गिरीश बिल्लौरे मुकुल
भारतीय सिनेमा के परदे पर जबलपुर की एक बेटी ने अपने अभिनय से एक गहरी छाप छोड़ी है. हम बात कर रहे हैं अभिनेत्री आरती जोशी की, जिन्होंने हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म धड़क 2 में एक परंपरावादी मां की भूमिका निभाकर न केवल दर्शकों का दिल जीता, बल्कि सामाजिक विमर्श को भी गहराई दी. फिल्म भले ही एक प्रेम कहानी के रूप में शुरू होती है, लेकिन इसका मूल कथानक जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता जैसे ज्वलंत मुद्दों से टकराता है. आरती का अभिनय इस पूरी संवेदनशील कहानी में एक भावनात्मक धुरी की तरह काम करता है, जो फिल्म को ज़मीन से जोड़ता है.
भारतीय सिनेमा अब सिर्फ प्रेम कहानियों और एक्शन दृश्यों का संसार नहीं रह गया है, बल्कि वह समाज के भीतर छिपे असमानताओं, संघर्षों और बदलाव की चेतना का माध्यम भी बनता जा रहा है. 1 अगस्त 2025 को रिलीज़ हुई धर्मा प्रोडक्शन्स की नई फिल्म धड़क 2 इसका ज्वलंत उदाहरण है. यह सिर्फ एक रोमांटिक ड्रामा नहीं, बल्कि भारतीय समाज की गहराई में मौजूद जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता को निडरता से उजागर करने वाली कृति है.
धड़क 2 का सामाजिक परिप्रेक्ष्य
धड़क 2, वर्ष 2018 में आई हिट फिल्म "धड़क" का सीक्वल और तमिल सिनेमा की चर्चित फिल्म "परियेरम पेरुमल" का हिंदी रीमेक है. लेकिन यह महज़ रूपांतरण नहीं है—यह एक नया दृष्टिकोण है, जिसमें निर्देशक शाजिया इक़बाल ने न केवल प्रेम की जटिलता को छुआ है, बल्कि वर्ग और जाति आधारित सोच की कठोर दीवारों को भी चुनौती दी है.
कहानी एक युवा जोड़े की है जो प्रेम की राह में सामाजिक पाबंदियों, पारिवारिक दवाब और आत्म-चेतना की लड़ाई लड़ता है. फिल्म का दूसरा भाग पहले की तुलना में अधिक परिपक्व, संवेदनशील और विचारोत्तेजक है.
जबलपुर की आरती जोशी का दमदार अभिनय
इस सामाजिक विमर्श की पृष्ठभूमि में एक किरदार ऐसा है जो फिल्म को ज़मीन से जोड़ता है—वह है एक परंपरावादी मां का पात्र, जिसे निभाया है जबलपुर की अभिनेत्री आरती जोशी ने.
आरती जोशी ने फिल्म में उस पीढ़ी की आवाज़ को जिया है जो परंपराओं को छोड़ने से डरती है, लेकिन बेटे के निर्णयों से टकराने की तकलीफ भी झेलती है. उनकी भावनात्मक दृढ़ता और आंतरिक द्वंद्व को जिस सच्चाई से पर्दे पर उतारा गया है, वह दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ता है.
बारात में उनका पारंपरिक नृत्य प्रदर्शन फिल्म का ऐसा दृश्य बन गया है, जिसे देखने के बाद दर्शक न केवल ताली बजाते हैं, बल्कि उस पात्र की पीड़ा और प्रेम को भी महसूस करते हैं. यह अभिनय उनकी मां, दिवंगत अभिनेत्री पुष्पा जोशी की अभिनय विरासत का विस्तार जैसा लगता है.
आरती जोशी का अब तक का सफर
जबलपुर में जन्मी और पली-बढ़ी आरती जोशी ने अभिनय को अपना शौक और सामाजिक अभिव्यक्ति का माध्यम दोनों बनाया. वर्तमान में इंदौर में एक सफल बिजनेसवुमन होने के बावजूद, उन्होंने सिनेमा को एक सार्थक मंच माना.
इससे पहले वे प्रसिद्ध निर्देशक नीरज घायवान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गई फिल्म "होमबाउंड" में भी अभिनय कर चुकी हैं, जिसे कांस फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया है. हालाँकि वह फिल्म अभी रिलीज़ नहीं हुई है, पर समीक्षकों में उनकी भूमिका को लेकर पहले से उत्सुकता बनी हुई है.
फिल्म का महत्व क्यों बढ़ जाता है
धड़क 2 की महत्ता इसलिए भी है क्योंकि यह उस वर्ग को परदे पर लाता है जिसे अक्सर हिंदी सिनेमा केवल सहानुभूति की दृष्टि से दिखाता रहा है. लेकिन यहां किरदारों की पीड़ा और विद्रोह दोनों को गहराई से उभारा गया है. साथ ही फिल्म दिखाती है कि बदलाव केवल युवा पीढ़ी से नहीं, बल्कि उन माताओं-पिताओं से भी शुरू होता है, जो भीतर से टूटते हुए भी अपने बच्चों के लिए समर्थन का रास्ता खोजते हैं.
स्थानीय गौरव, राष्ट्रीय पहचान
जबलपुर की आरती जोशी का इस फिल्म में होना न केवल मध्यप्रदेश, बल्कि भारत के उन सभी प्रतिभाशाली कलाकारों का प्रतिनिधित्व करता है जो मुख्यधारा सिनेमा में गहराई, गरिमा और ज़मीनी सच्चाई को लाना चाहते हैं. उनका अभिनय दर्शाता है कि क्षेत्रीय प्रतिभा किसी भी राष्ट्रीय मंच पर समान रूप से दमदार उपस्थिति दर्ज करा सकती है.यदि आप एक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो सिर्फ रोमांस नहीं बल्कि समाज का आईना भी हो, जो दिल को छूने के साथ दिमाग को भी झकझोर दे, तो धड़क 2 निश्चित ही आपके लिए है. और आरती जोशी का किरदार आपको यह महसूस कराएगा कि मां सिर्फ रिश्तों की संरक्षक नहीं, बल्कि परिवर्तन की पहली शिला भी हो सकती है.

