गहरे असमंजस और हिंसा के बीच पुनः काठमांडू में कर्फ्यू लगा

गहरे असमंजस और हिंसा के बीच पुनः काठमांडू में कर्फ्यू लगा

प्रेषित समय :20:44:42 PM / Thu, Sep 11th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

काठमांडू. नेपाल इन दिनों गहरे असमंजस, अस्थिरता और हिंसा के दौर से गुजर रहा है. राजधानी काठमांडू सहित कई प्रमुख शहरों में हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि सरकार और सेना को पुनः कर्फ्यू लगाने का कठोर निर्णय लेना पड़ा. यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि सड़कों पर लगातार बढ़ते प्रदर्शनों ने न केवल प्रशासन की नींद उड़ाई बल्कि देश की राजनीतिक स्थिति को भी पूरी तरह हिला कर रख दिया है. आम नागरिकों के जीवन पर इसका असर इतना गहरा है कि रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी करना भी कठिन हो गया है. दूध, सब्ज़ियां, दवाइयाँ और अन्य आवश्यक सामान लोगों तक नहीं पहुँच पा रहे और शहरों का जीवन जैसे थम गया है.

नेपाल में यह अस्थिरता अचानक नहीं आई, बल्कि कई महीनों से simmer कर रहे असंतोष ने अब विस्फोटक रूप धारण कर लिया है. युवाओं की अगुवाई में हो रहे प्रदर्शनों ने देश की राजनीति को सीधी चुनौती दी है. शुरुआत सोशल मीडिया पर प्रतिबंध से हुई थी, जब सरकार ने कुछ प्लेटफॉर्म को यह कहकर बंद कर दिया कि उन्होंने स्थानीय कानूनों के तहत पंजीकरण नहीं कराया. लेकिन इस कदम ने युवाओं को सबसे अधिक आहत किया क्योंकि सोशल मीडिया उनके संवाद और अभिव्यक्ति का सबसे अहम माध्यम था. यह असंतोष कुछ ही दिनों में बड़े आंदोलन में बदल गया, जिसमें भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और राजनीतिक निष्क्रियता जैसे मुद्दे जुड़ते चले गए.

काठमांडू, पोखरा, बिराटनगर, जनकपुर और अन्य बड़े शहरों में लगातार प्रदर्शन होते रहे. कई बार ये प्रदर्शन हिंसक भी हो गए. पुलिस और सुरक्षा बलों के साथ टकराव में कई लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए. अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अब तक 30 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. इतनी बड़ी जनहानि ने स्थिति को और गंभीर बना दिया. स्थानीय प्रशासन ने हालात संभालने के लिए धारा 144 लगाई और सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की, लेकिन बढ़ते दबाव और आक्रोश को देखते हुए कर्फ्यू ही अंतिम विकल्प बन गया.

कर्फ्यू का सीधा असर नागरिकों पर पड़ा है. दुकानों और बाजारों के बंद रहने से लोगों को खाने-पीने की वस्तुएँ नहीं मिल पा रही हैं. अस्पतालों तक पहुँचने में बाधा आ रही है और मरीजों के परिजन दवाइयों के लिए परेशान हो रहे हैं. पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें लग रही हैं और कई जगह ईंधन खत्म हो चुका है. स्कूल और कॉलेज लंबे समय से बंद हैं, जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. इस सबके बीच प्रशासन और सेना यह दावा कर रहे हैं कि हालात को नियंत्रित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं.

राजनीतिक स्तर पर भी नेपाल गहरे संकट में फंसा है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद छोड़ना पड़ा और उनकी सरकार अल्पमत में आ गई. विपक्ष जनता का भरोसा पहले ही खो चुका है. ऐसे में युवाओं ने संसद के विघटन की मांग करते हुए अस्थायी सरकार बनाने का दबाव बढ़ा दिया है. प्रदर्शनकारियों ने एक कदम आगे बढ़कर देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं सुशिला कार्की का नाम अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित कर दिया. यह प्रस्ताव अपने आप में ऐतिहासिक है क्योंकि इससे यह संकेत मिलता है कि लोग पारंपरिक राजनीतिक दलों और नेताओं से पूरी तरह मोहभंग हो चुके हैं और अब वे किसी निष्पक्ष और मजबूत नेतृत्व की तलाश में हैं.

सेना इस पूरे घटनाक्रम में केंद्रीय भूमिका निभा रही है. नेपाली सेना और प्रदर्शनकारी नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है. सेना यह समझने की कोशिश कर रही है कि यदि अस्थायी सरकार बनाने पर सहमति बनती है तो उसे किस तरह लागू किया जा सकता है. सेना का मानना है कि जब तक स्थिति स्थिर नहीं होती, तब तक लोकतांत्रिक प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती. यही वजह है कि सेना राजनीतिक दलों और युवाओं के बीच पुल का काम कर रही है.

लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है. नेपाल की राजनीति हमेशा से अस्थिर रही है. कभी राजशाही से गणतंत्र तक का सफर, कभी माओवादी आंदोलन, तो कभी बार-बार सरकार बदलने की परंपरा—इन सबने देश को लगातार अस्थिरता की ओर धकेला है. आज का संकट उसी अस्थिर परंपरा की अगली कड़ी है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार यह आंदोलन युवाओं के हाथों में है, जिन्हें अब तक की राजनीति से कोई उम्मीद नहीं बची.

प्रदर्शनों के बीच एक और गंभीर समस्या सामने आई—जेलों से लगभग 13,500 कैदियों का फरार होना. यह घटना प्रशासन की नाकामी को उजागर करती है और नागरिकों की सुरक्षा पर गहरे सवाल खड़े करती है. फरार कैदियों में कई ऐसे हैं जो भारत और नेपाल दोनों में गंभीर अपराधों के आरोपी हैं. इस घटना ने आम लोगों के डर और अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है. भारत ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है और सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेपाल की स्थिति को लेकर चिंता लगातार बढ़ रही है. भारत, चीन, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र सभी नेपाल से शांतिपूर्ण समाधान खोजने की अपील कर चुके हैं. कई देशों ने अपने नागरिकों को नेपाल की यात्रा से बचने की सलाह दी है. पर्यटन उद्योग, जो नेपाल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, पूरी तरह ठप हो गया है. होटल, ट्रैवल एजेंसियाँ और स्थानीय व्यवसाय भारी नुकसान झेल रहे हैं. आर्थिक गतिविधियाँ लगभग रुक गई हैं और देश मंदी के खतरे से जूझ रहा है.

आम नागरिकों की स्थिति बेहद कठिन है. कर्फ्यू के बीच वे घरों में कैद होकर रह गए हैं. जिनके घरों में बूढ़े या बीमार लोग हैं, उनकी परेशानियाँ और भी बढ़ गई हैं. इंटरनेट और फोन सेवाओं में भी बाधाएँ आ रही हैं. लोग आपसी संवाद से कटते जा रहे हैं. गांवों और छोटे कस्बों में हालात और खराब हैं क्योंकि वहाँ तक राहत सामग्री और प्रशासनिक मदद पहुँचना मुश्किल हो रहा है.

इसके बावजूद सड़कों पर युवाओं का उत्साह और आक्रोश कम होता नहीं दिख रहा. उनका कहना है कि जब तक संसद भंग नहीं होती और एक नई निष्पक्ष सरकार का गठन नहीं होता, तब तक वे पीछे नहीं हटेंगे. युवाओं की यह दृढ़ता बताती है कि नेपाल अब बदलाव की मांग कर रहा है और यह बदलाव आधा-अधूरा नहीं बल्कि पूर्ण रूप से नई दिशा देने वाला होना चाहिए.

नेपाल इस समय ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ से उसके भविष्य की दिशा तय होगी. यदि सेना, राजनीतिक दल और जनता मिलकर कोई समाधान खोज लेते हैं तो यह संकट एक नए लोकतांत्रिक युग की शुरुआत कर सकता है. लेकिन अगर असहमति बनी रही और हिंसा का दौर चलता रहा तो देश गहरे अराजकता की ओर जा सकता है. यह अराजकता केवल नेपाल ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है.

काठमांडू की सड़कों पर पसरे सन्नाटे, बंद बाजारों और खाली स्कूलों के बीच एक सवाल लगातार गूँज रहा है—क्या नेपाल इस संकट से निकल पाएगा. आम लोग शांति और स्थिरता की उम्मीद लगाए बैठे हैं लेकिन हर गुजरते दिन के साथ यह उम्मीद और धुंधली होती जा रही है.

आज नेपाल को केवल राजनीतिक स्थिरता की नहीं बल्कि जनविश्वास बहाल करने की भी जरूरत है. जनता की आवाज़ को सुनना, युवाओं की आकांक्षाओं को समझना और भ्रष्टाचार तथा बेरोजगारी जैसी मूलभूत समस्याओं का समाधान करना ही देश को इस संकट से बाहर निकाल सकता है. अन्यथा, कर्फ्यू और हिंसा की यह परंपरा लंबी चल सकती है और नेपाल बार-बार अस्थिरता के भंवर में फंसता रहेगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-