भारत में साइबर अटैक का खतरा बढ़ा, डिजिटलाइजेशन ने बढ़ाई जोखिम की सीमाएँ, सावधानी जरूरी

भारत में साइबर अटैक का खतरा बढ़ा, डिजिटलाइजेशन ने बढ़ाई जोखिम की सीमाएँ, सावधानी जरूरी

प्रेषित समय :22:01:54 PM / Sat, Aug 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज
डिजिटलाइजेशन के साथ ही भारत में साइबर अपराधों का खतरा लगातार बढ़ रहा है. तकनीकी प्रगति ने जीवन को आसान बनाया है, लेकिन इसी के साथ साइबर अपराधियों के लिए नए अवसर भी खुले हैं. लैपटॉप, मोबाइल फोन और अन्य डिजिटल डिवाइसों पर साइबर अपराधियों की नजर हर समय बनी रहती है. विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती डिजिटल गतिविधियों और ऑनलाइन लेनदेन के चलते भारत अब साइबर ठगों का बड़ा बाजार बन गया है.मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इस वर्ष मई 2025 में विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम वाले 12.4 प्रतिशत डिवाइस मैलवेयर से प्रभावित पाए गए, जो जून 2025 में बढ़कर 13.2 प्रतिशत हो गए. यह आंकड़ा दुनियाभर में सबसे अधिक है. साइबर सुरक्षा फर्म एक्रोनिस की रिपोर्ट 2025 भी यह पुष्टि करती है कि मैलवेयर हमलों के मामले में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है. ब्राजील, स्पेन और अन्य देशों के मुकाबले भारत में साइबर ठगी के मामले अधिक हैं. डिजिटलाइजेशन ने भारत में जीवन को आसान बनाया है, लेकिन इसी के साथ साइबर अपराधियों की गतिविधियाँ भी बढ़ गई हैं. लैपटॉप, मोबाइल फोन और अन्य डिजिटल उपकरण अब अपराधियों की खास नजर में हैं. एआई-आधारित रैंसमवेयर, फ़िशिंग ईमेल और डीपफेक स्कैम जैसे नए खतरे लगातार सामने आ रहे हैं. इसलिए, व्यक्तिगत सुरक्षा, संस्थागत सुरक्षा और डिजिटल जागरूकता को एक साथ बढ़ाना आवश्यक हो गया है. यह समय की मांग है कि सभी नागरिक और संस्थान साइबर सुरक्षा को गंभीरता से लें, अन्यथा डिजिटल दुनिया में जोखिम और बढ़ सकता है.इस डिजिटल युग में सतर्क रहना और साइबर सुरक्षा के उपाय अपनाना केवल विकल्प नहीं, बल्कि ज़रूरी कदम बन गया है. सुरक्षित डिजिटल दुनिया की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए समय रहते सभी को सजग और सतर्क रहना होगा.

एक्रोनिस की रिपोर्ट बताती है कि साइबर अपराधियों ने एआई-आधारित रैंसमवेयर, फ़िशिंग ईमेल, डीपफेक स्कैम जैसे आधुनिक तरीकों को अपनाया है. इन तकनीकों का उपयोग करके अपराधी व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी चुराने में सफल हो रहे हैं. उदाहरण के लिए, फ़िशिंग ईमेल के जरिए बैंक खाते, क्रेडिट कार्ड और पासवर्ड चुराना आसान हो गया है. इसके साथ ही डीपफेक स्कैम का इस्तेमाल करके सोशल इंजीनियरिंग हमले किए जा रहे हैं, जिनमें लोगों को धोखाधड़ी के जाल में फंसाया जाता है.रिपोर्ट के आंकड़े भी चिंताजनक हैं. 2024 में ईमेल और वेबसाइट्स पर साइबर हमले लगभग 20 प्रतिशत थे, जबकि 2025 में यह बढ़कर 25.6 प्रतिशत हो गए हैं. इसका मतलब है कि हर चार साइबर उपयोगकर्ताओं में एक को किसी न किसी रूप में डिजिटल हमले का सामना करना पड़ रहा है. इसके पीछे मुख्य कारण ऑनलाइन बैंकिंग, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बढ़ती गतिविधियाँ हैं.

