.   
*दशमेश षष्ठ भाव में हो तो दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होता है. 
*राहु/ केतु की युति उस ग्रह संबंधी दिशा में दोष उत्पन्न करती है जिस दिशा में कुंडली में राहु केतु स्थित हो. 
*कुंडली में बृहस्पति की दिशा अर्थात ईशान कोण शुभ ग्रह युक्त हो तो घर के ईशान कोण में खुली जगह, खिड़की, रोशनदान और धार्मिक बस्तुएं होती है. 
*यदि कुण्डली में चंद्रमा शुभ ग्रहो से युक्त हो तो वायव्य कोण की दिशा वास्तु दोष से रहित होती है. 
*जन्म कुण्डली में शुक्र का उच्च होना या शुभ प्रभाव से युक्त होना  आग्नेय दिशा का शुभ होने और वाहन तथा सुख संबंधित बस्तुको का होने का शुभ सूचक है. 
*जन्म कुण्डली में मंगल की शुभता दक्षिण दिशा के वास्तु दोष में कमी के साथ खान- पान के बस्तुओं की अधिकता प्रदान करती है. 
*बुध का शुभ होना उत्तर दिशा  को शुभ बनाता है, तथा उत्तर दिशा में अध्ययन कक्ष या शिक्षा संबंधित बस्तुएं होने की सूचना देता है. 
*पश्चिम दिशा का स्वामी शनि है. अगर कुण्डली में शनि पीड़ित हो तो पश्चिम दिशा में लोहे या लकड़ी का पुराना सामान पड़ा हो सकता है. 
  *लग्नेश जन्म कुण्डली में 6,8,12 भाव में पीड़ित हो तो घर के पूर्व दिशा में वास्तु दोष होता है.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-