सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) ने खनन उद्योग में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए कर्नाटक के देवदुर्गा क्षेत्र में सोना और तांबा खनन हेतु खोज लाइसेंस हासिल किया है. यह उपलब्धि न केवल कंपनी के लिए बल्कि पूरे भारतीय खनन क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर मानी जा रही है. परंपरागत रूप से SCCL कोयला खनन के लिए प्रसिद्ध रही है, लेकिन बदलते वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य और बहुमूल्य धातुओं की बढ़ती मांग को देखते हुए कंपनी अब बहु-खनन मॉडल की ओर कदम बढ़ा रही है.
सूत्रों के अनुसार, इस परियोजना के लिए SCCL ने न्यूनतम 37.75% रॉयल्टी की पेशकश की थी, जो अन्य कंपनियों की तुलना में सबसे कम थी. यही वजह रही कि केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त निविदा प्रक्रिया में SCCL को प्राथमिकता दी गई और लाइसेंस उसे मिल गया. इस परियोजना का कुल बजट लगभग ₹90 करोड़ है, जिसमें से ₹20 करोड़ की राशि केंद्र सरकार सब्सिडी के रूप में उपलब्ध करा रही है. यह न केवल खनन उद्योग को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक अहम कदम है बल्कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत खनिज संपदा की खोज को गति देने वाली नीति का हिस्सा भी है.
विशेषज्ञों का मानना है कि कर्नाटक का देवदुर्गा क्षेत्र खनिज संपदा से समृद्ध है. यहां पहले भी सर्वेक्षणों में सोना और तांबे की खदानों की संभावनाओं का संकेत मिला था. अब जबकि SCCL को लाइसेंस प्राप्त हुआ है, अगले पांच वर्षों में विस्तृत फील्ड रिसर्च और खनिज खोज की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. इसके बाद कंपनी अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपेगी, जिसके आधार पर खनन के वाणिज्यिक संचालन की अनुमति दी जाएगी.
खनन उद्योग के जानकार बताते हैं कि भारत लंबे समय से सोने और तांबे की घरेलू आपूर्ति पर आत्मनिर्भर नहीं रहा है. सोने की भारी मांग को पूरा करने के लिए देश को विदेशों से आयात करना पड़ता है, जिससे चालू खाते के घाटे पर दबाव बढ़ता है. इसी तरह, तांबा जो इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग, बिजली प्रसारण, निर्माण और इलेक्ट्रॉनिक्स में व्यापक रूप से उपयोग होता है, उसका भी आयात भारत को महंगा पड़ता है. ऐसे में यदि देवदुर्गा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खनिज की खोज और खनन संभव हुआ तो यह भारत की खनिज अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा.
SCCL के लिए यह कदम उसके व्यावसायिक विस्तार की दिशा में भी महत्वपूर्ण है. तेलंगाना सरकार और केंद्र सरकार की संयुक्त स्वामित्व वाली इस कंपनी ने अब तक मुख्य रूप से कोयला खनन पर ध्यान केंद्रित किया है. लेकिन जैसे-जैसे अक्षय ऊर्जा के स्रोत बढ़ रहे हैं और कोयले की मांग पर वैश्विक स्तर पर दबाव बढ़ रहा है, वैसे-वैसे कंपनी ने विविधीकरण की रणनीति अपनाई है. सोने और तांबे जैसे खनिजों में प्रवेश कंपनी को दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान कर सकता है.
इसके आर्थिक प्रभाव भी दूरगामी हो सकते हैं. अनुमान है कि यदि देवदुर्गा क्षेत्र में खनिज भंडार पर्याप्त मात्रा में पाया गया तो न केवल SCCL बल्कि पूरा खनन क्षेत्र रोजगार सृजन में बड़ी भूमिका निभाएगा. खनन से जुड़े प्रत्यक्ष रोजगार के अलावा स्थानीय स्तर पर परिवहन, निर्माण, छोटे उद्योग और सेवाओं में भी रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे.
