भारतीय क्रिकेट में पिछले कुछ वर्षों से जिस बहस ने लगातार जोर पकड़ा है, वह है टीम इंडिया में ‘स्टार कल्चर’ की मौजूदगी और उसके असर का सवाल. क्रिकेट की दुनिया में भारत हमेशा से बड़े नामों और करिश्माई खिलाड़ियों के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन कई बार यही ‘स्टारडम’ टीम की सामूहिकता और प्रदर्शन के लिए चुनौती बन जाता है. ऐसे दौर में जब भारतीय क्रिकेट नई पीढ़ी के खिलाड़ियों के साथ संक्रमण काल से गुजर रहा है, टीम के भीतर अनुशासन और सामूहिकता की संस्कृति स्थापित करना बेहद अहम है. इसी दिशा में हाल ही में नियुक्त हुए मुख्य कोच गौतम गंभीर की पहल पर पूर्व क्रिकेटर इरफान पठान ने जोरदार समर्थन दिया है.
इरफान पठान, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को बतौर ऑलराउंडर कई यादगार योगदान दिए, हमेशा से स्पष्टवादी माने जाते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया और मीडिया बाइट्स में साफ कहा कि गंभीर का यह दृष्टिकोण भारतीय क्रिकेट के भविष्य के लिए जरूरी है. उनके मुताबिक, लंबे समय से चली आ रही ‘स्टार कल्चर’ की प्रवृत्ति ने कभी-कभी युवा खिलाड़ियों को दबाव में डाला है, और टीम में आपसी संतुलन को भी प्रभावित किया है. इरफान ने कहा कि यदि गंभीर इस सोच पर कायम रहते हैं और इसे नीतिगत स्तर पर लागू करते हैं, तो टीम इंडिया एक नए युग की शुरुआत कर सकती है.
गंभीर का कोचिंग स्टाइल हमेशा उनके खेल की तरह ही आक्रामक और निष्पक्ष रहा है. बतौर कप्तान उन्होंने आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स को दो बार चैंपियन बनाया और उनका नेतृत्व हमेशा टीम-फर्स्ट एप्रोच के लिए सराहा गया. अब जब उन्हें भारतीय टीम की जिम्मेदारी मिली है, तो उन्होंने साफ संकेत दिया है कि वे किसी भी खिलाड़ी को उसके नाम या लोकप्रियता के आधार पर अलग व्यवहार नहीं देंगे. गंभीर का कहना है कि टीम में हर खिलाड़ी को समान अवसर और सम्मान मिलेगा, लेकिन प्रदर्शन के आधार पर ही जगह तय होगी.
इरफान पठान ने गंभीर के इसी स्टैंड की तारीफ़ करते हुए कहा कि टीम का माहौल तभी बेहतर होगा जब खिलाड़ी यह समझेंगे कि यहां किसी एक का दबदबा नहीं बल्कि सबकी भागीदारी अहम है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि युवा खिलाड़ियों को सुरक्षित और आत्मविश्वासपूर्ण माहौल देने के लिए यह कदम बेहद जरूरी है. खासकर तब जब टीम के पास शुभमन गिल, यशस्वी जायसवाल, रुतुराज गायकवाड़ और तिलक वर्मा जैसे कई नए चेहरे हैं, जिन्हें बिना अतिरिक्त दबाव के अपने खेल को संवारने की जरूरत है.
क्रिकेट विशेषज्ञों का भी मानना है कि भारतीय क्रिकेट में कभी-कभी ‘स्टारडम’ ने टीम के मनोबल को प्रभावित किया है. उदाहरण के लिए, कई बार यह देखने को मिला कि बड़े खिलाड़ियों की प्राथमिकता या उनके फैसले टीम मैनेजमेंट के निर्देशों से ऊपर माने जाते थे. यह स्थिति टीम की आंतरिक एकजुटता के लिए ठीक नहीं मानी जाती. गंभीर का दृष्टिकोण इस सोच को खत्म कर सकता है और खिलाड़ियों को यह एहसास दिला सकता है कि यहां सिर्फ प्रदर्शन मायने रखता है.
इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर भी बड़ी बहस छिड़ी हुई है. कई प्रशंसक गंभीर और पठान की सोच का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि आखिरकार अब भारतीय क्रिकेट में ऐसा कोच आया है जो ‘नाम’ से ज्यादा ‘काम’ पर ध्यान देता है. वहीं कुछ आलोचक यह भी कह रहे हैं कि स्टार खिलाड़ियों के बिना भारतीय क्रिकेट अपनी पहचान और आकर्षण खो सकता है, क्योंकि फैंस भी कई बार व्यक्तिगत खिलाड़ियों के लिए ही स्टेडियम भरते हैं. इस तर्क के जवाब में समर्थकों का कहना है कि टीम का सामूहिक प्रदर्शन ही अंततः फैंस को गर्व महसूस कराता है, न कि केवल व्यक्तिगत रिकॉर्ड.