क्रेडिट कार्ड, पासवर्ड और अन्य संवेदनशील डेटा चोरी के लिए साइबर अपराधियों ने जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. यह तकनीक उन्हें फ़िशिंग ईमेल, फर्जी इनवॉइस और डीपफेक वीडियो तैयार करने में सक्षम बनाती है. जनरेटिव एआई के जरिए तैयार किए गए ये स्कैम बेहद विश्वसनीय दिखते हैं और इन्हें पहचानना आसान नहीं होता. इस कारण से साइबर अपराध की जांच और नियंत्रण भी मुश्किल होता जा रहा है.विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटलाइजेशन के इस युग में केवल तकनीकी सुरक्षा ही पर्याप्त नहीं है. आम उपयोगकर्ताओं को भी साइबर सुरक्षा के उपाय अपनाने होंगे. नियमित सॉफ़्टवेयर अपडेट, मजबूत पासवर्ड, टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन और संदिग्ध ईमेल या लिंक से सतर्क रहना जरूरी है. इसके अलावा, साइबर अपराधों की जागरूकता और प्रशिक्षण भी बढ़ाना आवश्यक है.

सरकारी रिपोर्टों और साइबर सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, भारत में साइबर अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. पिछले कुछ वर्षों में ऑनलाइन ठगी, फ़िशिंग, रैंसमवेयर और डेटा चोरी के मामले कई गुना बढ़ चुके हैं. यह स्थिति केवल व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के लिए नहीं, बल्कि कंपनियों और संस्थानों के लिए भी गंभीर खतरा है. व्यवसायिक डेटा, वित्तीय रिकॉर्ड और ग्राहक जानकारी पर साइबर हमले होने की संभावना बढ़ गई है.डिजिटल सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि साइबर अपराधियों की रणनीतियाँ लगातार बदल रही हैं. पुराने तरीकों जैसे वायरस और ट्रोजन से हमले अब जटिल तकनीकों में बदल गए हैं. एआई और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करके अपराधी नई तकनीकों को विकसित कर रहे हैं, जिससे उन्हें पकड़ना कठिन हो रहा है. इसलिए, साइबर सुरक्षा उपायों को भी लगातार अपडेट और उन्नत करना जरूरी है.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स भी साइबर हमलों के लिए एक बड़ा माध्यम बन चुके हैं. फेक प्रोफाइल, नकली विज्ञापन और झूठी जानकारी के जरिए लोग साइबर अपराधियों के जाल में फंसते हैं. इसके अलावा, मोबाइल ऐप्स और गेम्स के माध्यम से भी डेटा चोरी के मामले सामने आ रहे हैं. डिजिटलाइजेशन के इस युग में मोबाइल फोन और लैपटॉप सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा एप्स, एंटीवायरस और नियमित निगरानी आवश्यक हो गई है.सरकार और साइबर सुरक्षा एजेंसियां लगातार चेतावनी जारी कर रही हैं. CERT-In, भारतीय साइबर इमरजेंसी रिस्पांस टीम, ने सभी नागरिकों और कंपनियों से सुरक्षित ऑनलाइन व्यवहार और एंटीवायरस अपडेट बनाए रखने की सलाह दी है. इसके अलावा, वित्तीय संस्थान भी अपने ग्राहकों को साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए नई पहल कर रहे हैं.विशेषज्ञों का कहना है कि अगर व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर सुरक्षा उपाय सही तरीके से अपनाए जाएं, तो साइबर अपराधों के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है. साथ ही, डिजिटल साक्षरता और जागरूकता बढ़ाना भी बेहद जरूरी है. लोगों को फ़िशिंग ईमेल, फर्जी वेबसाइट्स और अनजाने लिंक से सतर्क रहना होगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-