नागरिकता संशोधन अधिनियम में बदलाव से मतुआ समाज को बड़ी राहत, सोशल मीडिया पर उमड़ा उत्साह

नागरिकता संशोधन अधिनियम में बदलाव से मतुआ समाज को बड़ी राहत, सोशल मीडिया पर उमड़ा उत्साह

प्रेषित समय :19:46:17 PM / Thu, Sep 4th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए (Citizenship Amendment Act) में किया गया हालिया संशोधन देश की राजनीति और समाज में नई हलचल पैदा कर रहा है. इस संशोधन के तहत अब 31 दिसंबर 2024 तक भारत में प्रवेश करने वाले उन प्रवासियों को राहत का अधिकार मिल गया है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक आधार पर यहाँ आए हैं. यह कदम विशेषकर पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय के लिए बेहद अहम साबित हुआ है. इस घोषणा के बाद से समुदाय में उत्साह की लहर दौड़ गई है और सोशल मीडिया पर #MatuaRelief जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं.

मतुआ समुदाय लंबे समय से नागरिकता को लेकर असमंजस की स्थिति में था. विभाजन के बाद और विशेषकर बांग्लादेश की आज़ादी के बाद बड़ी संख्या में मतुआ समुदाय भारत आया था. लेकिन इनकी नागरिकता को लेकर लगातार सवाल उठते रहे. सीएए कानून बनने के बाद भी इस पर अमल और उसके नियमों को लेकर असमंजस बना रहा. अब जाकर सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि 31 दिसंबर 2024 तक आए सभी प्रवासियों को सीएए की छत्रछाया मिलेगी. इससे इस समुदाय की लंबे समय से चली आ रही चिंता कम हुई है.

बंगाल में मतुआ समुदाय की आबादी लाखों में है और चुनावी दृष्टि से यह एक निर्णायक वोट बैंक माना जाता है. भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों ही इस समुदाय को साधने की कोशिश करती रही हैं. भाजपा ने अपने घोषणापत्रों में बार-बार वादा किया था कि सीएए को लागू कर मतुआ समुदाय को आश्वस्त किया जाएगा. अब जब यह संशोधन हुआ है, तो स्वाभाविक है कि भाजपा इसे अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करेगी.

मतुआ समुदाय के नेताओं और संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है. उनका कहना है कि यह कदम दशकों से उपेक्षित और असुरक्षा की स्थिति में जी रहे लोगों के लिए राहत लेकर आया है. सामुदायिक स्तर पर लोग मानते हैं कि अब उन्हें भारत में पूरी तरह अपनाए जाने की आशा बढ़ी है. नागरिकता से मिलने वाले लाभ जैसे सरकारी योजनाओं में भागीदारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सहजता और रोजगार में अवसर अब उनके लिए अधिक सुलभ हो सकेंगे.

सोशल मीडिया पर भी इस फैसले पर गहन बहस देखने को मिली. ट्विटर पर #MatuaRelief और #CAAAmendment जैसे हैशटैग टॉप ट्रेंड में रहे. एक वर्ग ने सरकार की सराहना करते हुए लिखा कि यह कदम इंसानियत और न्याय की दिशा में है. वहीं विपक्षी दलों और नागरिक समाज के कुछ समूहों ने इसकी आलोचना की और कहा कि सीएए एक भेदभावपूर्ण कानून है जो धर्म के आधार पर नागरिकता देता है. आलोचकों ने यह भी तर्क दिया कि इस कानून के चलते भारत के संवैधानिक मूल्यों पर आंच आती है और यह धर्मनिरपेक्षता की भावना के खिलाफ है.

बंगाल की राजनीति पर इस फैसले का सीधा असर देखने को मिल सकता है. अगले चुनावों में मतुआ समुदाय किस ओर झुकाव दिखाएगा, यह अब और भी महत्वपूर्ण हो गया है. भाजपा को उम्मीद है कि नागरिकता का यह मुद्दा उसके पक्ष में जाएगा. वहीं तृणमूल कांग्रेस इस मुद्दे पर सतर्क है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही सीएए को असंवैधानिक बताकर इसका विरोध करती रही हैं. उनका कहना है कि बंगाल में रहने वाले सभी लोग भारतीय हैं और किसी को अलग से नागरिकता साबित करने की जरूरत नहीं. इस बयानबाजी से यह साफ है कि तृणमूल समुदाय के भीतर असमंजस पैदा करना चाहती है ताकि भाजपा को एकतरफा लाभ न मिले.

विशेषज्ञों का मानना है कि यह संशोधन केवल कानूनी पहलू नहीं है, बल्कि एक गहरी राजनीतिक रणनीति भी है. भाजपा ने पूर्वी भारत, खासकर बंगाल और असम में अपनी जड़ें जमाने के लिए पिछले कई वर्षों से प्रयास किए हैं. सीएए उसी रणनीति का हिस्सा है. हालांकि, यह भी सच है कि इससे देश के अन्य हिस्सों में विरोध की आवाजें उठ सकती हैं. दिल्ली, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में नागरिक समाज और विपक्षी दल फिर से आंदोलन की राह पकड़ सकते हैं.

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि नागरिकता किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और इसे धर्म के आधार पर नहीं बांटा जा सकता. वे मानते हैं कि इस संशोधन से समाज में विभाजन बढ़ेगा और अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना गहरी होगी. हालांकि, मतुआ समुदाय के लोग इन तर्कों से इतर केवल राहत और आश्वासन पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं. उनके लिए यह फैसला जीवन बदलने वाला है.

गौर करने वाली बात यह है कि चुनावी माहौल में यह कदम भाजपा के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकता है. बंगाल जैसे राज्य में जहाँ मतुआ समुदाय की वोट संख्या निर्णायक है, वहाँ यह निर्णय बड़ा असर डाल सकता है. चुनावी रणनीतिकार भी मानते हैं कि भाजपा इस फैसले को बड़े स्तर पर प्रचारित करेगी और इसे जनसभाओं और रैलियों में प्रमुखता से उठाएगी.

फिलहाल, यह कहना जल्दबाजी होगी कि सीएए में यह संशोधन कितना कारगर साबित होगा और इसका राजनीतिक व सामाजिक असर कितना गहरा होगा. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि मतुआ समुदाय में इस समय भारी उत्साह है और उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने की दिशा में यह बड़ा कदम है.

अंततः, यह कहा जा सकता है कि सीएए का यह संशोधन केवल एक कानून का परिवर्तन नहीं बल्कि देश की राजनीति में नया समीकरण गढ़ने वाला कदम है. मतुआ समुदाय की खुशियाँ और राहत की साँस इस बात का प्रमाण हैं कि सरकार ने उन्हें सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला निर्णय लिया है. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह उत्साह स्थायी होता है या राजनीतिक जंग में फिर से सवालों और विवादों में घिर जाता है. अभी के लिए, मतुआ समुदाय इसे अपनी जीत मान रहा है और उत्सव के रूप में देख रहा है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-