नई दिल्ली. शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने आज भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द को लेकर अहम बयान दिया. शंकराचार्य ने कहा कि यह शब्द मूल रूप से भारतीय संविधान का हिस्सा नहीं थाए बल्कि इसे बाद में जोड़ा गया. उनके अनुसार यह शब्द संविधान की मूल प्रकृति से मेल नहीं खाता. यही वजह है कि यह अक्सर चर्चा का विषय बन जाता है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि मूल रूप से संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं था. इसे बाद में जोड़ा गया. यही कारण है कि यह भारतीय संविधान की प्रकृति के अनुरूप नहीं है और इस मुद्दे को बार.बार उठाया जाता है. अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के अनुसार कि धर्म का अर्थ है सही व गलत के बारे में सोचना, सही को अपनाना, गलत को अस्वीकार करना. शंकराचार्य ने कहा धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब है कि हमें सही या गलत से कोई लेना-देना नहीं है. ऐसा किसी के जीवन में नहीं हो सकता. इसलिए यह शब्द भी सही नहीं है. उन्होंने कहा कि ये शब्द आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे. ये बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए मूल पाठ का हिस्सा नहीं थे.
कांग्रेस नेताओं ने दत्तात्रेय की टिप्पणी को लेकर भारतीय जनता पार्टी व आरएसएस की आलोचना की है. जबकि उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ व केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनकी मांग का समर्थन किया है. सीपीआई सांसद पी संदोष कुमार ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर सवाल किया कि क्या संगठन वास्तव में भारतीय संविधान को स्वीकार करता है. आरएसएस सरसंघचालक भागवत को लिखे पत्र में सीपीआई सांसद ने कहा कि अब समय आ गया है कि आरएसएस ध्रुवीकरण के लिए इन बहसों को भड़काना बंद करे. उन्होंने यह भी कहा कि ये शब्द मनमाने ढंग से डाले गए् नहीं बल्कि आधारभूत आदर्श हैं.
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