वैश्विक साइबर सुरक्षा नीति की ओर भारत की बड़ी छलांग, लेकिन चुनौतियां भी गंभीर

वैश्विक साइबर सुरक्षा नीति की ओर भारत की बड़ी छलांग, लेकिन चुनौतियां भी गंभीर

प्रेषित समय :18:21:22 PM / Wed, Jun 11th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

 नई दिल्ली, विशेष संवाददाता.भारत सरकार द्वारा CCTV जैसे संवेदनशील हार्डवेयर पर नए तकनीकी और सुरक्षा नियमों की घोषणा के बाद विदेशी कंपनियों में चिंता का माहौल बन गया है. दूसरी ओर, देश में AI आधारित डीपफेक अपराधों की बढ़ती घटनाओं ने राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस वर्ष भारत में केवल डीपफेक फ्रॉड से ₹20,000 करोड़ से अधिक का नुकसान हो सकता है.

 1. CCTV रेगुलेशन: राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम अंतरराष्ट्रीय व्यापार
भारत में स्मार्ट सिटी, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डों और सार्वजनिक संस्थानों में CCTV की भूमिका लगातार बढ़ रही है. सरकार ने हाल ही में नए नियमों के तहत यह अनिवार्य किया है कि:

CCTV उपकरण में स्थानीय स्टोरेज और डेटा रिटेंशन की न्यूनतम सीमा सुनिश्चित हो.

ऐसे किसी भी डिवाइस में विदेशी सर्वर या बैकडोर एक्सेस मौजूद न हो.

सुरक्षा ऑडिट और प्रमाणन प्रक्रिया घरेलू एजेंसियों के माध्यम से हो.

इस कदम से स्थानीय सुरक्षा को तो मजबूती मिलेगी, लेकिन चीन, अमेरिका और अन्य देशों की कंपनियों को इन नए मानकों पर खरा उतरने के लिए भारी निवेश करना होगा. कई कंपनियाँ चिंता जता रही हैं कि यह निर्णय ‘प्रोटेक्शनिज़्म’ की दिशा में जाता है.

2. डीपफेक स्कैम्स: AI से चल रहे हैं हाई-टेक फ्रॉड
2024-25 में AI तकनीक के बढ़ते उपयोग के साथ साइबर अपराधों ने नया रूप ले लिया है. डीपफेक के जरिए अब अपराधी:

सरकारी अफसर या पुलिस अधिकारी बनकर लोगों को धमकाते हैं.

इन्वेस्टमेंट कंपनियों के नकली वीडियो बनाकर पैसे ठगते हैं.

सोशल मीडिया पर राजनेताओं और सेलिब्रिटीज़ की फर्जी वीडियो डालकर भ्रम फैलाते हैं.

बैंक कर्मचारियों की आवाज की क्लोनिंग करके ट्रांजैक्शन ओटीपी चुरा लेते हैं.

यह ट्रेंड न केवल आर्थिक नुकसान का कारण बन रहा है, बल्कि देश की डिजिटल विश्वसनीयता को भी कमज़ोर कर रहा है.

 क्या हैं प्रमुख चुनौतियाँ?
कानूनी ढांचे की कमी: भारत का IT अधिनियम अभी भी डीपफेक जैसे मामलों के लिए पर्याप्त स्पष्टता नहीं देता.

तकनीकी समाधान की धीमी रफ्तार: डीपफेक की पहचान करने वाले टूल्स सीमित हैं और आम जनता तक उनकी पहुँच कम है.

जागरूकता का अभाव: ज्यादातर लोग इन स्कैम्स की पहचान नहीं कर पाते और देर से रिपोर्ट करते हैं.

अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमी: AI और डीपफेक वैश्विक मुद्दे हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वय कमजोर है.

क्या हैं संभावित समाधान?
नीतिगत सुझाव
डीपफेक-विरोधी विशेष कानून लाना: IT अधिनियम में संशोधन कर डीपफेक को एक स्पष्ट अपराध की श्रेणी में रखा जाए.

‘साइबर-विश्वास प्रमाणन’ (Cyber Trust Certification): सभी CCTV उपकरणों और सॉफ्टवेयर को इस प्रमाणपत्र के बिना बाजार में न आने दिया जाए.

तकनीकी उपाय
AI-आधारित डीपफेक पहचान सिस्टम: CERT-In और निजी कंपनियों के माध्यम से एक राष्ट्रीय टूल लॉन्च किया जाना चाहिए जो रीयल टाइम में डीपफेक पहचान सके.

डिजिटल स्टैंपिंग: सोशल मीडिया और वीडियो प्लेटफ़ॉर्म पर सभी वीडियो को डिजिटल ट्रेस टैग के साथ अपलोड करने की नीति.

 जन-जागरूकता और ट्रेनिंग
‘फेक से सतर्क’ अभियान: लोगों को डीपफेक वीडियो की पहचान, सही रिपोर्टिंग चैनलों और साइबर धोखाधड़ी से बचने के लिए जागरूक किया जाए.

कॉर्पोरेट ट्रेनिंग: BFSI, हेल्थ, एजुकेशन और मीडिया सेक्टर को deepfake simulation drills की अनिवार्यता लागू की जाए.

साइबर नीति का नया मोड़, लेकिन रास्ता लंबा है
भारत की साइबर नीति अब एक निर्णायक मोड़ पर है. जहां एक ओर CCTV जैसी हार्डवेयर सुरक्षा पर सख्ती के ज़रिए राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है, वहीं दूसरी ओर AI आधारित अपराधों से जूझना भी उतना ही जरूरी हो गया है.

समझदारी, समन्वय और सशक्त नियमन—ये तीन स्तंभ अगर सही दिशा में विकसित किए जाएँ, तो भारत वैश्विक स्तर पर साइबर नेतृत्व की भूमिका में आ सकता है. लेकिन यदि नीति और प्रौद्योगिकी के बीच संतुलन नहीं बनाया गया, तो यह नया मोर्चा आर्थिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से खतरनाक साबित हो सकता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-