एशिया में गरम समंदर, पिघलते ग्लेशियर और चेतावनी से बचती जिंदगियां

एशिया में गरम समंदर, पिघलते ग्लेशियर और चेतावनी से बचती जिंदगियां

प्रेषित समय :19:43:42 PM / Tue, Jun 24th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

साल 2024 एशिया के लिए सिर्फ एक और गर्म साल नहीं था, बल्कि यह जलवायु संकट की एक कड़ी चेतावनी के रूप में सामने आया. वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (WMO) की ताज़ा रिपोर्ट “State of the Climate in Asia 2024” बताती है कि एशिया अब वैश्विक औसत के मुकाबले लगभग दोगुनी रफ्तार से गर्म हो रहा है, और इसका असर अब जीवन के हर पहलू पर साफ़ दिखने लगा है.

2024 में एशिया का औसत तापमान 1991–2020 की तुलना में 1.04°C अधिक रहा. म्यांमार में 48.2°C तक पारा पहुंचा — रिकॉर्ड तोड़ गर्मी. चीन, जापान, कोरिया और म्यांमार जैसे देशों में महीनों तक लगातार हीटवेव्स चलीं. अप्रैल से नवंबर तक कई क्षेत्रों में गर्मी से राहत नहीं मिली.

WMO के अनुसार, एशिया के समुद्री क्षेत्रों का तापमान हर दशक में 0.24°C बढ़ रहा है, जो ग्लोबल औसत से लगभग दोगुना है. 2024 में अगस्त-सितंबर के दौरान 15 मिलियन वर्ग किलोमीटर समुद्री क्षेत्र मरीन हीटवेव्स से प्रभावित हुआ. इसका सीधा असर मछलियों की प्रजनन क्षमता, समुद्री जैवविविधता और तटीय आजीविका पर पड़ा.

हाई माउंटेन एशिया (HMA) — जिसे "तीसरा ध्रुव" भी कहा जाता है — वहां 2023–24 में निगरानी किए गए 24 में से 23 ग्लेशियरों का द्रव्यमान घटा. उरुमची ग्लेशियर नंबर 1 ने 1959 से अब तक की सबसे तेज़ बर्फीली गिरावट दर्ज की. परिणामस्वरूप ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) और भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिससे उन लाखों लोगों की जीवनरेखा खतरे में पड़ गई है जो हिमालयी नदियों पर निर्भर हैं.

2024 में जलवायु की मार कई देशों में अलग-अलग रूपों में दिखाई दी. नेपाल में सितंबर की बाढ़ में 246 लोगों की मौत हुई, लेकिन 1.3 लाख लोगों को समय रहते बचा लिया गया. भारत के केरल राज्य में जुलाई में 500 मिमी से अधिक बारिश से भूस्खलन हुए और 350 से अधिक मौतें हुईं. चीन में भीषण सूखे से 48 लाख लोग प्रभावित हुए, फसलें बर्बाद हुईं और ₹400 करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हुआ. यूएई में 24 घंटे में 259.5 मिमी बारिश हुई — 1949 के बाद की सबसे अधिक वर्षा. कज़ाकिस्तान और रूस में भारी बर्फ पिघलने और असामान्य बारिश ने 70 वर्षों की सबसे बड़ी बाढ़ को जन्म दिया, जिससे 1.18 लाख लोग बेघर हो गए.

रिपोर्ट का विशेष ज़िक्र नेपाल की Early Warning System का है, जहाँ प्रशासन और समुदायों के तालमेल से 1.3 लाख लोगों को समय रहते अलर्ट किया गया, जिससे जान-माल की हानि कम हुई.

WMO की महासचिव सेलेस्टे साओलो ने कहा, "अब मौसम सिर्फ मौसम नहीं रहा — यह लोगों की आजीविका, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था का सवाल बन गया है."

अब जरूरी है कि गांव-शहरों में लोकल वेदर वार्निंग सिस्टम्स को मज़बूती दी जाए, जलवायु शिक्षा को स्कूलों से लेकर पंचायतों तक पहुँचाया जाए, और सबसे अहम, स्थानीय कहानियों और नीतियों के ज़रिये लोगों को जोड़ा जाए — क्योंकि आंकड़े डराते हैं, लेकिन कहानियां समझाती हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-