दक्ष गुप्ता के 9-9-6 कार्य मॉडल पर भड़की Gen Z पीढ़ी आधुनिक गुलामी बताकर सोशल मीडिया पर कर रही विरोध की बाढ़

दक्ष गुप्ता के 9-9-6 कार्य मॉडल पर भड़की Gen Z पीढ़ी आधुनिक गुलामी बताकर सोशल मीडिया पर कर रही विरोध की बाढ़

प्रेषित समय :21:53:55 PM / Thu, Sep 4th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

दक्ष गुप्ता नाम का यह युवा सीईओ हाल ही में अपने स्टार्टअप मॉडल और कार्य संस्कृति को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा के केंद्र में आ गया है. उन्होंने अपने कर्मचारियों के लिए “9-9-6” कार्य मॉडल की पैरवी की अर्थात सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक, हफ्ते में छह दिन. यह मॉडल चीन में बड़े पैमाने पर विवादास्पद रहा है और वहाँ कई बार इसे कर्मचारियों के शोषण का प्रतीक कहा गया. लेकिन दक्ष गुप्ता ने इसे एक अनुशासित और उत्पादक कार्य संस्कृति के रूप में प्रस्तुत किया. हालाँकि, जैसे ही यह मॉडल सार्वजनिक हुआ, Gen Z वर्ग ने इसे तीखी आलोचना के साथ खारिज कर दिया.

Gen Z, जो अपनी स्वतंत्रता, कार्य-जीवन संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य को सबसे ज़्यादा महत्व देती है, उसे यह मॉडल एक प्रकार की “आधुनिक गुलामी” जैसा प्रतीत हुआ. ट्विटर, इंस्टाग्राम और लिंक्डइन जैसे प्लेटफॉर्म पर हैशटैग #SayNoTo996 और #GenZWorkCulture तेजी से ट्रेंड करने लगे. कई युवाओं ने कहा कि ऐसी सोच 21वीं सदी के कार्यक्षेत्र को पीछे की ओर ले जाने वाली है.

कर्मचारी अधिकारों के विशेषज्ञों और श्रम संगठनों ने भी इस मॉडल पर चिंता जताई. उनका मानना है कि 12 घंटे प्रतिदिन काम करने से कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन पर गहरा असर पड़ता है. खासकर ऐसे समय में जब वर्क-फ्रॉम-होम और हाइब्रिड कार्य संस्कृति एक सामान्य मांग बन चुकी है, यह मॉडल किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं हो सकता. भारत और अमेरिका में मौजूद टेक कंपनियों के कई युवा इंजीनियरों ने गुप्ता की नीति को “टॉक्सिक प्रैक्टिस” बताया.

गौरतलब है कि सिलिकन वैली जैसे वैश्विक नवाचार केंद्र में आम तौर पर कर्मचारियों को स्वतंत्र माहौल, फ्लेक्सिबल टाइमिंग और रचनात्मक स्पेस दिया जाता है. वहीं गुप्ता का 9-9-6 दृष्टिकोण इस पूरी संस्कृति से विपरीत दिशा में जाता है. यही कारण है कि इसे लाल झंडी की तरह देखा जा रहा है. आलोचकों का कहना है कि दक्ष गुप्ता शायद उत्पादकता को केवल समय की लंबाई से जोड़ रहे हैं, जबकि आधुनिक रिसर्च बार-बार यह साबित करती है कि काम का गुणवत्ता से संबंध है, न कि लंबे घंटों से.

कई कॉर्पोरेट मनोवैज्ञानिकों ने भी आगाह किया कि 9-9-6 मॉडल से कर्मचारियों में बर्नआउट, तनाव और काम छोड़ने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ सकती है. उनका तर्क है कि यदि युवा पीढ़ी को लंबे समय तक बनाए रखना है, तो उन्हें स्वतंत्रता, मानसिक सुकून और व्यक्तिगत जीवन को महत्व देना होगा. यही वजह है कि Gen Z बार-बार कार्य-जीवन संतुलन को अपनी प्राथमिकता में रखती है.

