जबलपुर. शासकीय नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज इन दिनों विवादों के केंद्र में है. सोशल मीडिया मंचों पर #JusticeForInterns ट्रेंड कर रहा है और हजारों लोग इसमें अपनी प्रतिक्रियाएँ साझा कर रहे हैं. विवाद की शुरुआत तब हुई जब मेडिकल कॉलेज के इंटर्न डॉक्टरों ने अपनी सुरक्षा, कामकाजी परिस्थितियों और प्रशासनिक रवैये को लेकर आवाज़ उठाई. आरोप है कि हाल ही में अस्पताल परिसर में इंटर्न डॉक्टरों के साथ मारपीट की घटना हुई, जिसके बाद से असंतोष और आक्रोश तेजी से बढ़ गया.
इंटर्न डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह विफल साबित हो रही है. अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों और उनके परिजनों के आक्रामक व्यवहार से इंटर्न डॉक्टर असुरक्षित महसूस करते हैं. हाल ही की घटना में कुछ अज्ञात लोगों ने इंटर्न डॉक्टरों पर हमला कर दिया, जिससे कई युवा डॉक्टर घायल हो गए. इस घटना ने पूरे छात्र समुदाय को झकझोर दिया.
सोशल मीडिया पर इंटर्न डॉक्टरों ने अपनी पीड़ा साझा की और #JusticeForInterns टैग के साथ संदेश डालना शुरू किया. देखते ही देखते यह मुद्दा जबलपुर ही नहीं बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में चर्चा का विषय बन गया. ट्विटर (अब एक्स), इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक पर लोगों ने वीडियो और चित्र साझा करते हुए प्रशासन की नाकामी पर सवाल खड़े किए. मेडिकल छात्र संघों ने भी इस अभियान में आवाज़ उठाई और कहा कि यह केवल इंटर्न डॉक्टरों की सुरक्षा का सवाल नहीं है बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न है.
अस्पताल प्रशासन ने घटना को गंभीरता से लेते हुए एक आंतरिक जाँच समिति गठित करने की घोषणा की है, लेकिन छात्रों का कहना है कि यह कदम केवल दिखावा है. उनका आरोप है कि पिछले कई महीनों से शिकायतें दी जा रही हैं लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. इसी कारण अब छात्रों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया है. इंटर्न डॉक्टरों ने कार्य बहिष्कार की चेतावनी भी दी है, जिससे अस्पताल की सेवाएँ प्रभावित हो सकती हैं.
#JusticeForInterns हैशटैग को लेकर सोशल मीडिया पर मिल रही प्रतिक्रिया ने इस मुद्दे को और भी बड़ा बना दिया है. कई स्थानीय नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शहरवासियों ने भी खुलकर इंटर्न डॉक्टरों का समर्थन किया है. उनका कहना है कि अगर युवा डॉक्टर असुरक्षित रहेंगे तो मरीजों को बेहतर इलाज कैसे मिलेगा.
दूसरी ओर, इस विवाद का असर आम मरीजों पर भी दिख रहा है. अस्पताल आने वाले मरीजों को सेवाएँ बाधित होने का डर सताने लगा है. इंटर्न डॉक्टरों के आंदोलन से स्वास्थ्य सेवाएँ ठप होने की आशंका है. कई मरीजों ने सोशल मीडिया पर अपील करते हुए प्रशासन से कहा है कि इस विवाद का जल्द समाधान किया जाए ताकि स्वास्थ्य सेवाएँ प्रभावित न हों.
राज्य सरकार की ओर से भी इस मामले पर संज्ञान लिया गया है. उच्चाधिकारियों ने जिला प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इंटर्न डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए. पुलिस ने भी इस घटना में शामिल आरोपियों को पकड़ने के लिए जांच तेज कर दी है.
यह विवाद केवल मेडिकल कॉलेज या अस्पताल तक सीमित नहीं रहा बल्कि एक बड़े सामाजिक मुद्दे का रूप ले चुका है. यह सवाल खड़ा हो रहा है कि जब भविष्य के डॉक्टर ही असुरक्षित महसूस कर रहे हैं तो आम जनता की सुरक्षा और स्वास्थ्य का क्या होगा.
शहर के नागरिक भी इस बहस में शामिल हो गए हैं. सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं में लोग लिख रहे हैं कि डॉक्टरों पर हमले की घटनाएं समाज के लिए शर्मनाक हैं. ऐसे हालात में युवाओं का मनोबल टूटता है और वे अपने पेशे से मोहभंग भी कर सकते हैं.
इस पूरी घटना ने प्रशासनिक तंत्र पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. क्या अस्पतालों में सुरक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर है कि वहां काम करने वाले डॉक्टर तक सुरक्षित नहीं हैं? क्या शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता जब तक कि वह सोशल मीडिया पर ट्रेंड न बन जाए?
फिलहाल, जबलपुर का यह विवाद पूरे प्रदेश का ध्यान अपनी ओर खींच चुका है. #JusticeForInterns का यह अभियान केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित रहेगा या वाकई में इससे कोई ठोस समाधान निकलेगा, यह देखने वाली बात होगी. लेकिन इतना तय है कि इस घटना ने एक बार फिर यह याद दिला दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं और डॉक्टरों की सुरक्षा पर गंभीरता से ध्यान देना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है.