भारत और इंग्लैंड के बीच चल रही टेस्ट श्रृंखला में एक अप्रत्याशित विवाद ने क्रिकेट जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा है. ओल्ड ट्रैफर्ड के मैदान पर फाइनल टेस्ट से ठीक पहले भारत के मुख्य कोच गौतम गंभीर और सरे ग्राउंड स्टाफ हेड ली फोर्टिस के बीच हुई तीखी बहस अब टीम इंडिया के लिए सिर्फ एक तकनीकी असहमति नहीं, बल्कि रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर एक चुनौती बन गई है.
इस झड़प की जड़ में था – एक मामूली सा दिखने वाला निर्देश: “कृपया पिच से 2.5 मीटर दूर रहें.” लेकिन जब यह निर्देश उस समय आया जब गंभीर पिच के मूड को समझने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्होंने इसे ‘मेजबान का दंभ’ मानते हुए खुले तौर पर विरोध किया. फोर्टिस का दावा था कि यह नियम ICC की गाइडलाइन के तहत दिया गया था, जबकि गंभीर का कहना था कि उन्हें जानबूझकर टार्गेट किया जा रहा है.
यह केवल विवाद नहीं, मनोवैज्ञानिक मोर्चा है
क्रिकेट एक मानसिक खेल है. ऐसे में किसी बड़े मुकाबले से पहले कोच और सपोर्ट स्टाफ का माहौल में तनाव होना सीधे खिलाड़ियों के आत्मविश्वास पर असर डालता है. गंभीर एक आक्रामक और बौद्धिक कोच के रूप में जाने जाते हैं. वे हर पहलू पर गहरी रणनीतिक सोच रखते हैं — पिच का स्वभाव, वातावरण की नमी, घास की बनावट तक. ऐसे में जब उन्हें पिच के पास जाकर निरीक्षण से रोका गया, तो उनके अंदर एक अनुभवी खिलाड़ी और रणनीतिकार की बेचैनी फूट पड़ी.
टीम इंडिया के खिलाड़ियों ने इस घटना को सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन बीसीसीआई के सूत्रों का कहना है कि यह तनाव ड्रेसिंग रूम में चर्चा का विषय है. खिलाड़ियों को यह संदेश गया है कि उन्हें “सिर्फ खेल पर ध्यान केंद्रित करना है”, लेकिन टीम प्रबंधन इस असहजता से इंकार नहीं कर रहा.
फाइनल टेस्ट की रणनीति पर असर
इस विवाद से पहले ही भारत इंग्लैंड की बल्लेबाजी-अनुकूल परिस्थितियों से जूझ रहा है. श्रृंखला अब निर्णायक मोड़ पर है और पिच की प्रकृति इस मैच के परिणाम में अहम भूमिका निभा सकती है. गंभीर के लिए पिच का बारीकी से निरीक्षण केवल एक आदत नहीं, बल्कि एक युद्ध-पूर्व रणनीतिक अवलोकन होता है.
यदि उन्हें यह अवसर ठीक से नहीं मिला, तो भारत की गेंदबाजी रणनीति प्रभावित हो सकती है — विशेषकर तब जब टीम पहले ही अश्विन और सिराज जैसे सीनियर बॉलर्स के फॉर्म को लेकर चिंता में है.
इंग्लिश मीडिया का रुख और ICC की चुप्पी
इंग्लैंड के कई प्रमुख मीडिया हाउस इस विवाद को “भारत की आक्रामकता” की तरह पेश कर रहे हैं. कुछ चैनलों ने इसे “गंभीर का अनुशासनहीन व्यवहार” तक कहा है, जबकि भारतीय मीडिया इसे “तकनीकी बहाने के ज़रिए होस्ट की टैक्टिकल चाल” मान रहा है.
ICC ने अब तक इस मुद्दे पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है. सूत्रों का कहना है कि ICC इसे ‘स्थानीय आयोजन समिति और टीम मैनेजमेंट के बीच का मामला’ मानकर मामले से दूरी बनाए रखना चाहती है.
गौतम गंभीर की शैली और विवाद
गंभीर कोई सामान्य कोच नहीं हैं. वे आक्रामक, असहमत होने से न डरने वाले और अपनी टीम के लिए किसी भी सीमा तक खड़े रहने वाले कोच हैं. लेकिन उनके इस स्वभाव को कभी-कभी ‘टकरावपूर्ण’ भी कहा जाता है. इससे पहले IPL में भी वे अंपायरिंग और विपक्षी कोचों से भिड़ चुके हैं.
हालांकि, उनकी आलोचना करने वाले भी यह मानते हैं कि वे टीम के लिए समर्पित हैं और खिलाड़ियों को एक उद्देश्य के साथ तैयार करते हैं. इस विवाद में भी गंभीर ने अपने बयान में कहा, “मैंने सिर्फ वही किया जो मेरी टीम के हित में था.”
भारत के लिए आगे की चुनौती
यह विवाद किसी खिलाड़ी का नहीं, मुख्य कोच का है — और यह समय निर्णायक है. अगर टीम इंडिया इस घटना को एकजुटता के मौके में बदल देती है, तो यह उनके लिए प्रेरणा बन सकता है. लेकिन यदि यह अंदरूनी मनोबल को खा गया, तो यह फाइनल टेस्ट की तैयारियों में एक अनावश्यक दरार बन जाएगा.
टीम प्रबंधन को अब यह तय करना होगा कि वे इस मुद्दे को “साइड स्टोरी” बनाकर छोड़ दें या इसका उपयोग अपने भीतर जोश पैदा करने के लिए करें.
क्रिकेट अब केवल रन और विकेट का खेल नहीं रह गया है. यह रणनीति, मानस, और व्यवहार की परतों में छिपी एक प्रतिस्पर्धा है. गंभीर और ग्राउंड स्टाफ के बीच की यह बहस भी उसी व्यापक संदर्भ का एक प्रतिबिंब है.
इसका जवाब फाइनल टेस्ट में नहीं, भारतीय टीम के मानसिक संतुलन और एकजुटता में मिलेगा. पिच चाहे जैसी भी हो, अगर टीम का मनोबल ऊँचा रहा, तो यह विवाद केवल एक फुटनोट बनकर रह जाएगा — एक बड़ी जीत की प्रस्तावना नहीं तो प्रेरणा अवश्य.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

