मुंबई. महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों एक बड़ा विवाद छिड़ गया है. आरोप है कि राज्य सरकार ने हैदराबाद स्थित मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (MEIL) को भारी-भरकम आर्थिक राहत प्रदान की है. यही कंपनी भाजपा की सबसे बड़ी कॉर्पोरेट डोनर मानी जाती है, जिसने चुनावी बांड योजना (Electoral Bonds) के तहत पार्टी को मोटी रकम दी थी. अब जब चुनावी बांड योजना को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है और दानदाताओं के नाम सार्वजनिक हो चुके हैं, तो इस मामले ने और भी राजनीतिक तूल पकड़ लिया है.
विधानसभा में उठा मुद्दा
महाराष्ट्र विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान यह मुद्दा तब सुर्खियों में आया जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के विधायक रोहित पवार ने राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले से सीधा सवाल दागा. पवार ने आरोप लगाया कि सरकार ने MEIL पर अवैध खनन के मामलों में लगाए गए ₹94.68 करोड़ के जुर्माने को लगभग पूरी तरह माफ कर दिया.
पवार ने कहा कि “एक ओर किसान मामूली उल्लंघन पर भी कड़ी सजा भुगतते हैं, वहीं बड़ी कंपनियों को डम्पर लौटाने के साथ बम्पर डिस्काउंट मिलता है.”
उनका इशारा इस ओर था कि सरकार आम नागरिकों और छोटे किसानों पर सख्त रवैया अपनाती है, जबकि कॉर्पोरेट घरानों को नियमों से छूट देती है.
दस्तावेजों से खुलासा
यह विवाद और गहराया जब पवार ने विधानसभा में 11 जुलाई 2025 को जारी आधिकारिक दस्तावेज पेश किए. ये दस्तावेज़ खुद मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले द्वारा भाजपा विधायक बाबनराव लोणीकर को दिए गए लिखित जवाब थे.
इन दस्तावेजों से साफ हुआ कि जिला प्रशासन ने विभिन्न मामलों में कुल ₹94.68 करोड़ का जुर्माना लगाया था, लेकिन कंपनी को मामूली रकम जमा करके राहत मिल गई.
जालना जिले में मामला:
अतिरिक्त जिलाधिकारी ने कंपनी पर ₹38.70 करोड़ का जुर्माना लगाया था.
इसके अलावा, पर्तूर तहसीलदार ने अवैध खुदाई के लिए ₹55.98 करोड़ का जुर्माना ठोका.
मगर कंपनी ने महज ₹17.28 लाख जमा करके न केवल मामले से छुटकारा पा लिया, बल्कि जब्त मशीनरी भी वापस ले ली.
सतारा का केस और विवाद
रोहित पवार ने सतारा जिले का एक और मामला भी उजागर किया. यहां मेघा इंजीनियरिंग पर सतारा से म्हसवद सड़क निर्माण के दौरान अवैध खुदाई के आरोप लगे थे.
स्थानीय प्रशासन ने कंपनी पर ₹105 करोड़ का भारी जुर्माना लगाया और उसकी मशीनरी व बैंक खाते सीज कर दिए.
लेकिन जून 2022 में सरकार बदलने के बाद परिस्थितियां बदल गईं. दिसंबर 2022 में कंपनी को भारी राहत मिल गई और कार्रवाई ठंडी पड़ गई.
विपक्ष का हमला तेज
विधानसभा में विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर सीधा हमला बोला.
रोहित पवार (NCP-शरद पवार गुट):
“सरकार दोहरा मापदंड अपनाती है. किसानों और छोटे व्यापारियों पर तलवार गिरती है, लेकिन बड़ी कंपनियों को नियमों से छूट दी जाती है. यह खुला पक्षपात है.”
कांग्रेस विधायक:
कांग्रेस के विधायकों ने भी इस मामले को भ्रष्टाचार से जोड़ते हुए कहा कि भाजपा ने चुनावी चंदा लेने वाली कंपनियों को सीधे फायदा पहुँचाने का खेल खेला है.
शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट):
शिवसेना ने इसे “राजनीतिक फंडिंग और सरकारी रियायतों का सीधा संबंध” बताया और केंद्रीय एजेंसियों से जांच की मांग की.
सरकार का बचाव
दूसरी ओर, सरकार और भाजपा नेताओं ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि सारे फैसले कानून और प्रक्रिया के तहत लिए गए.
राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा,
“यह मामला प्रशासनिक स्तर पर तय हुआ है. कंपनी ने जो राशि जमा की, वह नियमानुसार थी. इसमें कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं हुआ.”
हालांकि विपक्ष इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ और सदन में जमकर हंगामा हुआ.
चुनावी बांड से जुड़ा विवाद
इस पूरे प्रकरण को और विस्फोटक बनाता है कंपनी का राजनीतिक दान. MEIL भाजपा का सबसे बड़ा कॉर्पोरेट डोनर रही है. चुनावी बांड योजना के रिकॉर्ड से यह तथ्य उजागर हुआ था.
विपक्ष का आरोप है कि कंपनी ने भाजपा को चंदा दिया और बदले में महाराष्ट्र सरकार से आर्थिक लाभ उठाया. विपक्ष ने इसे “पॉलिटिकल क्विड प्रो क्वो” यानी राजनीतिक सौदेबाज़ी करार दिया.
जनता की नाराजगी और सवाल
इस विवाद ने आम जनता के बीच भी सवाल खड़े कर दिए हैं. किसान संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता कह रहे हैं कि अगर कोई किसान मामूली अवैध खुदाई करता है, तो उसकी जमीन तक नीलाम कर दी जाती है. वहीं करोड़ों का जुर्माना झेलने वाली बड़ी कंपनियों को सरकार की मेहरबानी मिल जाती है.
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना पाटिल कहते हैं,
“यह साफ है कि सरकार अमीर और ताकतवरों के लिए अलग नियम बनाती है और आम जनता के लिए अलग. यह न्याय नहीं है.”
राजनीतिक असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विवाद आने वाले निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है. विपक्ष इसे “कॉर्पोरेट-भाजपा नेक्सस” कहकर भुनाने की कोशिश करेगा. वहीं सरकार पर दबाव होगा कि वह मामले की जांच करे या कम से कम सार्वजनिक रूप से स्पष्ट जवाब दे.
महाराष्ट्र की राजनीति में यह विवाद फिलहाल थमने वाला नहीं दिख रहा. एक तरफ विपक्ष इसे कॉर्पोरेट पक्षपात और भ्रष्टाचार का मामला बता रहा है, तो दूसरी ओर सरकार इसे प्रशासनिक प्रक्रिया का नतीजा करार दे रही है.
लेकिन सवाल यही है –
क्या आम जनता और किसानों के लिए भी ऐसे “बम्पर डिस्काउंट” वाले नियम लागू होंगे?
या फिर यह व्यवस्था हमेशा से ताकतवर कंपनियों के पक्ष में झुकी रहेगी?
इन सवालों का जवाब आने वाले दिनों की राजनीति और जांच पर निर्भर करेगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

