नई दिल्ली.हमारी बैंकिंग, क्लाउड स्टोरेज, मेडिकल सेवाएं, मोबाइल नेटवर्क और लॉजिस्टिक्स जैसी डिजिटल ज़रूरतें, जिन पर आज पूरी दुनिया निर्भर है — उनका आधार स्तंभ माने जाने वाले डेटा सेंटर अब खुद एक बड़े जलवायु संकट की चपेट में हैं.
XDI (Cross Dependency Initiative) की नई रिपोर्ट "2025 ग्लोबल डेटा सेंटर फिजिकल क्लाइमेट रिस्क एंड अडॉप्टेशन रिपोर्ट" ने खुलासा किया है कि दुनियाभर के लगभग 9,000 डेटा सेंटर बाढ़, तूफ़ान, जंगलों की आग और समुद्री जलस्तर वृद्धि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण गंभीर खतरे में हैं.
XDI के संस्थापक डॉ. कार्ल मेलोन ने चेतावनी दी है, “डेटा सेंटर वैश्विक अर्थव्यवस्था के साइलेंट इंजन हैं. लेकिन बदलते मौसम के तीव्र और अनियमित स्वरूप के कारण ये पहले से कहीं ज़्यादा संवेदनशील हो गए हैं. अब सरकारों और निवेशकों को जोखिम को नजरअंदाज़ करने की कोई गुंजाइश नहीं बची.”
रिपोर्ट की प्रमुख बातें:
2050 तक न्यू जर्सी, हैम्बर्ग, शंघाई, टोक्यो, हॉन्गकॉन्ग, मॉस्को, बैंकॉक और होवेस्टाडेन जैसे बड़े डेटा हब्स में 20% से 64% डेटा सेंटरों को गंभीर भौतिक क्षति का खतरा होगा.
एशिया-प्रशांत क्षेत्र (APAC), जहां सबसे तेज़ी से डेटा सेंटर विकसित हो रहे हैं, वहीं जोखिम भी सबसे अधिक है — 2025 में हर 10 में से 1 और 2050 तक हर 8 में से 1 डेटा सेंटर उच्च जोखिम में होगा.
अगर समय रहते ठोस जलवायु नीति और ढांचागत निवेश नहीं किया गया, तो 2050 तक बीमा प्रीमियम 3 से 4 गुना तक बढ़ सकते हैं.
रिपोर्ट यह भी सुझाती है कि सटीक डिज़ाइन और निर्माण तकनीकों के ज़रिये डेटा सेंटरों को अधिक टिकाऊ बनाया जा सकता है, जिससे अरबों डॉलर की सालाना बचत संभव है.
केवल मजबूत इमारतें काफी नहीं
XDI की रिपोर्ट यह भी स्पष्ट करती है कि जोखिम क्षेत्रीय और स्थल-विशिष्ट है. यानी, एक ही देश में दो डेटा सेंटरों की संवेदनशीलता भी अलग-अलग हो सकती है. यही कारण है कि ‘स्थान के अनुसार निवेश’ की समझ अब बेहद ज़रूरी हो गई है.
इसके साथ ही यह भी चेताया गया है कि अगर आसपास की मूलभूत सेवाएं — जैसे सड़कें, पानी आपूर्ति या टेलीकॉम नेटवर्क — असुरक्षित हैं, तो कोई भी सुपर-रेज़िलिएंट डेटा सेंटर भी अप्रभावी हो सकता है.
इसलिए दीर्घकालिक डिजिटल सुरक्षा के लिए अनुकूलन (adaptation) और उत्सर्जन में कटौती (decarbonisation) — दोनों पर एकसाथ गंभीरता से काम करना होगा.
जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ प्राकृतिक संकट नहीं, बल्कि डिजिटल भविष्य के लिए एक सीधा और वास्तविक ख़तरा बन चुका है.
(रिपोर्ट: एक्सडीआई | इनपुट: अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से)
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