हिंदू धर्म में स्नान को केवल शारीरिक शुद्धि का माध्यम नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि और आत्मशोधन की प्रक्रिया माना गया है. प्राचीन शास्त्रों, वेदों और धर्म-संहिताओं में स्नान के समय अपनाई जाने वाली दिशा, विधि और मनःस्थिति का विशेष महत्व बताया गया है. इनमें दिशा को विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है, क्योंकि यह केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि ऊर्जात्मक और आध्यात्मिक प्रभाव भी छोड़ती है.
धार्मिक ग्रंथों और आयुर्वेदिक शास्त्रों के अनुसार, स्नान करते समय मुख का पूर्व दिशा की ओर होना सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इसका मुख्य कारण यह है कि पूर्व दिशा को सूर्य का उदय स्थान माना गया है, जो जीवन, ऊर्जा, आरोग्यता और ज्ञान का प्रतीक है.
वेदों में कहा गया है —
"पूर्वेण मुखेन स्नानं कुर्वन् सदा शुभं लभेत्"
अर्थात जो व्यक्ति पूर्व दिशा की ओर मुख करके स्नान करता है, उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं.
सूर्य की उगती किरणें जब शरीर पर पड़ती हैं, तो वह न केवल शारीरिक बल देती हैं, बल्कि मानसिक और आत्मिक जागरण भी करती हैं. यही कारण है कि सूर्योदय से पहले स्नान करने और सूर्य की आराधना की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.
कुछ धर्मशास्त्रों में उत्तर दिशा की ओर मुख करके स्नान करना भी पुण्यदायक बताया गया है, विशेषकर तर्पण, श्राद्ध या पितृ कार्यों के समय. उत्तर दिशा पितृलोक की दिशा मानी जाती है, अतः जब कोई पवित्र कार्य जैसे श्राद्ध या संकल्प करना हो, तो उत्तर की ओर मुख करके स्नान करना उचित रहता है.
दक्षिण दिशा यम दिशा मानी गई है, जो मृत्यु और अंधकार का प्रतीक है. इसी कारण धर्मशास्त्रों में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके स्नान को वर्जित या अशुभ माना गया है.
पश्चिम दिशा भी तमोगुण की ओर संकेत करती है, अतः यह स्नान के समय उपयुक्त नहीं मानी जाती.
ध्यान रखें कि स्नान केवल शरीर की सफाई नहीं, बल्कि एक मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है. दिशा का चयन इस ऊर्जा संतुलन में सहायक होता है. सही दिशा में खड़े होकर स्नान करने से शरीर की ऊर्जा चक्र संतुलित होती हैं और दिन की शुभ शुरुआत होती है.
निष्कर्ष:
धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो स्नान करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करना सबसे श्रेष्ठ और शुभ माना गया है. यह न केवल शरीर को जाग्रत करता है, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है. उत्तर दिशा विशेष अवसरों पर उपयुक्त होती है, जबकि दक्षिण और पश्चिम दिशाओं से परहेज करने की परंपरा रही है. शास्त्रों की यह परंपरा केवल विश्वास नहीं, बल्कि ऊर्जा और प्रकृति के नियमों के साथ संतुलन की प्रेरणा भी देती है.

