भारतीय क्रिकेट में टीम चयन हमेशा से ही चर्चा और विवाद का विषय रहा है. जब भी कोई बड़ा टूर्नामेंट आता है, चयनकर्ताओं की हर बैठक पर क्रिकेटप्रेमियों की निगाहें टिकी रहती हैं. एशिया कप 2025 के मद्देनज़र मुंबई में आज चयन समिति की बैठक हो रही है और इसमें सबसे बड़ा मुद्दा जो उभरकर सामने आया है, वह है टेस्ट कप्तान शुभमन गिल को T20I टीम से बाहर करने की संभावना. यह खबर जैसे ही मीडिया में आई, क्रिकेट जगत में हलचल मच गई.
शुभमन गिल को पिछले दो सालों में भारतीय क्रिकेट का उभरता हुआ चेहरा माना जा रहा है. उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में न सिर्फ कप्तानी की कमान संभाली है, बल्कि अपने बेहतरीन प्रदर्शन से यह साबित किया है कि वे लंबे फॉर्मेट में भरोसेमंद खिलाड़ी हैं. उनके बल्ले से कई यादगार पारियां निकलीं, जिन्होंने भारत को कठिन परिस्थितियों में जीत दिलाई. लेकिन सवाल यह है कि जब वे इतने सफल खिलाड़ी हैं, तो उन्हें T20I टीम से बाहर करने की चर्चा क्यों हो रही है.
दरअसल, भारतीय टीम मैनेजमेंट और चयनकर्ताओं का मानना है कि गिल का खेल लंबी पारियों के लिए ज्यादा अनुकूल है. उनका बल्लेबाजी स्टाइल और टेम्परामेंट टेस्ट और वनडे जैसे फॉर्मेट में ज्यादा असरदार दिखाई देता है, लेकिन टी20 जैसे तेज़ खेल में उनका स्ट्राइक रेट और पावर हिटिंग क्षमता कई बार सवालों के घेरे में रही है. हाल ही में हुए टी20 सीरीज में गिल का प्रदर्शन उतना प्रभावी नहीं रहा, जितनी उनसे उम्मीद थी.
टी20 क्रिकेट में जहां शुरुआती छह ओवर पावरप्ले के दौरान तेज़ रन बनाने की अपेक्षा होती है, वहां गिल अक्सर थोड़े धीमे दिखाई देते हैं. चयनकर्ताओं के सामने यह दुविधा रही है कि क्या उन्हें ऐसे खिलाड़ी की ज़रूरत है, जो एंकर की भूमिका निभाए या फिर ऐसे बल्लेबाज की जो पहले ही ओवर से आक्रामक खेल दिखाए. भारतीय टीम के पास पहले से ही विराट कोहली जैसे एंकर बल्लेबाज हैं और हार्दिक पंड्या, सूर्यकुमार यादव, ऋषभ पंत जैसे धाकड़ हिटर मौजूद हैं. ऐसे में शुभमन गिल का स्थान स्वतः ही चुनौतीपूर्ण हो गया है.
गिल के समर्थकों का कहना है कि किसी भी खिलाड़ी को सिर्फ स्ट्राइक रेट के आधार पर जज करना उचित नहीं है. उनका कहना है कि गिल जैसे तकनीकी रूप से सक्षम बल्लेबाज किसी भी परिस्थिति में टिककर रन बना सकते हैं और बड़े मैचों में उनका धैर्य काम आता है. वहीं आलोचकों का तर्क है कि टीम इंडिया के पास अब युवा और अधिक आक्रामक बल्लेबाजों का विकल्प है, जो टी20 क्रिकेट की मांग को पूरा करते हैं.
इस विवाद के बीच यह भी सवाल उठता है कि गिल का कप्तानी पर क्या असर पड़ेगा. अगर उन्हें T20I टीम से बाहर कर दिया जाता है, तो इसका उनके मनोबल पर गहरा असर पड़ सकता है. वे फिलहाल टेस्ट कप्तान हैं और आने वाले समय में उन्हें वनडे कप्तानी का दावेदार भी माना जा रहा है. लेकिन अगर उन्हें छोटे फॉर्मेट में नज़रअंदाज़ किया जाता है, तो यह उनकी इमेज और आत्मविश्वास पर चोट कर सकता है.
क्रिकेट इतिहास में यह पहली बार नहीं है जब किसी खिलाड़ी को एक फॉर्मेट में कप्तानी और दूसरे फॉर्मेट में बाहर कर दिया गया हो. पहले भी एम.एस. धोनी, विराट कोहली, अजिंक्य रहाणे और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ियों ने फॉर्मेट्स के बीच कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. लेकिन शुभमन गिल का मामला खास इसलिए है क्योंकि वे युवा हैं और अभी अपने करियर की शुरुआत में ही इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं.
