नई दिल्ली. भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में एक नया तनाव उभर आया है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत से आयातित कई उत्पादों पर 50% आयात शुल्क लगाने की घोषणा के बाद देश में एक बड़ा जनमत उभर रहा है, जो अमेरिकी ब्रांडों के बहिष्कार और स्वदेशी उत्पादों के समर्थन की ओर झुक रहा है.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स — विशेषकर X (पूर्व में ट्विटर), इंस्टाग्राम और फेसबुक — पर #BoycottUSBrands और #AatmanirbharBharat ट्रेंड कर रहे हैं. इन हैशटैग्स के तहत हजारों पोस्ट्स में मैकडोनाल्ड्स, कोका-कोला, अमेज़न और एप्पल जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ अपील की जा रही है.
विरोध का कारण और पृष्ठभूमि
अमेरिका का यह कदम ट्रम्प के पुराने "America First" नीति के पुनर्जीवन के तौर पर देखा जा रहा है. उनके कार्यकाल में पहले भी कई देशों, जिनमें भारत शामिल था, पर ऊँचे आयात शुल्क लगाए गए थे. इस बार का 50% टैरिफ कई ऐसे भारतीय निर्यात उत्पादों पर लागू होगा, जो अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धी माने जाते हैं — जैसे इंजीनियरिंग गुड्स, वस्त्र, और कुछ आईटी उपकरण. भारत सरकार ने इसे "अनुचित और व्यापारिक असंतुलन पैदा करने वाला" कदम बताया है, और WTO में चुनौती देने की संभावना जताई है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह टैरिफ भारत के छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए झटका है, क्योंकि अमेरिकी बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति कमजोर हो सकती है.
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
टैरिफ के ऐलान के कुछ ही घंटों में भारतीय उपभोक्ताओं के बीच नाराजगी फैल गई. सोशल मीडिया यूजर्स ने अमेरिकी ब्रांड्स का बहिष्कार करने के लिए मीम्स, पोस्टर और वीडियो साझा किए. कई पोस्ट्स में ‘अमेरिकी उत्पाद छोड़ो, देसी अपनाओ’ जैसे नारे दिखाई दे रहे हैं.
एक यूजर ने लिखा, “जब वे हमारे सामान पर 50% टैक्स लगा सकते हैं, तो हमें उनके बर्गर, कोल्ड ड्रिंक और मोबाइल क्यों खरीदने चाहिए?”
दूसरे यूजर ने अमेज़न ऐप डिलीट करने का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए कहा, “अब से केवल भारतीय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का उपयोग करूंगा.”
‘आत्मनिर्भर भारत’ का पुनर्जागरण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2020 में शुरू किया गया ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान महामारी के दौरान घरेलू उत्पादन और उपभोग पर जोर देने के लिए जाना गया था. यह बहिष्कार अभियान उसी भावना को फिर से जीवित कर रहा है. कई व्यापारिक संगठन और स्टार्टअप संस्थापक भी इस ट्रेंड को समर्थन दे रहे हैं.
भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के एक सदस्य ने कहा, “यह समय है कि हम घरेलू ब्रांडों को वह सम्मान और बाजार हिस्सेदारी दें, जिसके वे हकदार हैं. यदि उपभोक्ता भारतीय कंपनियों को प्राथमिकता देंगे, तो हम न केवल रोजगार बढ़ा सकते हैं, बल्कि विदेशी दबाव से भी मुक्त हो सकते हैं.”
आर्थिक प्रभाव — दोनों तरफ की चोट
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बहिष्कार केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि संभावित रूप से व्यापारिक परिदृश्य को बदलने वाला कदम हो सकता है. अमेरिकी ब्रांडों का भारत में बड़ा उपभोक्ता आधार है — जैसे मैकडोनाल्ड्स के 350 से अधिक आउटलेट, कोका-कोला की विशाल सप्लाई चेन, अमेज़न का ई-कॉमर्स मार्केट शेयर और एप्पल की बढ़ती प्रीमियम फोन बिक्री.
यदि यह बहिष्कार लंबे समय तक जारी रहता है, तो अमेरिकी कंपनियों को भारत में राजस्व में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है. वहीं, अमेरिकी टैरिफ भारतीय निर्यातकों को भी नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार में कमी आ सकती है.
एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने कहा, “यह एक दोधारी तलवार है. भावनात्मक स्तर पर बहिष्कार सही लग सकता है, लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि भारत-अमेरिका व्यापार आपसी निर्भरता पर आधारित है.”
राजनीति और जनमत
यह मुद्दा जल्दी ही राजनीतिक रंग भी लेने लगा है. विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वे अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ कड़े कदम उठाने में देर कर रहे हैं. कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने कहा, “जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि भारत आत्मनिर्भर है, तो अमेरिकी टैरिफ पर उनकी चुप्पी क्यों है?”
वहीं, बीजेपी नेताओं का कहना है कि भारत सरकार WTO में इस मुद्दे को मजबूती से उठाएगी और घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष योजनाएं लाएगी.
उपभोक्ता व्यवहार में संभावित बदलाव
मार्केट रिसर्च फर्म्स का अनुमान है कि यदि बहिष्कार अभियान कुछ महीनों तक चलता है, तो उपभोक्ता व्यवहार में स्थायी बदलाव हो सकता है. उदाहरण के तौर पर, कोका-कोला की जगह कई लोग स्थानीय पेय ब्रांड अपनाने लगेंगे, और अमेज़न की बजाय फ्लिपकार्ट, मेशो या टाटा-नीयो जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग बढ़ सकता है.
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अमेरिकी व्यापार परिषद ने एक बयान में कहा कि टैरिफ भारत के खिलाफ नहीं, बल्कि “वैश्विक व्यापार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने” के लिए है. हालांकि, अमेरिकी मीडिया ने यह भी रिपोर्ट किया कि भारत में बहिष्कार की बढ़ती मांग से अमेरिकी कंपनियां चिंतित हैं.
भावनाओं से आगे रणनीति की जरूरत
स्पष्ट है कि 50% टैरिफ ने भारत में न केवल आर्थिक बल्कि भावनात्मक प्रतिक्रिया भी पैदा कर दी है. बहिष्कार अभियान ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना को मजबूती दे सकता है, लेकिन दीर्घकालिक लाभ तभी मिलेंगे, जब भारत समानांतर रूप से घरेलू उद्योगों की गुणवत्ता, उत्पादन क्षमता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने पर ध्यान देगा.
आगामी महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बहिष्कार आंदोलन केवल सोशल मीडिया ट्रेंड बनकर रह जाता है, या फिर यह भारत के उपभोक्ता बाजार और विदेश व्यापार नीति में वास्तविक बदलाव लाने वाला मोड़ साबित होता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

