दिशोम गुरु शिबू सोरेन: सूदखोर महाजनों के विरुद्ध संघर्ष से झारखंड आंदोलन तक का सफर

दिशोम गुरु शिबू सोरेन: सूदखोर महाजनों के विरुद्ध संघर्ष से झारखंड आंदोलन तक का सफर

प्रेषित समय :20:50:45 PM / Mon, Aug 4th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अनिल मिश्र / रांची

झारखंड आंदोलन के प्रखर योद्धा, झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और तीन बार झारखंड प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सोमवार सुबह 8:56 बजे दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया. वे 81 वर्ष के थे और किडनी संबंधी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. पिछले डेढ़ महीने से वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे. उनके निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित अनेक राष्ट्रीय और प्रांतीय नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है.

पिता की हत्या से उपजा प्रतिरोध, बना आंदोलन
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा गांव में हुआ था. वे जब मात्र 13 वर्ष के थे, तब सूदखोर महाजनों ने उनके पिता शोभराय सोरेन की हत्या कर दी थी. इस दर्दनाक घटना के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनी शोषण के खिलाफ आदिवासियों को संगठित करने का संकल्प लिया.

धान कटनी आंदोलन से मिली पहचान
1970 के दशक में उन्होंने सूदखोरों के खिलाफ ‘धान कटनी आंदोलन’ की शुरुआत की, जिसने उन्हें व्यापक जनसमर्थन दिलाया. महाजनों की नाराज़गी झेलते हुए वे गांव-गांव जाकर आदिवासियों को जागरूक करते थे. एक बार महाजनों के गुंडों ने उन्हें घेर लिया, तब उन्होंने बाइक समेत उफनती बराकर नदी में छलांग लगाई और तैरकर पार कर गए. इसे लोग दैवीय चमत्कार मान बैठे और तभी से उन्हें 'दिशोम गुरु' — यानी संताली भाषा में ‘देश का गुरु’ — कहा जाने लगा.

झारखंड राज्य निर्माण में निर्णायक भूमिका
शिबू सोरेन झारखंड राज्य की मांग को लेकर एक प्रमुख चेहरा बने. यह वही दौर था जब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव कहा करते थे कि "मेरी लाश पर झारखंड बनेगा", लेकिन राजनीतिक यथार्थ ने करवट ली और शिबू सोरेन ने लालू प्रसाद यादव को समर्थन देकर उन्हीं के शासनकाल में झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 को करा दिया.

मुख्यमंत्री से केंद्रीय मंत्री तक
झारखंड राज्य बनने के बाद उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली — मार्च 2005 में पहली बार 10 दिन, फिर अगस्त 2008 से जनवरी 2009 तक, और जुलाई 2009 से मई 2010 तक. वे झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) के अध्यक्ष रहे, जो आज इंडिया गठबंधन का हिस्सा है. संसदीय राजनीति में भी वे एक सशक्त उपस्थिति रहे — 1980 से 2019 तक दुमका से लोकसभा सांसद रहे और तीन बार केंद्र सरकार में कोयला मंत्री की जिम्मेदारी निभाई.

आदिवासी अस्मिता के प्रतीक
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन आदिवासी अधिकारों, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, और सांस्कृतिक अस्मिता की लड़ाई के लिए समर्पित रहा. झारखंड में उन्हें भगवान बिरसा मुंडा के बाद सबसे बड़ा जननायक माना जाता है. उनका जीवन संघर्ष, नेतृत्व और बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-