भारतीय राजनीति में एक बार फिर संविधान और संघीय ढांचे को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है. इस बार विवाद का केंद्र 130वां संविधान संशोधन बिल है, जिसे लेकर विपक्षी दलों में गहरी चिंता दिखाई दे रही है. केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने इस विधेयक को सीधे-सीधे ‘नियो-फासीवादी रणनीति’ करार दिया है. उनका आरोप है कि केंद्र सरकार और संघ परिवार इस संशोधन के जरिए गैर-बीजेपी शासित राज्यों को अस्थिर करना चाहते हैं और इसके लिए संवैधानिक प्रावधानों को अपनी सुविधा के अनुसार बदलने की कोशिश कर रहे हैं. विजयन ने यह भी कहा कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग अब एक खुला सच बन चुका है और इस बिल से उस प्रवृत्ति को और अधिक वैधता देने का प्रयास हो रहा है.
दरअसल, यह संशोधन प्रस्तावित करता है कि केंद्र सरकार को राज्यों के प्रशासनिक और नीतिगत निर्णयों में व्यापक हस्तक्षेप का अधिकार मिले. इसे लेकर विपक्ष का कहना है कि अगर यह बिल कानून बन गया तो राज्यों की स्वायत्तता पूरी तरह से खतरे में पड़ जाएगी और संघीय ढांचा केवल नाम मात्र का रह जाएगा. केरल के मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय संविधान ने संघीय ढांचे और राज्यों के अधिकारों को इसलिए सुनिश्चित किया था ताकि विविधताओं से भरे इस देश में संतुलन बना रहे, लेकिन मौजूदा सत्ता इसे खत्म करने पर आमादा है. उन्होंने कहा कि यह महज़ राजनीतिक चाल नहीं बल्कि लोकतांत्रिक ढांचे को जड़ से कमजोर करने की साजिश है.
विपक्षी दल कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके और लेफ्ट पार्टियां पहले ही इस बिल को लेकर संसद में जोरदार विरोध दर्ज कर चुकी हैं. विपक्ष का तर्क है कि इस संशोधन के जरिये न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी चोट की जाएगी, क्योंकि इसमें ऐसे प्रावधान शामिल किए गए हैं जो केंद्र को अदालतों की नियुक्तियों और फैसलों में परोक्ष दखल देने की शक्ति देंगे. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई पूर्व न्यायाधीशों ने भी इस बात को लेकर चिंता जाहिर की है कि यदि यह बिल पास हो जाता है तो न्यायपालिका केंद्र के इशारों पर काम करने वाली संस्था बनकर रह जाएगी.
केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे लंबे समय से केंद्र की नीतियों पर खुलकर सवाल उठाते रहे हैं. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनाव नहीं है बल्कि उसमें सत्ता का संतुलन और संस्थागत स्वतंत्रता भी शामिल है. लेकिन आज सत्ता का केंद्रीकरण जिस तरीके से बढ़ रहा है, उससे राज्यों की भूमिका और अधिकार लगातार कम होते जा रहे हैं. उन्होंने बीजेपी और आरएसएस पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि यह संशोधन भारतीय लोकतंत्र को ‘हिंदू राष्ट्र’ की ओर मोड़ने की कोशिश का हिस्सा है, जहां सारी शक्तियाँ केंद्र और खास विचारधारा के अधीन होंगी.
सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है. कई यूज़र्स विजयन के बयान का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि यह सचमुच लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है. वहीं, बीजेपी समर्थक इसे विपक्ष की हताशा बता रहे हैं. उनका कहना है कि इस संशोधन से राज्यों और केंद्र के बीच सहयोग बढ़ेगा और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा. लेकिन सवाल यह उठता है कि सहयोग के नाम पर क्या राज्यों की स्वायत्तता को खत्म कर देना जायज़ है?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत जैसे विविधता वाले देश में संघीय ढांचा महज़ राजनीतिक ढांचा नहीं बल्कि एक सामाजिक आवश्यकता है. अगर राज्यों को केंद्र की कठपुतली बना दिया जाएगा तो क्षेत्रीय पहचान, भाषा और संस्कृति पर भी असर पड़ेगा. दक्षिण भारत के कई राजनीतिक विश्लेषक पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि इस तरह के कदमों से उत्तर और दक्षिण के बीच दूरी बढ़ेगी और यह भारतीय संघ की एकता के लिए खतरा साबित हो सकता है.
130वें संविधान संशोधन बिल को लेकर अब देशभर में राजनीतिक हलचल बढ़ती जा रही है. संसद में बहस गरमा रही है और सड़कों पर भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं. कई छात्र संगठनों और श्रमिक यूनियनों ने भी इसका विरोध किया है और इसे लोकतंत्र पर हमला बताया है. विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह संशोधन न केवल वर्तमान सरकार की सत्ता को और मजबूत करेगा बल्कि भविष्य में किसी भी केंद्र सरकार को राज्यों के अधिकार छीन लेने का वैधानिक हथियार भी दे देगा.
केरल के मुख्यमंत्री ने अपने बयान में यह भी कहा कि इस समय सभी विपक्षी दलों को मिलकर इस बिल का विरोध करना चाहिए. उन्होंने विपक्षी एकता की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि अगर आज इस संशोधन को नहीं रोका गया तो कल लोकतंत्र बचाने की लड़ाई और कठिन हो जाएगी.
भारत के राजनीतिक परिदृश्य में संविधान संशोधन हमेशा से विवाद का विषय रहा है. लेकिन 130वां संशोधन इस मायने में विशेष है कि यह प्रत्यक्ष रूप से संघीय ढांचे और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है. यही कारण है कि इसके खिलाफ न केवल विपक्ष बल्कि संवैधानिक विशेषज्ञ और समाज का एक बड़ा हिस्सा भी खड़ा हो रहा है.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद में इस बिल का भविष्य क्या होता है. लेकिन इतना तय है कि केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन के इस बयान ने राजनीतिक विमर्श को एक नई दिशा दे दी है और इसने केंद्र–राज्य संबंधों, लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. आने वाले समय में यह बहस और तेज होगी और संभव है कि यह मुद्दा 2029 के आम चुनाव तक विपक्ष की राजनीति का एक बड़ा हथियार भी बन जाए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