दूसरी ओर, दक्ष गुप्ता ने अपने बयान में यह कहा कि 9-9-6 मॉडल केवल शुरुआती स्टार्टअप संस्कृति के लिए है जहाँ “हसल” मानसिकता जरूरी है. उनका कहना था कि यदि शुरुआती सालों में कठोर मेहनत की जाए तो भविष्य में सफलता सुनिश्चित हो सकती है. उन्होंने अलीबाबा के संस्थापक जैक मा और टेस्ला के एलन मस्क जैसे उदाहरण दिए, जिनकी कार्यशैली बेहद लंबी और थकाऊ रही है. लेकिन आलोचक सवाल उठा रहे हैं कि क्या हर कोई एलन मस्क बन सकता है? और क्या लाखों कर्मचारियों के लिए यह जीवनशैली व्यावहारिक या मानवीय है?

सोशल मीडिया पर युवाओं ने व्यंग्य करते हुए कहा कि 9-9-6 मॉडल तो मशीनों के लिए भी अमानवीय होगा, इंसानों की तो बात ही छोड़ दीजिए. कई मीम्स और वीडियो वायरल हुए जिनमें इसे “slave culture” कहा गया. भारत के आईटी सेक्टर से जुड़े कर्मचारियों ने भी टिप्पणी की कि ऐसी संस्कृति पहले ही यहाँ कई कंपनियों में अप्रत्यक्ष रूप से मौजूद है, और इसका परिणाम है उच्च स्तर का तनाव और नौकरी बदलने की प्रवृत्ति.

आर्थिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि कंपनियां ऐसे मॉडल लागू करती हैं तो उन्हें अल्पकालिक उत्पादकता मिल सकती है, लेकिन दीर्घकाल में यह हानिकारक होगा. उच्च टर्नओवर दर, बढ़ती स्वास्थ्य लागत और कर्मचारियों की रचनात्मकता में कमी कंपनी को अधिक नुकसान पहुँचाएगी. यही कारण है कि दुनिया भर की बड़ी कंपनियाँ अब “वर्क-लाइफ हार्मनी” और “सस्टेनेबल प्रोडक्टिविटी” पर ज़ोर दे रही हैं.

Gen Z के लिए काम केवल जीवन यापन का साधन नहीं, बल्कि आत्म संतुष्टि और व्यक्तिगत विकास का माध्यम भी है. वे नौकरी से ज्यादा अपने मानसिक स्वास्थ्य, रिश्तों और शौक को महत्व देते हैं. यही कारण है कि “quiet quitting” जैसी प्रवृत्तियाँ इसी पीढ़ी से निकलीं, जिसमें कर्मचारी अपने कार्य अनुबंध से बाहर अतिरिक्त काम करने से मना कर देते हैं.

दक्ष गुप्ता का मॉडल एक बार फिर इस बहस को जीवित कर रहा है कि कंपनियों और कर्मचारियों के बीच किस तरह का सामाजिक अनुबंध होना चाहिए. क्या कंपनियाँ केवल मुनाफे के लिए काम करवाएँगी या कर्मचारियों को भी एक इंसान मानकर उनके जीवन की गुणवत्ता का ख्याल रखेंगी?

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि 9-9-6 कार्यसंस्कृति मॉडल आधुनिक कार्यक्षेत्र की वास्तविकता से मेल नहीं खाता. यह Gen Z की आकांक्षाओं, मूल्य प्रणाली और प्राथमिकताओं के विपरीत है. इसलिए इसे लाल झंडी समझना उचित है. दक्ष गुप्ता के इस दृष्टिकोण ने भले ही चर्चा को हवा दी हो, लेकिन इसका असर यही रहा कि युवा पीढ़ी और भी मुखर होकर यह कह रही है—काम चाहिए, लेकिन जीवन के साथ.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-