बची हुई हवा: लघुकथाओं की संक्षिप्तता में समकालीन जीवन का विराट और धड़कता दस्तावेज़

बची हुई हवा: लघुकथाओं की संक्षिप्तता में समकालीन जीवन का विराट और धड़कता दस्तावेज़

प्रेषित समय :15:47:45 PM / Sat, Sep 13th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज
लघुकथा की दुनिया में जयप्रकाश मानस का संग्रह “बची हुई हवा”(2025 एक साधारण कृति भर नहीं है, बल्कि समकालीन जीवन का आत्म साक्षात्कार है. यह संकलन उन सांसों, पीड़ाओं और उम्मीदों का दस्तावेज़ है जो आज के समाज की थरथराती नब्ज़ में छिपी हैं. सूचनाओं की अंधाधुंध भीड़ और शब्दों की चकाचौंध में जहाँ अक्सर सच्चाई ओझल हो जाती है, वहाँ मानस की लघुकथाएँ उन प्रश्नों को पकड़ती हैं, जिन्हें हम टालते रहते हैं. यही कारण है कि ये रचनाएँ पाठक से केवल रसास्वादन की अपेक्षा नहीं करतीं, बल्कि उसे भीतर तक झाँकने और असहज होने के लिए विवश कर देती हैं. जैसा कि रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’अपनी भूमिका में लिखते हैं-“मानस अपनी लघुकथाओं में संवाद का निर्वाह सहज रूप में करते हैं. उनके संवादों में संवेदना की ऊष्मा कथा को प्राणवान बना देती है.”
इस संग्रह का सबसे बड़ा आकर्षण इसका कथ्य है, जो बहुविध सामाजिक यथार्थ से जुड़ता है.

* “टूटन की पूजा”और “पत्थरों की पंचायत” परंपरा और विडंबना को रूपकात्मक ढंग से सामने लाती हैं.

* “खिलौना और बच्चा” तथा “सपने देखने की जगह” मासूमियत और मानवीय संवेदनाओं की टूटन को मार्मिक रूप से अभिव्यक्त करती हैं.

* “पुल के बीच का आदमी” और “सीज़र की छाया में” सत्ता और राजनीति की नृशंस परतें उजागर करती हैं.

* शीर्षक कथा “बची हुई हवा का हिसाब” अस्तित्व और आशा की अंतिम डोर को प्रतीक और रूपक में बदल देती है.

यह विविधता मानस की रचनाओं को केवल भारतीय यथार्थ तक सीमित नहीं रखती, बल्कि विश्व साहित्य की परंपरा से भी जोड़ देती है. उदाहरण के लिए:
* “बची हुई हवा का हिसाब” का दार्शनिक संकट अल्बेयर कामू की कृति The Myth of Sisyphus (1942) में प्रतिपादित ‘Absurd’ की याद दिलाता है. कामू का मानना था कि जीवन में अर्थ की खोज और ब्रह्मांड की निस्संगता के बीच का टकराव ही "एब्सर्ड" है. मानस की कथा में आत्महत्या करने वाला व्यक्ति जब लिखता है-“मेरे गिरने से हवा में जगह बनेगी, किसी और की सांस बचेगी”, तब यह वही निरर्थकता और आशा का द्वंद्व है जो कामू के ‘सिसिफस’ की नियति में दिखाई देता है.

* “रात की रोटी” और “माली का हिसाब” हमें एंटोन चेख़व की Selected Short Stories की याद दिलाते हैं. चेख़व की विशेषता यह थी कि वे जीवन की साधारणताओं से असाधारण संवेदनाएँ निकालते थे. बची हुई रोटी या मुरझाए फूल जैसे दृश्य मानस के यहाँ भी मानवीय पीड़ा का गहन प्रतीक बन जाते हैं. यह वही है जिसे चेख़व “Tragedy of the Ordinary” कहते थे.