इरफान पठान का समर्थन गंभीर के लिए एक तरह से नैतिक बल की तरह है. खुद इरफान ने अपने करियर में स्टार खिलाड़ियों के साथ खेलते हुए इस ‘स्टार कल्चर’ के दबाव को महसूस किया था. वे जानते हैं कि युवा खिलाड़ियों को मौका मिलने और उस पर टिके रहने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है. ऐसे में उनका यह बयान केवल प्रशंसा नहीं बल्कि एक अनुभवजन्य चेतावनी भी है, जिसमें वे संकेत कर रहे हैं कि गंभीर का यह कदम भारतीय क्रिकेट के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है.
इस पूरी बहस का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि गंभीर और इरफान पठान दोनों ही उस दौर के खिलाड़ी रहे हैं जब भारतीय टीम में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे महानायक मौजूद थे. उस वक्त भी ‘स्टारडम’ था, लेकिन नेतृत्व और टीम भावना इतनी मजबूत थी कि सभी खिलाड़ी अपनी भूमिका निभाने में संतुलित रहते थे. लेकिन आईपीएल और सोशल मीडिया के दौर में यह ‘स्टार कल्चर’ और भी बढ़ गया है, क्योंकि खिलाड़ी मैदान से ज्यादा अपने ब्रांड और इमेज के कारण सुर्खियों में रहते हैं. यही कारण है कि अब इसे खत्म करने की जरूरत और भी ज्यादा महसूस की जा रही है.
गंभीर का यह रुख आने वाले समय में भारतीय क्रिकेट की रणनीति और चयन नीतियों पर भी असर डाल सकता है. हो सकता है कि कुछ दिग्गज खिलाड़ियों को इस वजह से सख्त फैसलों का सामना करना पड़े. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि लंबी अवधि में यह भारतीय टीम के लिए फायदेमंद साबित होगा. आखिरकार, टीम खेल में व्यक्तिगत अहंकार से ज्यादा सामूहिक लक्ष्य मायने रखते हैं.
सवाल यह भी उठता है कि क्या भारतीय फैंस इस बदलाव को स्वीकार करेंगे. क्रिकेट भारत में केवल खेल नहीं बल्कि धर्म जैसा है, और फैंस अपने पसंदीदा खिलाड़ियों को देवता की तरह पूजते हैं. ऐसे में ‘स्टार कल्चर’ को खत्म करना केवल मैनेजमेंट का ही नहीं, बल्कि फैंस की सोच का भी बदलाव होगा. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों के अनुभव बताते हैं कि जब भी भारतीय टीम सामूहिक खेल दिखाती है और बड़े टूर्नामेंट जीतती है, तब फैंस का समर्थन और भी बढ़ता है. उदाहरण के लिए, 2007 का टी20 वर्ल्ड कप और 2011 का वर्ल्ड कप, दोनों ही टीम की एकजुटता का नतीजा थे.
इरफान पठान ने गंभीर की तारीफ़ करके एक तरह से उस सोच को मजबूती दी है कि भारतीय क्रिकेट अब एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है. इस दौर में न तो नाम मायने रखेंगे, न ही व्यक्तिगत रुतबा, बल्कि केवल प्रदर्शन और अनुशासन के आधार पर टीम का भविष्य तय होगा. अगर गंभीर इस सोच पर अडिग रहते हैं और बोर्ड उनका पूरा समर्थन करता है, तो निस्संदेह भारतीय क्रिकेट अगले दशक में और भी ऊँचाइयों को छू सकता है.
अंततः यह कहा जा सकता है कि गंभीर और इरफान जैसे खिलाड़ियों की सोच भारतीय क्रिकेट को उस ‘सांस्कृतिक बदलाव’ की ओर ले जा रही है, जिसकी लंबे समय से जरूरत थी. यह बदलाव मुश्किल जरूर होगा, लेकिन यदि सफल हुआ तो भारतीय क्रिकेट के इतिहास में यह एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज होगा, जहां टीम का हर खिलाड़ी केवल एक लक्ष्य के लिए मैदान पर उतरेगा—भारत को गौरव दिलाना.