भाजपा ने मणिपुर में किया त्रिपक्षीय समझौता इलाके में बनी राजनीतिक हलचल

भाजपा ने मणिपुर में किया त्रिपक्षीय समझौता इलाके में बनी राजनीतिक हलचल

प्रेषित समय :19:43:25 PM / Thu, Sep 4th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

मणिपुर लंबे समय से जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है. बीते महीनों में वहाँ की स्थिति इतनी भयावह हो गई थी कि केंद्र सरकार को कई बार सुरक्षा बलों की तैनाती करनी पड़ी. जगह-जगह झड़पें हुईं, समुदायों के बीच गहरे अविश्वास ने आम जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया. इन हालातों के बीच केंद्र सरकार, मणिपुर सरकार और कुकि–ज़ो संगठन के बीच हुआ त्रिपक्षीय शांति समझौता एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है.

समझौते पर हस्ताक्षर गृह मंत्रालय की देखरेख में हुए और इसके तहत कुकि–ज़ो समूह ने हिंसा का रास्ता छोड़कर बातचीत और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से अपनी समस्याओं के समाधान का भरोसा दिया. बदले में सरकार ने सुरक्षा, पुनर्वास और सामाजिक विश्वास बहाली के लिए ठोस कदम उठाने का आश्वासन दिया. यह समझौता उस समय सामने आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य दौरे की चर्चा जोर पकड़ रही थी. इससे संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार मणिपुर की जटिल समस्या का समाधान राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ तलाशना चाहती है.

सोशल मीडिया पर इस समझौते की खबर तेजी से फैल गई. ट्विटर और फेसबुक पर #PeaceInManipur ट्रेंड करने लगा. एक ओर जहाँ समर्थक वर्ग ने इसे मोदी सरकार की उपलब्धि बताया, वहीं विपक्षी नेताओं और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं ने इस पर सवाल भी उठाए. आलोचकों का कहना था कि यह समझौता सिर्फ कागजों तक सीमित न रह जाए, बल्कि धरातल पर भी शांति और स्थिरता सुनिश्चित हो. वहीं समर्थकों का मानना था कि पहली बार इतने गंभीर मुद्दे पर सभी पक्ष एक मंच पर आए हैं और यह आने वाले समय में स्थायी समाधान की राह खोल सकता है.

मणिपुर की हिंसा ने हजारों लोगों को विस्थापित कर दिया था. सैकड़ों घर जला दिए गए, स्कूल–कॉलेज बंद हो गए और व्यापार ठप पड़ गया. प्रभावित परिवार राहत शिविरों में रहने को मजबूर थे. इस समझौते के बाद उम्मीद जगी है कि पुनर्वास की प्रक्रिया तेज होगी और प्रशासन राहत कार्यों को नए सिरे से आगे बढ़ाएगा. समझौते की शर्तों में यह भी शामिल है कि पीड़ित परिवारों को मुआवजा, सुरक्षित आवास और शिक्षा–स्वास्थ्य की सुविधाएँ प्राथमिकता पर दी जाएँगी.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा इस कदम के जरिए मणिपुर में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करना चाहती है. राज्य में पार्टी की छवि हालिया हिंसा के कारण कमजोर हुई थी. विपक्ष लगातार सरकार पर असफलता का आरोप लगा रहा था. कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दल कह रहे थे कि भाजपा की सरकार न तो हिंसा रोक पाई और न ही शांति स्थापित कर पाई. ऐसे में यह समझौता भाजपा के लिए राजनीतिक हथियार साबित हो सकता है.

दूसरी ओर, कुकि–ज़ो समूह के भीतर भी इस समझौते को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं. कुछ नेताओं का कहना है कि यह सही दिशा में उठाया गया कदम है, जबकि कुछ का मानना है कि जब तक जमीन पर ठोस कार्रवाई नहीं दिखती, तब तक भरोसा करना मुश्किल है. समुदाय के लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करते हुए लिखा कि वर्षों से चली आ रही उपेक्षा और भेदभाव को सिर्फ कागजी समझौतों से दूर नहीं किया जा सकता. उन्हें वास्तविक परिवर्तन चाहिए.

प्रधानमंत्री मोदी के दौरे को लेकर अटकलें और बढ़ गई हैं. माना जा रहा है कि वे समझौते के बाद मणिपुर जाकर स्थिति का जायजा लेंगे और स्थानीय लोगों को भरोसा दिलाएँगे. भाजपा के लिए यह दौरा राजनीतिक दृष्टि से भी अहम होगा, क्योंकि पूर्वोत्तर में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की योजना लंबे समय से जारी है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समझौते से वास्तविक शांति बहाल होती है तो भाजपा इसका श्रेय केंद्र सरकार की निर्णायक नीतियों को देते हुए आगामी चुनावों में इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी.

वहीं विपक्ष भी इस समझौते को लेकर शांत बैठने वाला नहीं है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और क्षेत्रीय दलों ने पहले ही बयान जारी कर कहा है कि भाजपा सरकार ने मणिपुर की जनता को लंबे समय तक असुरक्षा और हिंसा में जीने पर मजबूर किया. अब चुनावी साल आते ही शांति समझौते की बातें की जा रही हैं. उनका कहना है कि यह कदम राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया है, न कि वास्तव में लोगों की पीड़ा को समाप्त करने के लिए.

सोशल मीडिया पर बहस और तेज हो गई है. एक वर्ग का मानना है कि चाहे राजनीतिक लाभ के लिए ही सही, लेकिन अगर इसका नतीजा शांति और स्थिरता है तो इसे सकारात्मक नजरिए से देखना चाहिए. वहीं दूसरा वर्ग इसे केवल चुनावी चाल बताकर खारिज कर रहा है. कई यूजर्स ने मणिपुर में बीते महीनों में हुई हिंसा की तस्वीरें साझा कर पूछा कि क्या सरकार उन परिवारों के घाव भर पाएगी, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है.

इस पूरे घटनाक्रम ने मणिपुर को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह समझौता कितनी मजबूती से लागू हो पाता है. यदि सरकार वचनबद्ध रहकर समझौते की शर्तों को पूरा करती है तो निश्चित रूप से मणिपुर हिंसा के अंधकार से बाहर निकल सकता है. लेकिन अगर यह समझौता केवल औपचारिकता साबित हुआ तो न केवल राज्य में निराशा गहराएगी, बल्कि भाजपा की साख पर भी गहरा असर पड़ेगा.

फिलहाल, इस त्रिपक्षीय समझौते ने मणिपुर में उम्मीद की एक नई किरण जगाई है. हिंसा से थके–हारे लोगों के लिए यह राहत की खबर है कि कम से कम राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई गई है. अब जनता की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि यह समझौता वास्तविक जीवन में कितनी शांति और स्थिरता लेकर आता है. राजनीतिक हलकों में हलचल और सोशल मीडिया पर जारी बहस इस बात का संकेत है कि मणिपुर की शांति सिर्फ स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए चिंता और उम्मीद का विषय है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-