* “सीज़र की छाया में” अपनी रूपकात्मकता में जॉर्ज लुइस बोर्हेस की Labyrinths (1962) की परंपरा से मेल खाती है. बोर्हेस सत्य और सत्ता को हमेशा बहु व्याख्यायित रूपों में प्रस्तुत करते हैं. मानस की कथा में ‘सीज़र’ एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व भर नहीं है, बल्कि सत्ता का रोग (Disease of Power) बन जाता है. इस रूपांतरण में वही दार्शनिक गहराई है जो बोर्हेस की प्रतीक–प्रधान गद्य कृतियों में मिलती है.

* मानस की शिल्पीय संक्षिप्तता और संवाद की तीक्ष्णता अर्नेस्ट हेमिंग्वे की Men Without Women (1927) की शैली की याद दिलाती है. हेमिंग्वे का "आइसबर्ग थ्योरी" यह मानती है कि कहानी का अधिकांश भाग सतह के नीचे छिपा होता है. मानस की “एक और फल” या “सत्य का दर्पण” भी साधारण दृश्यों—जैसे गिरे आमों को उठाना या सरकारी निर्णय की औपचारिकता-के भीतर गहरे नैतिक साहस और करुणा का छिपा हुआ आइसबर्ग प्रस्तुत करती हैं.

* “बेंच के नीचे की भाषा” और “सपने देखने की जगह” फ्रांज़ काफ़्का की The Metamorphosis (1915) जैसी अस्तित्वगत बेचैनी को उद्घाटित करती हैं. काफ़्का की कहानियों में व्यक्ति अक्सर समाज और व्यवस्था के बीच अकेला और असहाय खड़ा होता है. मानस की कथा में मातृभाषा का कक्षा में दब जाना या भ्रष्ट व्यवस्था में सपनों की जगह का खो जाना, वही पीड़ा व्यक्त करता है जो ग्रेगर साम्सा के कीट में बदल जाने पर झलकती है.

लघुकथा की सबसे कठिन माँग है-संक्षिप्तता में गहराई. मानस इस कसौटी पर खरे उतरते हैं. उनकी भाषा सरल है, पर संवेदनात्मक ताप से भरी हुई. संवाद छोटे हैं, किंतु तीक्ष्ण और अर्थगर्भित. प्रतीक और रूपक कथाओं को अतिरिक्त गहराई देते हैं. “बची हुई हवा” में ‘हवा’ केवल सांस नहीं, बल्कि अस्तित्व और उम्मीद का प्रतीक है.
संग्रह की जड़ें गहरे सामाजिक सरोकारों में धँसी हैं.
* “माली का हिसाब”, “रात की रोटी”, और “बेंच के नीचे की भाषा” आम आदमी की व्यथा और हाशिए पर पड़े वर्गों की विडंबना का चित्रण करती हैं.
* “पगड़ी की आख़िरी गाँठ” और “शिलालेख” परंपरा और सम्मान की विसंगतियों को उजागर करती हैं.
यहाँ लेखक उपदेश नहीं देते, बल्कि स्थितियों को इस तरह रखते हैं कि पाठक खुद अपने भीतर आईना देखने लगे. यही ईमानदारी उनकी रचनाओं की ताक़त है.
जयप्रकाश मानस की लघुकथाएँ कामू जैसी दार्शनिक गहराई, चेख़व जैसी साधारण जीवन में मानवीयता, बोर्हेस जैसी रूपकात्मकता, हेमिंग्वे जैसी संक्षिप्तता और काफ़्का जैसी अस्तित्वगत बेचैनी से संवाद करती हैं. यही कारण है कि “बची हुई हवा” समकालीन हिंदी साहित्य में लघुकथा की ताक़त का प्रमाण है. इसमें भाषा की सहजता, शिल्प की तीक्ष्णता और सामाजिक सरोकारों की गहरी पैठ है.
जैसा कि स्वयं लेखक कहते हैं-“लघुकथा जीवन के एकांश का साक्षात्कार है, किसी एक दृश्य की वीडियोग्राफी है.” यह कथन “बची हुई हवा” को पढ़ते समय बार–बार सत्य प्रतीत होता है. इस दृष्टि से यह संग्रह न केवल हिंदी लघुकथा की परंपरा को आगे बढ़ाता है, बल्कि विश्व साहित्य की लघु गद्य–धारा में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-