पटना. बिहार की राजनीति में इस समय एक असहज हलचल दिखाई दे रही है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए राज्य में बढ़ते अपराधों को लेकर सार्वजनिक रूप से चिंता जताई है. यह आलोचना केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं बल्कि सत्ता संरचना के भीतर उपजे अविश्वास का संकेत भी है, जो आगामी चुनावों से पहले गहरी राजनीतिक हलचलों की भूमिका रच सकती है.
चिराग पासवान ने जिस अंदाज़ में यह कहा कि “बिहार सरकार का समर्थन करना अब शर्मनाक लग रहा है,” वह अपने आप में गठबंधन राजनीति की दरारों को उजागर करता है. यह वक्तव्य तब और गंभीर हो जाता है जब यह एक ऐसे नेता द्वारा दिया गया हो जो एनडीए का हिस्सा है और जिसकी पार्टी ने पिछली बार अलग लड़कर भी कुछ प्रभाव कायम किया था.
राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो चिराग का यह आक्रामक रुख कई स्तरों पर विश्लेषण की मांग करता है. पहला, यह उस असंतोष का प्रतिनिधित्व करता है जो भाजपा और जदयू की साझेदारी में समय-समय पर उभरता रहा है, चाहे वह विचारधारा का टकराव हो या प्रशासनिक प्राथमिकताओं का अंतर. दूसरा, चिराग अपनी स्वतंत्र पहचान और 'पिछड़े वर्गों के सशक्त नेता' की छवि को लगातार मजबूत करने की कोशिश में हैं. ऐसे में नीतीश कुमार की प्रशासनिक विफलताओं पर सवाल उठाना उन्हें जनसरोकारों के प्रतिनिधि के रूप में पेश करता है.
बिहार में अपराध, खासकर महिलाओं और कमजोर वर्गों के खिलाफ हिंसा, एक पुराना और संवेदनशील मुद्दा रहा है. जब सत्ता पक्ष का सहयोगी नेता ही इसे चुनावी वर्ष में प्रमुख सवाल बना देता है, तो यह केवल नीतीश सरकार की छवि पर नहीं बल्कि पूरे एनडीए गठबंधन की नीतिगत जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है.
यह भी गौरतलब है कि चिराग पासवान अपने बयानों में न तो भाजपा पर सीधे हमला करते हैं और न ही प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लेते हैं. यह रणनीति दर्शाती है कि वे नीतीश कुमार से दूरी बनाकर भाजपा के साथ अपने संबंधों को सुरक्षित रखना चाहते हैं, ताकि आने वाले चुनावों में किसी भी गठजोड़ की संभावना खुली रहे.
इस घटनाक्रम का एक व्यापक संकेत यह भी है कि बिहार की राजनीति में 'सहयोगी आलोचना' की नई शैली उभर रही है, जहां सत्ता में साझेदार भी जनता की नाराजगी को भांपकर सरकार पर उंगली उठाने लगे हैं. यह शैली केवल राजनीतिक दबाव का साधन नहीं, बल्कि एक नई राजनीतिक ज़ुबान है, जो मतदाता की भावना से सीधे संवाद करने का प्रयास करती है.
अतः चिराग पासवान की यह आलोचना किसी व्यक्तिगत असंतोष या स्वार्थ की उपज नहीं लगती, बल्कि यह उस सामाजिक असुरक्षा और प्रशासनिक शिथिलता की प्रतिक्रिया है, जिसे आम जनता भी महसूस कर रही है. राजनीति में ऐसी आवाज़ें आने वाले समय में गठबंधनों के समीकरण बदल सकती हैं—बिहार इसका सबसे संभावित प्रयोगशाला बनता जा रहा है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