केंद्र सरकार की दृष्टि से यह परियोजना "खनन सुधार" की नीति को और गति देती है. सरकार ने हाल के वर्षों में खनन क्षेत्र में निजी और सार्वजनिक कंपनियों की भागीदारी बढ़ाने, लाइसेंस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने और राज्यों के साथ बेहतर राजस्व साझा करने के लिए कई कदम उठाए हैं. SCCL का यह कदम इसी दिशा में एक उदाहरण है कि कैसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भी वैश्विक मानकों के अनुरूप प्रतिस्पर्धी हो सकती हैं.
हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं होंगी. खनन हमेशा पर्यावरणीय विवादों के केंद्र में रहा है. विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि सोना और तांबा खनन के दौरान भारी मात्रा में जल उपयोग, भूमि क्षरण और रसायनों के इस्तेमाल से पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ सकता है. स्थानीय समुदायों की आजीविका और जैव विविधता को भी खतरा हो सकता है. इसलिए परियोजना की सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि SCCL पर्यावरणीय मानकों का कितना पालन करती है और स्थानीय जनता को साथ लेकर चलने के लिए क्या कदम उठाती है.
कर्नाटक के देवदुर्गा क्षेत्र के लोग इस खबर को लेकर उत्साहित भी हैं और चिंतित भी. जहां एक ओर रोजगार और विकास की संभावना दिख रही है, वहीं दूसरी ओर जमीन अधिग्रहण, पर्यावरणीय संतुलन और परंपरागत जीवनशैली पर असर की आशंका भी है. इसीलिए कंपनी को स्थानीय समुदायों के विश्वास को बनाए रखना होगा.
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखें तो यह परियोजना भारत की खनिज नीति के वैश्विक आयाम को भी मजबूत करती है. दुनिया के कई देश, विशेषकर चीन, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बड़े पैमाने पर खनिज निवेश कर रहे हैं. भारत अब तक इन मामलों में अपेक्षाकृत पीछे रहा है. SCCL का यह कदम संकेत है कि भारत भी अपनी खनिज खोज क्षमता को बढ़ाने के लिए आक्रामक रणनीति अपना रहा है.
दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में, यदि यह खोज सफल होती है तो यह भारत की सोना और तांबा आयात पर निर्भरता को काफी हद तक घटा सकती है. साथ ही, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों को गति मिलेगी. सोने के मामले में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जबकि तांबे की मांग इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के चलते तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में घरेलू उत्पादन बढ़ाना राष्ट्रीय हित में होगा.
निवेश जगत में भी SCCL के इस कदम को सकारात्मक नजर से देखा जा रहा है. शेयर बाजार के विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि अभी यह परियोजना खोज के स्तर पर है और इसमें अनिश्चितताएं बनी हुई हैं, फिर भी इसका दीर्घकालिक महत्व निवेशकों के लिए भरोसेमंद संकेत है. अगर आने वाले वर्षों में खनिज भंडार की पुष्टि हो जाती है, तो SCCL की आय और मुनाफे के नए स्रोत खुल सकते हैं.
कुल मिलाकर, SCCL द्वारा कर्नाटक में सोना और तांबा खनन का लाइसेंस हासिल करना भारतीय खनन इतिहास में एक बड़ा कदम है. यह कदम कंपनी की विकास रणनीति, भारत की खनिज आत्मनिर्भरता, स्थानीय रोजगार, पर्यावरणीय चिंताओं और वैश्विक प्रतिस्पर्धा—सभी पर दूरगामी असर डालने वाला है. आने वाले पांच वर्ष निर्णायक होंगे, जब फील्ड रिसर्च के परिणाम सामने आएंगे और भारत यह तय कर पाएगा कि वह सोने और तांबे के उत्पादन में किस हद तक आत्मनिर्भर बन सकता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