चयन समिति का यह कदम भारतीय क्रिकेट के भविष्य की रणनीति को भी दर्शा सकता है. टीम मैनेजमेंट शायद यह सोच रहा है कि गिल को टेस्ट और वनडे पर ध्यान केंद्रित करने दिया जाए और टी20 टीम में ऐसे खिलाड़ियों को मौका दिया जाए, जो तुरंत मैच का पासा पलटने की क्षमता रखते हों. यह भी संभव है कि आने वाले टी20 विश्व कप को ध्यान में रखते हुए चयनकर्ता ऐसी टीम बनाना चाह रहे हों, जो पूरी तरह से आक्रामक खेल पर आधारित हो.
गिल के प्रशंसक इस खबर से निराश हैं. सोशल मीडिया पर लोग उनकी तारीफ करते हुए लिख रहे हैं कि गिल को बाहर करना उनके साथ नाइंसाफी होगी. ट्विटर और इंस्टाग्राम पर हैशटैग #JusticeForGill और #ShubmanInT20Team ट्रेंड कर रहे हैं. वहीं कुछ क्रिकेट विशेषज्ञ मानते हैं कि चयनकर्ताओं का यह कदम सही दिशा में है, क्योंकि टी20 क्रिकेट का मूल मंत्र तेज़ रन और पावर हिटिंग है.
गौरतलब है कि गिल ने अभी तक टी20 अंतरराष्ट्रीय में 50 से अधिक मैच खेले हैं और उनका औसत करीब 28 से 30 के बीच रहा है, जबकि स्ट्राइक रेट 130 के आस-पास. ये आंकड़े बुरे नहीं कहे जा सकते, लेकिन तुलना करें तो सूर्यकुमार यादव, ईशान किशन या यहां तक कि शुभमन के समकालीन यशस्वी जायसवाल का स्ट्राइक रेट कहीं बेहतर रहा है.
बीसीसीआई की बैठक में सिर्फ गिल ही नहीं, बल्कि अन्य खिलाड़ियों को लेकर भी कई अहम फैसले लिए जा सकते हैं. माना जा रहा है कि कुछ अनुभवी खिलाड़ियों को विश्राम देकर नए चेहरों को आजमाया जाएगा. चयन समिति इस बार युवा और अनुभव का संतुलन बनाने पर ध्यान दे रही है.
यह पूरा मामला सिर्फ टीम चयन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय क्रिकेट की बदलती प्राथमिकताओं को भी दिखाता है. टेस्ट क्रिकेट और वनडे की तुलना में टी20 का अपना अलग दबाव और अपेक्षाएं हैं. एक बल्लेबाज को वहां सिर्फ तकनीक और धैर्य नहीं, बल्कि विस्फोटकता भी दिखानी होती है. शुभमन गिल की क्रिकेट शैली अगर इस अपेक्षा पर खरी नहीं उतरती, तो उन्हें बाहर किया जाना एक रणनीतिक फैसला हो सकता है.
हालांकि, यह भी सच है कि हर खिलाड़ी को खुद को सुधारने का मौका मिलना चाहिए. गिल के पास समय है और वे चाहें तो अपनी बल्लेबाजी शैली में बदलाव करके टी20 क्रिकेट के लिए और प्रभावी बन सकते हैं. कई दिग्गज खिलाड़ियों ने अपने खेल को परिस्थिति और फॉर्मेट के अनुसार ढाला है. गिल के पास भी यही अवसर है कि वे अपनी बल्लेबाजी में नई तकनीक और शॉट रेंज जोड़ें.
क्रिकेट सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं है, यह मानसिकता और आत्मविश्वास का खेल भी है. गिल को बाहर करने की संभावना चाहे चयन समिति का रणनीतिक फैसला हो, लेकिन इसका असर लंबे समय तक देखा जाएगा. अगर गिल ने इस झटके को प्रेरणा में बदल दिया, तो वे और मजबूत होकर लौट सकते हैं. वहीं अगर इस फैसले ने उनके आत्मविश्वास को चोट पहुंचाई, तो यह उनके करियर के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है.
कुल मिलाकर, एशिया कप 2025 का टीम चयन भारतीय क्रिकेट के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है. शुभमन गिल को लेकर जो चर्चाएं हो रही हैं, वे सिर्फ एक खिलाड़ी की बात नहीं हैं, बल्कि यह इस बात का संकेत भी हैं कि भारतीय क्रिकेट अब हर फॉर्मेट के लिए अलग-अलग रणनीति अपना रहा है. टेस्ट और वनडे में जहां स्थिरता और तकनीक को महत्व दिया जा रहा है, वहीं टी20 में विस्फोटकता और पावर हिटिंग प्राथमिकता बन गई है.
आगामी कुछ दिनों में चयन समिति की आधिकारिक घोषणा के बाद तस्वीर साफ होगी. तब पता चलेगा कि गिल वास्तव में टीम से बाहर किए जाते हैं या उन्हें एक और मौका मिलता है. लेकिन एक बात तय है—यह चर्चा आने वाले समय में भारतीय क्रिकेट के विमर्श का केंद्र बनी रहेगी और यह देखना दिलचस्प होगा कि शुभमन गिल इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

