काठमांडू. नेपाल इस समय अपनी राजनीति के सबसे अस्थिर दौर में प्रवेश कर चुका है. राजधानी काठमांडू से लेकर देश के अन्य प्रमुख शहरों तक उबाल की स्थिति बनी हुई है. सड़कों पर हजारों की संख्या में युवा प्रदर्शनकारी उतर चुके हैं, जिनकी मांग है कि संसद को तत्काल भंग कर अस्थायी सरकार का गठन किया जाए. इन प्रदर्शनों का सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब प्रदर्शनकारियों ने देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकीं सुशिला कार्की का नाम अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तावित कर दिया. इस प्रस्ताव ने देश की राजनीति को एक नए विमर्श की ओर मोड़ दिया है और सेना तथा राजनीतिक दलों को गंभीर विचार विमर्श के लिए मजबूर कर दिया है.
सुशिला कार्की नेपाल के न्यायपालिका इतिहास की एक प्रतिष्ठित हस्ती मानी जाती हैं. उनके कार्यकाल में न्यायपालिका ने कई अहम फैसले दिए थे, जिनसे सरकार और राजनीति में पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद जागी थी. शायद यही कारण है कि आज के युवा, जो मौजूदा राजनीतिक दलों और नेताओं से पूरी तरह मोहभंग की स्थिति में हैं, उन्हें अस्थायी नेतृत्व के रूप में देखने का समर्थन कर रहे हैं. प्रदर्शनों में युवाओं के हाथों में सुशिला कार्की के नाम और तस्वीरों वाले पोस्टर दिखाई दे रहे हैं, जो यह संकेत देते हैं कि आम जनता मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से निराश होकर किसी नए और निष्पक्ष चेहरे की तलाश में है.
इन प्रदर्शनों की जड़ हाल ही में लगाए गए सोशल मीडिया प्रतिबंधों से जुड़ी है. सरकार ने जिन प्लेटफार्मों ने स्थानीय कानूनों के तहत पंजीकरण नहीं कराया था, उन्हें बैन कर दिया. इस कदम ने युवाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित किया क्योंकि यह उनके विचारों की अभिव्यक्ति और संवाद का सबसे बड़ा माध्यम था. जैसे ही प्रतिबंध लागू हुआ, सड़कों पर विरोध की लहर उमड़ पड़ी. शुरुआत में यह विरोध केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर था, लेकिन जल्द ही इसमें भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और राजनीतिक उदासीनता के मुद्दे भी जुड़ते चले गए.
स्थिति तब और गंभीर हो गई जब कई शहरों में हिंसा भड़क उठी और पुलिस के साथ झड़पों में प्रदर्शनकारी मारे गए. नेपाल सरकार इस उबाल को संभालने में नाकाम रही और प्रशासनिक विफलताओं ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया. काठमांडू और आसपास के इलाकों में लगातार कर्फ्यू और धारा 144 जैसे कदम उठाने पड़े, लेकिन इनसे हालात और बिगड़ते गए. इसी पृष्ठभूमि में युवाओं ने संसद को भंग करने और अस्थायी सरकार बनाने की मांग को तेज कर दिया.
सेना, जो नेपाल की राजनीति में हमेशा से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है, अब इस मुद्दे पर प्रमुख भूमिका में आ गई है. बताया जा रहा है कि सेना और प्रदर्शनकारी नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है. सेना इस प्रस्ताव पर विचार कर रही है कि देश को किसी अस्थायी नेतृत्व के हवाले कर दिया जाए ताकि हालात को सामान्य किया जा सके और जनता का भरोसा बहाल किया जा सके. इसी सिलसिले में सुशिला कार्की का नाम सामने आया है.
राजनीतिक दलों की स्थिति इस समय बेहद नाजुक है. सत्ताधारी दल पूरी तरह दबाव में है और प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद उसके पास कोई ठोस रणनीति नहीं बची है. विपक्ष भी असमंजस की स्थिति में है क्योंकि वह जनता का विश्वास खो चुका है. ऐसे में युवाओं द्वारा सुझाया गया नाम सुशिला कार्की के रूप में सभी के लिए एक संभावित विकल्प के रूप में सामने आ रहा है. हालांकि, यह आसान रास्ता नहीं होगा क्योंकि राजनीतिक दल अपनी पकड़ और शक्ति को इतनी जल्दी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं.
प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि केवल एक अस्थायी और निष्पक्ष नेतृत्व ही देश में स्थिरता ला सकता है. वे चाहते हैं कि ऐसी सरकार बने जो आने वाले समय में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवा सके. उनका कहना है कि मौजूदा राजनीतिक ढांचा पूरी तरह विफल साबित हुआ है और अब किसी ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जिसका कोई राजनीतिक एजेंडा न हो.
इस पूरे घटनाक्रम ने नेपाल की जनता को गहरे असमंजस में डाल दिया है. एक ओर लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इस संकट से कोई रास्ता निकलेगा, वहीं दूसरी ओर उन्हें यह डर भी है कि अगर स्थिति का समाधान नहीं हुआ तो देश गृहयुद्ध जैसी अराजकता में फंस सकता है. आर्थिक मोर्चे पर भी संकट गहराता जा रहा है. कारोबार ठप पड़ चुका है, पर्यटन उद्योग चरमरा गया है और विदेशी निवेशक नेपाल से दूरी बनाने लगे हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नेपाल की स्थिति चिंता का विषय बन चुकी है. भारत ने नेपाल की अस्थिरता पर चिंता जताई है और सीमा पर सुरक्षा कड़ी कर दी है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन लगातार अपील कर रहे हैं कि नेपाल की सरकार और प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण समाधान की ओर कदम बढ़ाएं. कई देशों ने नेपाल में अपने नागरिकों को सतर्क रहने और यात्रा से बचने की सलाह दी है.
सुशिला कार्की का नाम भले ही अभी केवल प्रस्तावित है, लेकिन इसने नेपाल की राजनीति को नई दिशा में धकेल दिया है. अगर सेना और राजनीतिक दल इस प्रस्ताव को मान लेते हैं, तो यह नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम होगा. इससे यह भी साबित होगा कि जनता और खासकर युवाओं की आवाज़ इतनी प्रबल हो चुकी है कि वह सत्ता के उच्च स्तरों तक को प्रभावित कर सकती है.
फिलहाल काठमांडू और अन्य शहरों में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. कर्फ्यू के बीच लोग घरों में कैद हैं और रोजमर्रा का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. स्कूल, कॉलेज और कार्यालय बंद हैं. अस्पतालों तक पहुँचना भी कठिन हो गया है. लेकिन इसके बावजूद सड़कों पर युवाओं का जोश और आक्रोश थमता नजर नहीं आ रहा. उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे पीछे नहीं हटेंगे.
नेपाल इस समय एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है. या तो यहां एक नए नेतृत्व के जरिए लोकतंत्र को मजबूत किया जाएगा, या फिर अस्थिरता और अराजकता का सिलसिला और लंबा खिंच जाएगा. सुशिला कार्की का नाम इस अंधेरे दौर में एक उम्मीद की किरण की तरह सामने आया है. अब देखना यह होगा कि सेना, राजनीतिक दल और जनता मिलकर किस रास्ते पर आगे बढ़ते हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

