लंबी अवधि की वेब सीरीज़ भारत में लोकप्रियता के लिए जूझ रही हैं, और यह संघर्ष भारतीय मनोरंजन जगत की एक बड़ी सच्चाई बनकर सामने आ रहा है. हाल की रिपोर्ट्स के मुताबिक, सबसे सफल मानी जाने वाली वेब सीरीज़ भी केवल 27.7 मिलियन व्यूज़ तक ही सीमित रही है. यह आंकड़ा उस समय चौंकाने वाला है जब शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट, खासकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर, रिकॉर्ड स्तर पर लोकप्रियता हासिल कर रहा है. इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स और टिकटॉक (जहाँ यह उपलब्ध है) जैसे मंचों पर छोटे-छोटे वीडियो ही लोगों की प्राथमिक पसंद बन चुके हैं.मनोरंजन के इस बदलते स्वरूप ने कंटेंट क्रिएटर्स, निर्माताओं और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नई चुनौती दी है. लंबे समय तक चलने वाली वेब सीरीज़ बनाने में जहां भारी निवेश और महीनों की मेहनत लगती है, वहीं युवा दर्शक अब इतनी लंबी अवधि की कहानियों को लेकर पहले जैसे धैर्य नहीं दिखा रहे हैं. उनकी रुचि तेज़, आकर्षक और मिनटों में असर डालने वाली कहानियों की ओर ज्यादा बढ़ रही है.
भारतीय बाज़ार की स्थिति को समझें तो जेनरेशन Z और मिलेनियल्स इसमें निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं. यह वर्ग अक्सर काम और पढ़ाई के बीच सीमित समय निकालकर मनोरंजन करता है. वे कंटेंट को चलते-फिरते देखना पसंद करते हैं, और यही कारण है कि शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट उनकी पसंदीदा शैली बन चुका है. लंबी वेब सीरीज़ के लिए उन्हें लगातार कई एपिसोड देखने की आदत डालना मुश्किल हो गया है.उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में लंबे शो को आकर्षण हासिल करने के लिए सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि “इवेंट” बनने की जरूरत है. जैसे कुछ साल पहले Sacred Games या Mirzapur ने किया था. इन शो ने दर्शकों को अपनी कहानी और पात्रों से इतना जोड़े रखा कि लोग घंटों स्क्रीन पर टिके रहे. लेकिन हाल की सीरीज़ वैसा करिश्मा नहीं दिखा पा रही हैं. उनका लेखन बिखरा हुआ और कहानी खिंची हुई लगती है, जिससे दर्शकों की रुचि बीच में ही टूट जाती है.
दूसरी ओर, शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट ने रचनात्मकता और प्रयोग की नई सीमाएँ तय की हैं. 30 सेकंड से लेकर 2 मिनट तक का एक वीडियो तुरंत हँसी, भावनाएँ और रोमांच प्रदान कर देता है. यही गति और सरलता Gen Z को आकर्षित करती है. इसके अलावा, सोशल मीडिया का एल्गोरिद्म भी इसी कंटेंट को आगे बढ़ाता है, जिससे क्रिएटर्स को लाखों-करोड़ों व्यूज़ मिल जाते हैं.ओटीटी प्लेटफॉर्म्स भी इस रुझान को भांपने लगे हैं. नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम जैसी वैश्विक कंपनियाँ भारत में शॉर्ट-फॉर्म एक्सपेरिमेंट पर विचार कर रही हैं. वहीं, भारतीय प्लेटफॉर्म्स जैसे जियो सिनेमा और एमएक्स प्लेयर पहले से ही छोटे एपिसोड या मिनी-सीरीज़ फॉर्मेट पेश करने लगे हैं. यह कदम इस कोशिश का हिस्सा है कि दर्शकों को उनके समय और पसंद के अनुसार कंटेंट दिया जा सके.
इस बदलते परिदृश्य का असर इंडस्ट्री पर सीधा देखा जा सकता है. लंबी वेब सीरीज़ पर भारी बजट लगाने से निवेशकों को डर लगने लगा है. उन्हें चिंता है कि दर्शक संख्या अगर कम रही तो उनकी पूंजी डूब सकती है. इसके विपरीत, शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट में निवेश अपेक्षाकृत सस्ता और जोखिम रहित है. यही कारण है कि ब्रांड्स और विज्ञापनदाता भी छोटे वीडियो को प्राथमिकता दे रहे हैं.फिर भी, इसका मतलब यह नहीं कि लंबी अवधि की वेब सीरीज़ का भविष्य खत्म हो चुका है. बल्कि इसका भविष्य उन कहानियों में छिपा है जो दर्शकों से गहराई से जुड़ सकें. दर्शकों को अगर लगे कि उनकी समय-निवेश सार्थक है, तो वे 8 से 10 एपिसोड की सीरीज़ देखने से पीछे नहीं हटेंगे. उदाहरण के लिए, पारिवारिक ड्रामा, रहस्यपूर्ण थ्रिलर और ऐतिहासिक कथाएँ अब भी दर्शकों को आकर्षित करने की क्षमता रखती हैं.
दूसरी बड़ी चुनौती है कि भारत में डिजिटल कंटेंट का उपभोग मुख्य रूप से मोबाइल पर होता है. छोटे स्क्रीन पर लंबे समय तक ध्यान टिकाए रखना कठिन हो जाता है. यही कारण है कि फिल्में और वेब सीरीज़ को अब “मोबाइल-फ्रेंडली” बनाने की बात की जा रही है. इसमें तेज़ संपादन, आकर्षक दृश्य और प्रत्येक एपिसोड का छोटा समय शामिल हो सकता है.सोशल मीडिया ट्रेंड्स बताते हैं कि लोग कंटेंट को सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि अपने व्यक्तित्व को व्यक्त करने के लिए भी इस्तेमाल कर रहे हैं. इसीलिए वे शॉर्ट वीडियो को शेयर करना आसान मानते हैं. वे कुछ सेकंड में अपनी भावनाएँ और राय व्यक्त कर सकते हैं, जो लंबी सीरीज़ में संभव नहीं.
कुल मिलाकर, भारतीय मनोरंजन जगत एक दोराहे पर खड़ा है. एक ओर, लंबी वेब सीरीज़ का सपना है जो सिनेमाई अनुभव और गहरी कहानी सुनाने का अवसर देती हैं. दूसरी ओर, शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट है जो तेजी से बढ़ती डिजिटल पीढ़ी की नब्ज़ को पकड़ चुका है. भविष्य शायद इन दोनों के बीच का संतुलन होगा—जहाँ बड़ी कहानियाँ भी होंगी और छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर परोसी जाएँगी.आज लंबी वेब सीरीज़ को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. उन्हें न सिर्फ कहानी बल्कि प्रस्तुति और दर्शक की आदतों पर ध्यान देना होगा. तभी वे सोशल मीडिया की चमक-दमक और छोटे वीडियो की लहर के बीच अपनी जगह बना पाएँगी. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो संभव है कि भारत में मनोरंजन की दिशा पूरी तरह से छोटे कंटेंट की ओर मुड़ जाए और लंबी वेब सीरीज़ केवल एक प्रयोग भर बनकर रह जाएँ.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

