जबलपुर. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रशासनिक उत्तरदायित्व की अनदेखी पर एक ऐसा आदेश दिया है, जो न केवल भारतीय न्यायिक इतिहास में उल्लेखनीय बन गया है बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए सकारात्मक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है.सतना जिले के कोतवाली थाना प्रभारी रावेंद्र द्विवेदी को उनकी लापरवाही के लिए 1000 फलदार पौधे लगाने और एक वर्ष तक उनकी देखभाल करने का आदेश दिया गया है.यह फैसला न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति अवनीन्द्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने सुनाया.
प्रशासनिक लापरवाही से उपजा अदालती असंतोष
यह मामला वर्ष 2021 में सतना जिले में दर्ज एक गंभीर अपराध से जुड़ा है.
सतना की जिला अदालत ने एक नाबालिग के साथ दुराचार के मामले में आरोपी रामअवतार चौधरी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
सजा के खिलाफ आरोपी ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में अपील दायर की.
उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर 2024 तक यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि पीड़िता को नोटिस तामील कराया जाए.
यह प्रक्रिया न्यायिक अपील के सुनवाई अधिकार का अहम हिस्सा होती है.
लेकिन कोतवाली थाना प्रभारी रावेंद्र द्विवेदी द्वारा इस आदेश का पालन निर्धारित समयसीमा में नहीं किया गया.
यह अदालत की दृष्टि में गंभीर लापरवाही मानी गई, क्योंकि इससे न्यायिक प्रक्रिया बाधित होने की संभावना थी.
अदालत की सख्ती और जवाबदेही की नई परिभाषा
उच्च न्यायालय ने इस लापरवाही पर नाराजगी जाहिर करते हुए थाना प्रभारी से स्पष्टीकरण मांगा.
टीआई ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफी मांगी.
परन्तु खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि मात्र क्षमा याचना इस लापरवाही की भरपाई के लिए अपर्याप्त है.
न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति अवनीन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि प्रशासनिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में लापरवाही क्षम्य नहीं हो सकती, विशेषकर जब वह न्यायिक प्रक्रिया के संचालन को प्रभावित करे.
पर्यावरणीय संरक्षण के माध्यम से दंडात्मक सुधार
अदालत ने अपने फैसले में थाना प्रभारी को निर्देश दिया कि वे सतना जिले के चित्रकूट क्षेत्र में 1 जुलाई 2025 से 31 अगस्त 2025 के बीच 1000 फलदार पौधे लगाएं.
पौधों की प्रजातियों के रूप में आम, जामुन, अमरूद और महुआ जैसी स्थानीय और बहुपयोगी प्रजातियों का चयन किया गया.
अदालत ने यह भी कहा कि केवल पौधारोपण करना पर्याप्त नहीं होगा.
थाना प्रभारी को कम से कम एक वर्ष तक इन पौधों की व्यक्तिगत देखरेख करनी होगी.
इसमें सिंचाई, सुरक्षा और जीवित रहने की निगरानी शामिल होगी.
अदालत ने आदेश को केवल कागजी औपचारिकता बन जाने से रोकने के लिए विस्तृत निगरानी व्यवस्था भी सुनिश्चित की है.
थाना प्रभारी को प्रत्येक पौधे की फोटो खींचकर उसकी GPS लोकेशन के साथ मासिक प्रगति रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करनी होगी.
साथ ही सतना जिले के पुलिस अधीक्षक को भी पौधारोपण स्थलों का भौतिक निरीक्षण कर शपथ-पत्र सहित सत्यापन रिपोर्ट जमा करनी होगी.
इससे सुनिश्चित होगा कि आदेश का पालन जमीनी स्तर पर हो रहा है.
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का यह आदेश भारतीय न्याय प्रणाली में सुधारात्मक और समाजोपयोगी दंडात्मक आदेशों की बढ़ती प्रवृत्ति का उदाहरण है.
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश न केवल प्रशासनिक अधिकारियों के लिए चेतावनी है बल्कि समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश भी.
जहां एक ओर यह आदेश प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करता है, वहीं दूसरी ओर यह पर्यावरणीय सरोकारों को भी मजबूती देता है.
पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि ऐसे निर्णयों की संख्या बढ़े तो शासकीय अमले में सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना भी प्रबल होगी.
एक वर्ष तक निगरानी, दीर्घकालिक प्रभाव की आशा
इस आदेश का समयकालिक प्रभाव भी विशेष है.
अदालत ने आगामी सुनवाई के लिए 16 सितंबर 2025 की तारीख तय की है.
उस दिन अदालत में पौधारोपण और उसके रखरखाव की स्थिति की विस्तृत समीक्षा की जाएगी.यदि निष्कर्ष संतोषजनक नहीं पाया गया तो कोर्ट आगे सख्त कार्रवाई का विकल्प भी खुला रख सकती है.
पर्यावरणीय कानून विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
इस मामले पर पर्यावरण कानून के जानकार अधिवक्ता कहते हैं कि यह आदेश भारतीय दंड संहिता और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों के बीच संतुलन साधने का उत्कृष्ट उदाहरण है.
प्रशासनिक अधिकारियों के लिए यह संदेश है कि लापरवाही का दंड सिर्फ आर्थिक या विभागीय कार्रवाई तक सीमित नहीं रहेगा.
सजा जो सबक भी, सेवा भी
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय आने वाले समय में भारतीय न्याय व्यवस्था में समाजोपयोगी सजा नीति (Restorative Justice) के सफल उदाहरणों में शामिल हो सकता है.
जहां अपराधी या दोषी अधिकारी की गलती समाज के लिए किसी सकारात्मक परिवर्तन का कारण बनती है.
इस आदेश ने यह सिद्ध किया कि न्याय केवल न्यायालयों की चारदीवारी में नहीं, समाज की खुली जमीन पर भी हरियाली के रूप में पनप सकता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

