नई दिल्ली से विशेष रिपोर्ट.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर सामाजिक न्याय के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरते हुए अंग्रेज़ी माध्यम के निजी स्कूलों में ओबीसी और वंचित वर्गों के लिए आरक्षण लागू करने की मांग उठाई है. संसद में दिए अपने वक्तव्य और सोशल मीडिया पर साझा किए संदेशों में राहुल गांधी ने कहा कि देश में समान अवसर की बात तब तक अधूरी है, जब तक शिक्षा—खासकर अंग्रेज़ी माध्यम की—पर केवल एक विशेष वर्ग का अधिकार बना रहेगा.
राहुल गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसद हैं और देश के सबसे पुराने राजनीतिक परिवार नेहरू-गांधी परिवार के उत्तराधिकारी माने जाते हैं. वे लंबे समय से सामाजिक असमानता, बेरोजगारी और शिक्षा में अवसरों की विषमता जैसे मुद्दों को उठाते रहे हैं. उनका कहना है कि अंग्रेज़ी शिक्षा आज के दौर में एक 'आर्थिक शक्ति' है, जो सामाजिक गतिशीलता को तय करती है. ऐसे में जब तक वंचित वर्गों को निजी अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में प्रवेश नहीं मिलेगा, तब तक सामाजिक समता एक भ्रम बनी रहेगी.
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मंडल आयोग की भावना केवल सरकारी नौकरियों तक सीमित न रह जाए, बल्कि शिक्षा जैसे मूलभूत क्षेत्र में भी उसे लागू किया जाए. उनका मानना है कि निजी स्कूलों को यह कहकर नहीं छोड़ा जा सकता कि वे स्वायत्त संस्थाएं हैं. यदि वे भारतीय संविधान के अंतर्गत पंजीकृत हैं और सार्वजनिक हित में काम करते हैं, तो उन्हें सामाजिक उत्तरदायित्व निभाना ही होगा.
सत्तापक्ष की ओर से इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं. कुछ बीजेपी नेताओं ने इसे 'वोट बैंक की राजनीति' बताया और तर्क दिया कि निजी क्षेत्र पर इस तरह का दबाव शिक्षा की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है. उन्होंने राहुल गांधी पर आरोप लगाया कि वे हर विषय को आरक्षण की राजनीति में बदल देते हैं, जिससे समाज में नई प्रकार की विभाजन रेखाएं खिंच सकती हैं.
वहीं दूसरी ओर, दलित और पिछड़ा वर्ग के कई संगठनों ने राहुल गांधी की इस पहल का समर्थन किया है. उनका कहना है कि यह मांग नई नहीं है, लेकिन पहली बार इस पर राष्ट्रीय स्तर पर इतनी मजबूती से बात हो रही है. यदि इसे नीति में बदला जाता है, तो लाखों गरीब छात्रों के लिए यह एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है.
शिक्षा विशेषज्ञों की राय इस मुद्दे पर बंटी हुई है. कुछ इसे सामाजिक समावेशन की दिशा में महत्वपूर्ण मानते हैं, तो कुछ इसे निजी क्षेत्र की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बता रहे हैं. लेकिन एक बात साफ है—राहुल गांधी की यह मांग केवल एक आरक्षण नीति का विस्तार नहीं, बल्कि सामाजिक समानता की लड़ाई का नया अध्याय बन सकती है.
देश में शिक्षा और समान अवसरों की बहस अब एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है. आने वाले समय में यह देखा जाना बाकी है कि क्या सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर कोई कदम उठाती है, या यह बहस भी राजनीति की गलियों में गुम हो जाएगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

