जापान में रहने वाली एक भारतीय महिला का अनुभव सोशल मीडिया पर इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. महिला ने बताया कि भारत में जिस इत्र या परफ्यूम को लोग शान और ताजगी का प्रतीक मानते हैं, वहीं जापान में इसे कई लोग नापसंद करते हैं और इसे “स्मेल हैरासमेंट” यानी गंध से होने वाली असुविधा या उत्पीड़न की श्रेणी में रखा जाता है. इस वीडियो को लाखों लोगों ने देखा और साझा किया है.
इस घटना ने न केवल सांस्कृतिक भिन्नताओं को उजागर किया है बल्कि यह भी दिखाया है कि रोज़मर्रा की चीज़ें किस तरह अलग-अलग समाजों में अलग मायने रखती हैं. भारत में महकदार इत्र का इस्तेमाल सामाजिक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा माना जाता है. शादी-ब्याह से लेकर त्योहारों तक परफ्यूम और अत्तर का महत्व होता है. लेकिन जापान में लोग हल्की, लगभग न के बराबर खुशबू पसंद करते हैं. वहां तेज़ महक को नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है.
महिला ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि उन्हें पहली बार यह तब पता चला जब ऑफिस में उनके सहकर्मी ने इशारों-इशारों में बताया कि उनकी खुशबू दूसरों के लिए परेशान करने वाली हो सकती है. पहले तो उन्हें यह अजीब लगा, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ आया कि जापानी समाज में व्यक्तिगत स्पेस और सार्वजनिक जगहों पर दूसरों को सहज महसूस कराना सबसे बड़ी प्राथमिकता है. वहां अगर किसी की खुशबू, चाहे वह कितनी ही अच्छी क्यों न हो, दूसरों को परेशान कर रही है, तो उसे असभ्यता माना जाता है.
सोशल मीडिया पर इस वीडियो को लेकर प्रतिक्रियाओं का सैलाब आ गया. भारत के लोगों ने आश्चर्य जताया कि जहां यहां तेज़ इत्र महक को आकर्षण और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है, वहीं जापान में उसे अस्वीकार्य समझा जाता है. कई लोगों ने कहा कि यह हमें सिखाता है कि एक ही चीज़ अलग-अलग संस्कृतियों में अलग अर्थ ले सकती है. वहीं, जापान में रहने वाले भारतीयों ने भी कमेंट में लिखा कि उन्होंने भी ऐसे ही अनुभव किए हैं और अब वे परफ्यूम का इस्तेमाल बेहद सीमित मात्रा में करते हैं.
इस पूरे मामले ने सांस्कृतिक संवेदनशीलता की अहमियत पर भी नई चर्चा छेड़ दी है. विशेषज्ञों का मानना है कि जब लोग विदेश जाते हैं तो केवल भाषा और खानपान ही नहीं, बल्कि व्यवहार और आदतों में भी बदलाव की जरूरत होती है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में छोटे-छोटे सांस्कृतिक अंतर भी बड़ी असहजता या गलतफहमी पैदा कर सकते हैं.
जापान की कार्यसंस्कृति में ‘स्मेल हैरासमेंट’ एक जाना-पहचाना शब्द है. वहां कंपनियां अपने कर्मचारियों से कहती हैं कि वे डियोडरेंट और परफ्यूम का इस्तेमाल संयमित तरीके से करें. ट्रेन और ऑफिस जैसी बंद जगहों में तेज़ खुशबू को सहकर्मियों के लिए असुविधाजनक माना जाता है. यही कारण है कि वहां ज्यादातर लोग बिना किसी खास सुगंध के रहना पसंद करते हैं.
भारतीय संदर्भ में यह सोच बिल्कुल उलट है. यहां खुशबू को आत्मविश्वास और आकर्षण बढ़ाने का साधन माना जाता है. बाजार में उपलब्ध परफ्यूम और अत्तर की भारी बिक्री इसका प्रमाण है. यही नहीं, धार्मिक परंपराओं में भी इत्र का इस्तेमाल पूजा-पाठ और दान में होता है. ऐसे में भारतीयों के लिए यह समझना कठिन है कि कोई देश खुशबू को नकारात्मक नजरिए से कैसे देख सकता है.
इस खबर ने दोनों देशों की सांस्कृतिक सोच को सामने रख दिया है. एक ओर भारत जहां विविधताओं और महक को जीवन का हिस्सा मानता है, वहीं जापान सादगी और न्यूनतमवाद (मिनिमलिज़्म) को प्राथमिकता देता है. इस विरोधाभास ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वैश्वीकरण के दौर में हमें किस तरह दूसरों की संस्कृति का सम्मान करना चाहिए.
सांस्कृतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह केवल परफ्यूम की बात नहीं है. हर देश की अपनी सामाजिक संवेदनशीलता होती है. कोई बात भारत में सामान्य मानी जाती है, वही जापान में असभ्य कही जा सकती है. इसी तरह जो जापान में शिष्टाचार है, वह भारत में अजीब लग सकता है. इसीलिए जब लोग सीमाएं पार करते हैं तो उन्हें केवल तकनीकी या कानूनी नियमों का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मानकों का भी पालन करना होता है.
लोगों ने इस अनुभव को “सांस्कृतिक धक्का” कहा है, जो विदेश में जाकर अक्सर सामने आता है. लेकिन अच्छी बात यह है कि इस अनुभव ने भारतीय और जापानी दोनों समाजों को एक-दूसरे के बारे में और जानने का अवसर दिया. कई लोगों ने लिखा कि वे अब जापान जाने से पहले इस तरह की छोटी-छोटी आदतों का ध्यान रखेंगे. वहीं जापानी नागरिकों ने भी सोशल मीडिया पर कहा कि वे भारतीय परंपराओं में परफ्यूम के महत्व को समझते हैं और यह सम्मान की बात है कि लोग एक-दूसरे की संस्कृति से सीख रहे हैं.
इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि वैश्विक दौर में हर छोटी चीज़ एक संवाद का हिस्सा बन सकती है. परफ्यूम जैसे मामूली विषय पर शुरू हुई चर्चा अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक संवाद का जरिया बन गई है. यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमारी आदतें दूसरों के लिए किस तरह मायने रख सकती हैं और हमें किस तरह एक साझा धरातल पर एक-दूसरे को समझने की जरूरत है.आख़िरकार, यह रिपोर्ट केवल परफ्यूम या स्मेल हैरासमेंट की कहानी नहीं है. यह उस पुल की झलक है जो संस्कृतियों के बीच समझ और संवेदनशीलता से बनता है. जापान और भारत के इस छोटे से अनुभव ने दुनिया को यह सिखाया है कि विविधता में सम्मान और सामंजस्य ही सबसे बड़ी ताकत है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

