डॉ. सत्यवान सौरभ
हर शहर, हर गली, हर मोहल्ले में, जब बच्चे और किशोर पतंग उड़ाने निकलते हैं, तो उनका उद्देश्य केवल आसमान छूना होता है. लेकिन दुर्भाग्य से अब पतंग की यह उड़ान कई बार किसी की जान लेकर ही थमती है. इसका कारण कोई आम धागा नहीं, बल्कि एक जानलेवा उत्पाद है— चाइनीज मांझा. यह मांझा अब केवल पतंगों की डोर नहीं रहा, यह सड़क पर चल रहे आम आदमी की ज़िंदगी का दुश्मन बन चुका है. हर दिन अख़बारों में ऐसी खबरें आती हैं कि फलां व्यक्ति की गर्दन मांझे से कट गई, किसी पक्षी के पर मांझे में उलझकर छिल गए, किसी स्कूली बच्चे का गला बुरी तरह घायल हो गया, कोई बाइक सवार अचानक बेहोश होकर गिर पड़ा, क्योंकि उसे नहीं पता था कि उसकी राह में मौत एक पारदर्शी धागे में लटकी हुई है.
आज की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं, जहाँ टेक्नोलॉजी ने हर चीज को तेज़, धारदार और सस्ता बना दिया है. उसी का दुष्परिणाम है यह चाइनीज मांझा. यह नायलॉन, प्लास्टिक और धातु के महीन रेशों से बना होता है जो देखने में भले ही सामान्य डोर लगे, लेकिन इसमें शीशे की तरह तीखी धार होती है. यह ना टूटता है, ना गलता है और ना ही आसानी से दिखाई देता है. यह हवा में लहराता है और जब किसी की गर्दन, चेहरे या हाथ से टकराता है तो त्वचा को चीरता हुआ शरीर में गहरा घाव छोड़ जाता है. कई मामलों में तो यह मांझा किसी धारदार हथियार की तरह काम करता है और गले की नसों तक को काट देता है, जिससे तुरंत खून का बहाव रुकता नहीं और पीड़ित की जान तक चली जाती है.
सवाल यह है कि जब यह मांझा इतना जानलेवा है, तो इसका खुलेआम व्यापार कैसे हो रहा है? सड़कों के किनारे, बाजारों में, ऑनलाइन वेबसाइटों पर, यह चाइनीज मांझा अब भी बेचा जा रहा है. प्रतिबंध केवल कागज़ों में दर्ज है, जमीनी स्तर पर न कोई कार्रवाई हो रही है, न ही कोई सख्ती. प्रशासन की यह चुप्पी इस मांझे जितनी ही धारदार और खतरनाक है. एक तरह से यह मौन स्वीकृति है उस उत्पाद के लिए, जो हर दिन किसी के खून से लाल हो रहा है. कानून होने के बावजूद जब कार्यवाही नहीं होती, तो जनता का विश्वास टूटता है और गलत व्यापारियों के हौसले और बुलंद हो जाते हैं.
समस्या यह भी है कि इस मांझे को उपयोग करने वालों को इसके दुष्परिणामों की गंभीरता का अंदाजा नहीं होता. उन्हें लगता है कि यह मांझा मजबूत है, इससे पतंगें ज्यादा काटी जा सकती हैं और प्रतिस्पर्धा में जीत हासिल की जा सकती है. पर वे भूल जाते हैं कि यह जीत किसी की जिंदगी की हार बन सकती है. अगर वे एक बार भी अस्पतालों की इमरजेंसी वार्ड में जाकर देखें कि चाइनीज मांझे से घायल लोग कैसी हालत में होते हैं, तो शायद वे कभी भी इसे हाथ में न लें. कई बार तो बच्चे भी इस मांझे के कारण ज़ख्मी होते हैं. उनके नाज़ुक शरीर पर यह मांझा ऐसी चीर देता है जिसे देखकर दिल दहल जाता है. कल्पना कीजिए, एक मासूम बच्चा साइकिल चला रहा हो और अचानक उसके चेहरे से यह मांझा लिपट जाए— उसकी आंखों, गालों या गर्दन पर जो जख्म होगा, वह जीवनभर नहीं भरेगा.
