नेपाल में जेलों से तेरह हज़ार पांच सौ से अधिक कैदी फरार

नेपाल में जेलों से तेरह हज़ार पांच सौ से अधिक कैदी फरार

प्रेषित समय :20:51:45 PM / Thu, Sep 11th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

काठमांडू. नेपाल इस समय अपने इतिहास के सबसे भयावह आंतरिक संकटों में से एक से गुजर रहा है. राजधानी काठमांडू और देश के अन्य हिस्सों में पहले से चल रहे Gen-Z प्रदर्शनों ने जहाँ राजनीतिक अस्थिरता को नई ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया था, वहीं इसी अराजकता के बीच एक और चौंकाने वाली घटना ने प्रशासन की पूरी साख को सवालों के घेरे में ला दिया है. देश की विभिन्न जेलों से एक ही दिन में लगभग 13,500 कैदी भाग निकले. यह आंकड़ा न केवल नेपाल की न्याय व्यवस्था और कानून-व्यवस्था पर करारी चोट है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह खबर चिंता का विषय बन गई है.

नेपाल जैसे अपेक्षाकृत छोटे और संसाधनों से जूझते देश में इतनी बड़ी संख्या में कैदियों का एक साथ फरार होना इतिहास में पहली बार हुआ है. यह घटना इतनी व्यापक और चौंकाने वाली है कि लोग इसे प्रशासनिक असफलता ही नहीं बल्कि राज्य की विफलता मान रहे हैं. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यह कैदी फरार होने की घटनाएँ मुख्य रूप से काठमांडू, बिराटनगर, पोखरा, जनकपुर और नेपालगंज की जेलों में हुईं.

घटना का समय बेहद संवेदनशील था. राजधानी और अन्य प्रमुख शहरों में पहले से ही धारा 144 और कर्फ्यू लागू था. प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच टकराव लगातार जारी था. इसी अफरातफरी का फायदा उठाकर कैदियों ने जेल प्रशासन को चकमा दिया और हजारों की संख्या में भाग निकले. प्रारंभिक रिपोर्टों में कहा गया कि कई जेलों की सुरक्षा पहले से ही कमजोर थी और गार्डों की संख्या पर्याप्त नहीं थी. प्रदर्शनों के चलते पुलिस बल का एक बड़ा हिस्सा सड़कों पर तैनात था, जिससे जेलों की सुरक्षा और कमजोर हो गई. यही कारण रहा कि इतनी बड़ी संख्या में कैदी भागने में सफल रहे.

नेपाल की न्याय और कारागार व्यवस्था पर यह सवाल सबसे बड़ा है कि आखिर इतनी बड़ी चूक कैसे हुई. क्या यह केवल लापरवाही थी या इसके पीछे किसी संगठित षड्यंत्र की भूमिका थी. कई विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि कैदियों का फरार होना महज़ संयोग नहीं है बल्कि इसके पीछे गहरी योजना हो सकती है. क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में कैदी अगर एक साथ जेल से निकलते हैं तो इसका मतलब है कि पहले से ही कोई तैयारी की गई थी.

इस घटना ने नेपाल की जनता को गहरे डर और असुरक्षा की भावना से भर दिया है. नागरिक अब न केवल राजनीतिक अस्थिरता से परेशान हैं बल्कि अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर भी भयभीत हैं. फरार कैदियों में हत्यारों, डकैतों, बलात्कारियों और संगठित गिरोहों से जुड़े अपराधियों की संख्या भी शामिल है. इसका सीधा मतलब है कि आने वाले दिनों में अपराध की घटनाएँ बढ़ सकती हैं और आम लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे.

नेपाल प्रशासन ने कैदियों की तलाश के लिए बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया है. सेना और अर्धसैनिक बलों की मदद ली जा रही है. सीमाओं पर चौकसी बढ़ा दी गई है ताकि कैदी देश छोड़कर बाहर न जा सकें. लेकिन नेपाल की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह आसान नहीं होगा. देश की सीमाएँ भारत और चीन से जुड़ी हैं और खासकर भारत-नेपाल की खुली सीमा लंबे समय से दोनों देशों के बीच एक चुनौती बनी हुई है. यही वजह है कि नेपाल से भागे कई कैदियों के भारत में घुसने की आशंका जताई जा रही है.

भारत के लिए भी यह घटना चिंता का विषय है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार फरार कैदियों में कई ऐसे अपराधी शामिल हैं जो भारत में भी वांछित हैं. भारत-नेपाल की खुली सीमा का मतलब है कि बिना वीज़ा और पासपोर्ट के आसानी से आवाजाही होती है. इससे भारत की सीमा सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा दोनों पर खतरा मंडराने लगा है. भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पहले ही नेपाल से इनपुट लेना शुरू कर दिया है और सीमावर्ती राज्यों—बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम—में सुरक्षा बढ़ा दी गई है.

नेपाल की साख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया इसे राज्य की नाकामी और शासन की विफलता के रूप में पेश कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन इस घटना पर गहरी चिंता जता चुके हैं. उनका कहना है कि नेपाल में पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा से जूझ रही जनता अब अपराध की नई लहर का सामना करने को मजबूर है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-