शंकराचार्य ने बिहार में गौ-रक्षा के मुद्दे पर छेड़ा राजनीतिक संग्राम, केंद्रीय मंत्री ने करारा पलटवार किया

शंकराचार्य ने बिहार में गौ-रक्षा के मुद्दे पर छेड़ा राजनीतिक संग्राम, केंद्रीय मंत्री ने करारा पलटवार किया

प्रेषित समय :21:10:50 PM / Sun, Sep 14th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. बिहार की राजनीति में अचानक एक नया मोड़ आ गया है. ज्योतिषपीठ शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने यह घोषणा कर दी है कि वह आगामी विधानसभा चुनावों में सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे. यह घोषणा न केवल अभूतपूर्व है, बल्कि बिहार की चुनावी राजनीति में बड़ा भूचाल ला सकती है. धार्मिक जगत की ऐसी प्रमुख हस्ती का सीधे चुनावी राजनीति में उतरना और वह भी सिर्फ एक मुद्दे यानी गौ-रक्षा के नाम पर, इसे भाजपा और एनडीए के लिए सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है.

पटना में अपने फैसले की घोषणा करते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि उन्होंने बार-बार सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से अपील की थी कि वे गौ-रक्षा को सुनिश्चित करें, लेकिन उनकी कोई भी अपील सुनी नहीं गई. उनका कहना है कि भाजपा भले ही खुद को प्रखर हिंदुत्ववादी पार्टी कहती है, लेकिन सत्ता में आने के बाद भी उसने गोहत्या रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. उन्होंने यह भी याद दिलाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव अभियान में गौ-रक्षा को एक बड़ा वादा बनाया था, लेकिन अब तक कोई निर्णायक परिणाम सामने नहीं आया है. इसी निराशा और असंतोष के चलते उन्होंने यह तय किया कि अब सीधे जनता के बीच जाकर चुनाव लड़ेंगे और इस मुद्दे को राजनीति के केंद्र में लाएँगे.

यह पहला मौका नहीं है जब शंकराचार्य राजनीति के मैदान में उतरे हैं. इससे पहले उन्होंने वाराणसी संसदीय क्षेत्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारा था, वह भी गौ-रक्षा के मुद्दे पर. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने राज्यव्यापी “गौ वोटर संकल्प यात्रा” शुरू कर दी है. यह यात्रा शनिवार को सीतामढ़ी स्थित मां जानकी मंदिर से प्रारंभ हुई. इसका उद्देश्य बिहार के प्रत्येक जिला मुख्यालय तक पहुँचना और वहां मतदाताओं को गौ-रक्षा के लिए प्रतिबद्ध करने का संकल्प दिलाना है. यह यात्रा राजनीतिक माहौल को और गरमाने वाली है और आने वाले दिनों में यह राज्य की चुनावी दिशा तय कर सकती है.

शंकराचार्य के इस फैसले ने एनडीए खेमे में खलबली मचा दी है. सत्ता पक्ष के नेताओं ने तीखा पलटवार शुरू कर दिया है. शनिवार को बोधगया में केंद्रीय मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि उनसे शंकराचार्य की उपाधि छीन ली जानी चाहिए. मांझी ने उन्हें “गंदा आदमी” कह डाला और आरोप लगाया कि वह धार्मिक उपाधि का दुरुपयोग कर राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहते हैं.

मांझी ने प्रधानमंत्री मोदी की जमकर प्रशंसा की और कहा कि प्रधानमंत्री वही करते हैं जो कहते हैं. उन्होंने तर्क दिया कि पूरा विश्व देख रहा है कि प्रधानमंत्री ने भारत को कहां से कहां पहुँचा दिया है. आज भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश भी. मांझी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि शंकराचार्य इन उपलब्धियों को देखने में असमर्थ हैं और सिर्फ राजनीति के लिए धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं.

हालांकि मांझी ने लोकतांत्रिक मर्यादाओं को स्वीकार करते हुए यह भी कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर किसी को चुनाव लड़ने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि किसी को भी चुनाव मैदान में उतरने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन चुनाव में जाने का मतलब यह नहीं कि धार्मिक उपाधि को राजनीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाए.

बिहार की राजनीति में यह घटनाक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां का चुनाव हमेशा जातीय समीकरणों और गठबंधन की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमता रहा है. लेकिन शंकराचार्य ने एकदम अलग तरह का मुद्दा उठाकर इसे नया मोड़ दे दिया है. गौ-रक्षा जैसे मुद्दे पर चुनावी राजनीति केंद्रित करना अभूतपूर्व है और इससे भाजपा का वोट बैंक प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है. भाजपा और एनडीए के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन सकता है क्योंकि हिंदुत्व की राजनीति में गौ-रक्षा हमेशा एक संवेदनशील और भावनात्मक विषय रहा है.

शंकराचार्य के समर्थक इस कदम को ऐतिहासिक बता रहे हैं. उनका कहना है कि जब राजनीतिक दल आस्था और परंपरा से जुड़े मुद्दों की अनदेखी कर रहे हैं तो संत समाज को आगे आना ही होगा. वहीं विपक्षी खेमे में भी इस घोषणा को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया है. कुछ लोग मानते हैं कि इससे भाजपा का नुकसान होगा और हिंदुत्व वोटों में बिखराव होगा, वहीं कुछ का कहना है कि यह कदम चुनावी राजनीति में व्यावहारिक रूप से सफल नहीं होगा क्योंकि बिहार जैसे राज्य में केवल गौ-रक्षा के आधार पर मतदाताओं को लामबंद करना आसान नहीं है.

राजनीतिक पंडित मानते हैं कि शंकराचार्य का चुनावी मैदान में उतरना भले ही सत्ता परिवर्तन का कारण न बने, लेकिन यह चुनावी विमर्श को ज़रूर बदल देगा. अब भाजपा को बार-बार इस सवाल का सामना करना पड़ेगा कि उसने गौ-रक्षा के लिए कौन से ठोस कदम उठाए हैं. दूसरी ओर, एनडीए के सहयोगियों को भी यह समझाना कठिन होगा कि शंकराचार्य जैसे प्रभावशाली धार्मिक नेता को क्यों नजरअंदाज किया गया.

बिहार में अगले कुछ महीनों में राजनीतिक हलचल और बढ़ने वाली है. शंकराचार्य की “गौ वोटर संकल्प यात्रा” अगर ज़मीनी स्तर पर असर डालती है तो यह चुनावी समीकरणों को हिला सकती है. दूसरी तरफ एनडीए यह कोशिश करेगा कि शंकराचार्य की चुनौती को गंभीर न दिखाए और इसे एक व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा करार दे. लेकिन जिस तरह से केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है, उससे साफ़ है कि इस चुनौती ने सत्ता पक्ष को असहज कर दिया है.

अब देखना यह होगा कि गौ-रक्षा के मुद्दे पर केंद्रित यह नया राजनीतिक प्रयोग कितना सफल होता है और क्या वास्तव में यह बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव लाता है या फिर यह केवल एक सीमित असर छोड़कर रह जाएगा. फिलहाल इतना तय है कि शंकराचार्य की घोषणा ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है और आने वाले समय में यह मुद्दा पूरे देश की राजनीति में चर्चा का केंद्र बन सकता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-