25 में बाल झड़ना? Stress, Lifestyle और Insta Pressure का नया ट्रेंड!

25 में बाल झड़ना? Stress, Lifestyle और Insta Pressure का नया ट्रेंड!

प्रेषित समय :19:51:20 PM / Sat, Sep 6th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

25 की उम्र में बाल झड़ना अब केवल भारत की समस्या नहीं बल्कि एक वैश्विक चुनौती बन गया है. यह प्रवृत्ति मिलेनियल्स और जनरेशन Z दोनों में देखी जा रही है. भारत के युवा जहाँ बदलती जीवनशैली, तनाव, फास्ट फूड और प्रदूषण से जूझ रहे हैं, वहीं पश्चिमी देशों में भी अलग-अलग कारणों से यही समस्या बढ़ रही है.

भारत में बाल झड़ने की समस्या मुख्य रूप से शहरी युवाओं में दिखाई देती है. महानगरों में रहने वाले युवक-युवतियाँ लंबे कामकाजी घंटे, असंतुलित भोजन और नींद की कमी से पीड़ित हैं. आईटी और कॉर्पोरेट क्षेत्रों में काम करने वाले लोग लगातार स्क्रीन टाइम और उच्च तनाव स्तर का सामना करते हैं, जिससे हार्मोनल बदलाव और हेयर फॉल का खतरा बढ़ता है. इसके अतिरिक्त, प्रदूषण और रासायनिक हेयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल भी बालों को कमजोर बना देता है.

दूसरी ओर, अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों में बाल झड़ने के पीछे अलग कारण अधिक देखे जाते हैं. वहाँ मोटापा, अनहेल्दी स्नैकिंग, जिम सप्लीमेंट्स और स्टेरॉइड्स का अधिक प्रयोग समस्या को बढ़ा रहा है. रिसर्च बताती है कि अमेरिका में 18 से 25 वर्ष की आयु वाले लगभग 20% युवाओं में शुरुआती हेयर थिनिंग की समस्या पाई जा रही है. वहीं यूरोप में जंक फूड और नींद की गड़बड़ी के अलावा धूम्रपान और शराब का अधिक सेवन बाल झड़ने की गति को तेज करता है.

पश्चिमी देशों में जेनेटिक कारणों की भूमिका भारत से कहीं ज्यादा दिखाई देती है. खासतौर पर यूरोप और अमेरिका में ‘मेल पैटर्न बाल्डनेस’ का असर जल्दी देखने को मिलता है. वहीं भारत और एशियाई देशों में प्रदूषण और पोषण की कमी इसे तेज कर रहे हैं.

दिलचस्प तथ्य यह भी है कि पश्चिमी समाज इस समस्या को लेकर अधिक खुला और व्यावहारिक दृष्टिकोण रखता है. वहाँ 25-30 की उम्र में गंजेपन को आत्मविश्वास और स्टाइल के साथ स्वीकार करने वाले युवाओं की संख्या भी काफी है. हॉलीवुड और खेल जगत के कई सितारे इस मामले में आदर्श बनते हैं. लेकिन भारत और एशियाई देशों में बाल झड़ना अब भी सामाजिक दबाव और आत्मसम्मान से जुड़ा मुद्दा बना हुआ है. यही कारण है कि यहाँ हेयर ट्रांसप्लांट और विग इंडस्ट्री का तेजी से विस्तार हो रहा है.

भारत में सोशल मीडिया ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है. इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर “परफेक्ट हेयर” और “ग्लॉसी लुक” का दबाव युवाओं को और असहज बना रहा है. वहीं पश्चिमी देशों में “बोल्ड इज़ ब्यूटीफुल” और “बज़ कट ट्रेंड” जैसे मूवमेंट्स युवाओं को आत्मविश्वास देने का काम करते हैं.

वैश्विक तुलना से साफ है कि बाल झड़ना अब केवल स्वास्थ्य का नहीं बल्कि सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का विषय बन चुका है. भारत में जहाँ यह समस्या असुरक्षा और सामाजिक हीन भावना का कारण बन रही है, वहीं पश्चिमी देशों में इसे धीरे-धीरे आत्म-स्वीकार्यता और जीवनशैली का हिस्सा मान लिया जा रहा है.

कुल मिलाकर, बाल झड़ने की समस्या चाहे भारत में हो या पश्चिमी देशों में, दोनों जगह यह जेनरेशन Z और मिलेनियल्स के स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रही है. फर्क केवल दृष्टिकोण का है—जहाँ पश्चिम इसे सहजता से स्वीकार कर रहा है, वहीं भारत के युवा इसे छिपाने या इलाज के लिए भारी खर्च करने को मजबूर हो रहे हैं. भविष्य में समाधान तभी संभव होगा जब युवाओं को संतुलित जीवनशैली, स्वस्थ आदतों और मानसिक स्वास्थ्य पर समान ध्यान देने की प्रेरणा मिलेगी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-