यह मांझा केवल इंसानों के लिए नहीं, पशु-पक्षियों के लिए भी अभिशाप बन गया है. हर वर्ष हज़ारों पक्षी पतंगों के इस मांझे में फंसकर घायल होते हैं या दम तोड़ देते हैं. खासकर मकर संक्रांति और स्वतंत्रता दिवस जैसे अवसरों पर जब पतंगबाज़ी चरम पर होती है, तो आकाश में उड़ती चीलें, कबूतर, तोते और अन्य पक्षी इस मांझे में उलझकर घायल हो जाते हैं. कई पक्षियों के पर कट जाते हैं, कुछ की आंखें फूट जाती हैं और कुछ तो पेड़ों या छतों से उलझे मांझे में लटककर मर जाते हैं. ये दृश्य किसी भी संवेदनशील इंसान को भीतर से झकझोर देते हैं, पर दुर्भाग्य है कि पतंग के खेल में हम केवल अपनी जीत का रोमांच देखते हैं, किसी की जान जाने की पीड़ा नहीं.
प्रशासन अगर चाहे, तो इस पर तुरंत कार्रवाई हो सकती है. सबसे पहले तो सभी जिलों में विशेष अभियान चलाकर चाइनीज मांझे की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लागू करना होगा. बाजारों में दुकानों की नियमित जांच की जाए और जिस भी व्यापारी के पास यह मांझा पाया जाए, उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. केवल जुर्माना नहीं, बल्कि जेल की सज़ा का प्रावधान भी होना चाहिए ताकि लोग डरें. साथ ही समाज के स्तर पर भी जागरूकता अभियान ज़रूरी है. स्कूलों, कॉलोनियों, पंचायतों और युवाओं के बीच इस मांझे के दुष्परिणामों की जानकारी दी जाए. रेडियो, टीवी और सोशल मीडिया के ज़रिए इसे आम जनता तक पहुंचाया जाए.
यह ज़िम्मेदारी सिर्फ प्रशासन की नहीं, हम सबकी है. अगर हममें से हर कोई संकल्प ले कि हम इस मांझे का उपयोग नहीं करेंगे, तो व्यापारी खुद-ब-खुद इसे बेचना बंद कर देंगे. हर घर में यह निर्णय लिया जाए कि बच्चों को इस मांझे से दूर रखा जाएगा और उन्हें समझाया जाएगा कि जीत वही सच्ची होती है जो दूसरों को हानि पहुंचाए बिना हासिल की जाए. आखिर इंसानियत से बढ़कर कोई खेल नहीं हो सकता.
यह भी समझना होगा कि हमारी सड़कों पर यह मांझा केवल दुर्घटना नहीं, एक हत्या का माध्यम बन चुका है. कोई बाइक सवार जो रोज़ की तरह अपने काम पर जा रहा था, उसकी गर्दन कट जाती है और वह मौके पर ही दम तोड़ देता है. परिवार इंतज़ार करता रह जाता है, लेकिन लौटता है एक शव. यह घटना अब दुर्लभ नहीं, बार-बार हो रही है. इसे दुर्घटना कहना अब अपराध है. इसे रोकना नैतिक, कानूनी और मानवीय कर्तव्य है.
चाइनीज मांझे पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए जितनी जल्दी कदम उठाए जाएंगे, उतनी ही जल्दी हम अनगिनत ज़िंदगियाँ बचा सकते हैं. अगर हम अब भी नहीं जागे, तो आने वाले समय में यह मांझा किसी अपने की जान लेकर ही चेतावनी बनेगा.
एक सभ्य समाज वह नहीं जो केवल कानून बनाए, बल्कि वह होता है जो हर व्यक्ति की सुरक्षा की गारंटी देता है. और जब सड़कों पर, छतों पर, आसमान में मौत इस मांझे के रूप में तैर रही हो, तब सबसे ज़रूरी है इस मौत की डोर को काट देना. अब वक्त आ गया है कि हम कहें – 'पतंग उड़ाइए, लेकिन ज़िंदगी नहीं गिराइए.'