रिपोर्ट: सुमेधा , शिक्षा संवाददाता, चंडीगढ़ . पंजाब की स्कूली शिक्षा में अब एक नई सोच की दस्तक हुई है. पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड (PSEB) और एनसीईआरटी की मूल्यांकन संस्था PARAKH (Performance Assessment, Review, and Analysis of Knowledge for Holistic Development) ने मिलकर राज्य की परीक्षा प्रणाली में एक बड़ा नवाचार लागू किया है, जिसके तहत अब प्रश्नपत्र केवल शिक्षकों द्वारा नहीं, बल्कि छात्रों और शिक्षकों की साझेदारी में तैयार किए जाएंगे.
यह कदम परीक्षा को रटंत प्रणाली (rote memorization) से मुक्त कर सैद्धांतिक स्पष्टता, विश्लेषण क्षमता और रचनात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है.
उद्देश्य: सोचो, समझो, फिर उत्तर दो
PSEB के अध्यक्ष डॉ. नितिन शर्मा ने कहा, “अब समय आ गया है कि हम परीक्षा को केवल याद रखने की प्रक्रिया न मानें, बल्कि यह जानें कि छात्र किसी विषय को कितनी गहराई से समझते हैं. जब छात्र प्रश्न बनाने की प्रक्रिया में शामिल होंगे, तो वे विषय की अंतर्वस्तु पर सोचने लगेंगे—यही असली शिक्षा है.”
इस पद्धति को पहले चरण में 6 से 10वीं कक्षा तक लागू किया जाएगा. इसे ‘स्टूडेंट्स ऐज़ अससेसर्स’ दृष्टिकोण के तहत डिज़ाइन किया गया है, जिसमें हर विषय के अध्यापक अपने छात्रों के साथ मिलकर संभावित प्रश्नों की सूची तैयार करेंगे.
प्रक्रिया: मिलकर बनाएंगे सोचने वाले प्रश्न
परीक्षा प्रणाली की इस नई व्यवस्था के तहत, हर विषय शिक्षक कक्षा में 4-5 छात्रों की एक “प्रश्न निर्माण समिति” बनाएंगे. इन समूहों को पाठ्यक्रम से जुड़े गहन प्रश्न बनाने का अवसर मिलेगा. इन प्रश्नों को शिक्षक सत्यापित करेंगे और उपयुक्त प्रश्नों को बोर्ड की प्रश्न बैंक प्रणाली में भेजा जाएगा.
PARAKH द्वारा तैयार की गई गाइडलाइन में यह स्पष्ट किया गया है कि प्रश्न इस प्रकार बनाए जाएं जो ‘Lower Order Thinking’ से ‘Higher Order Thinking’ की ओर बढ़ें—जैसे तुलना, विश्लेषण, निर्णय और नवाचार.
छात्र और शिक्षक दोनों के लिए सीख
गुरदासपुर के एक सरकारी स्कूल की अध्यापिका अमृता कौर बताती हैं, “जब छात्रों से कहा गया कि वे विज्ञान के एक अध्याय से प्रश्न सोचें, तो शुरुआत में वे हिचके. लेकिन जल्द ही उन्होंने बहुत अच्छे सवाल बनाए, जैसे – ‘अगर हमारे शरीर में पसीना नहीं निकलता, तो क्या होता?’ ये वही छात्र हैं जो पहले केवल रटना जानते थे.”
इसी तरह 9वीं कक्षा के छात्र यशदीप सिंह कहते हैं, “पहली बार लगा कि हम सिर्फ परीक्षा देने वाले नहीं, परीक्षा को गढ़ने वाले भी बन सकते हैं. अब किताब के हर चैप्टर को एक अलग नजरिए से देखता हूं.”
संभावनाएं और चुनौतियां
यह पहल न केवल परीक्षा के स्वरूप को बदलने जा रही है, बल्कि शिक्षक और छात्र के बीच शिक्षा के साझीदार (co-creators) जैसे रिश्ते को भी मजबूत कर रही है. हालांकि, कुछ शिक्षकों ने इसे समय-खपत और प्रशिक्षण-आवश्यक प्रक्रिया बताया है.
इस पर PARAKH के वरिष्ठ सलाहकार प्रो. अरुण प्रकाश का कहना है, “यह बदलाव तात्कालिक परिणाम नहीं देगा, लेकिन पाँच वर्षों में यह विद्यार्थियों की सोच, भाषा और तर्कशक्ति को पूरी तरह बदल देगा.”
पंजाब की इस नायाब पहल से परीक्षा अब एकतरफा प्रक्रिया नहीं रहेगी. छात्र अब केवल उत्तर देने वाले नहीं, प्रश्न उठाने वाले भी बनेंगे. यह न केवल उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएगा, बल्कि भारत की शिक्षा प्रणाली को पढ़ो, सोचो, समझो और बदलो के रास्ते पर भी अग्रसर करेगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

