भाषा केवल संवाद का साधन नहीं होती, बल्कि वह समाज की आत्मा और संस्कृति की वाहक होती है।राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की भूमि कहे जाने वाले बिहार के बेगूसराय जिला मुख्यालय में जिला साहित्य अकादमी ने इसी विचार को केंद्र में रखते हुए अपना स्थापना दिवस सह हिन्दी दिवस-सम्मान समारोह आयोजित किया।कर्मयोगी सभागार, कर्मचारी भवन में आयोजित यह समारोह केवल सम्मान का अवसर नहीं था, बल्कि हिन्दी की अस्मिता, उसके भविष्य और उसकी चुनौतियों पर सामूहिक चिंतन का मंच भी बना।साहित्यकारों, कवियों, पत्रकारों और रंगकर्मियों की उपस्थिति ने सभागार का वातावरण उल्लासपूर्ण और विचारोत्तेजक बना दिया।इस आयोजन ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि हिन्दी केवल भाषा नहीं, बल्कि आत्मा की आवाज़ है। यह हमारी संस्कृति की धड़कन और हमारी पहचान की रीढ़ है। जब एक ओर साहित्यकार हिन्दी की ताकत और गरिमा पर प्रकाश डालते हैं, वहीं दूसरी ओर पत्रकारिता और रंगकर्म में योगदान देने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तियों को सम्मानित किया जाता है। इस समारोह ने यह साबित कर दिया कि हिन्दी के बिना न साहित्य पूर्ण है, न संस्कृति, न ही राष्ट्र की आत्मा।

भाषा के नाम पर देश को बाँटने नहीं दें:राजेन्द्र राजन
प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन ने हिन्दी की शक्ति और उसके वैश्विक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा –
“आज हिन्दी एक ग्लोबल भाषा है। बाजार को भी हिन्दी की जरूरत है और यह उपभोक्ताओं तक पहुँचने का माध्यम बन चुकी है। हिन्दी में वह शक्ति है जो हर भाषा को आत्मसात कर लेती है। यही उसकी महानता है।
हमारी संस्कृति शुद्धता की नहीं, बल्कि सम्मिश्रण की संस्कृति है। जो यहाँ आता है, वह इसी मिट्टी का हो जाता है। यही भारतीयता है।
भाषा के नाम पर देश को बाँटने की कोशिश न हो। यदि भाषा के नाम पर विभाजन होगा, तो न देश बचेगा, न हम और न ही संस्कृति।
महात्मा गांधी ने कहा था कि यदि देश को आज़ादी चाहिए तो हिन्दी को हिंदवी बनाना होगा।”
राजन ने साफ कहा –
“हमें अंग्रेज़ी के मोह से बाहर निकलना होगा। हिन्दी को अपनी ताकत बनाइए। इतना सशक्त कीजिए कि हम गर्व से कह सकें – हिन्दी हमारी भाषा है।”
हिन्दी बोलने में हीनता क्यों? : अमरेश शांडिल्य
समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रो. अमरेश शांडिल्य ने मानसिकता पर सवाल उठाया –
“आज यह स्थिति क्यों है कि हिन्दी बोलने में हीनता का बोध होता है, जबकि अंग्रेज़ी बोलने वाला श्रेष्ठ समझा जाता है?
यह मानसिकता बदलनी होगी। हमें हिन्दी को हीनता के कुंठित घेरे से निकालना होगा।
हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग हो, लेकिन उसमें कृत्रिमता या अनावश्यक शब्दों का बोझ न डाला जाए। हिन्दी को हिन्दी ही रहने दीजिए।”
विदेशों में भी प्रवासी हिन्दी ही बोलते हैं :राजेन्द्र नारायण सिंह
सेवानिवृत्त शिक्षक राजेन्द्र नारायण सिंह ने हिन्दी की जड़ों की मजबूती पर कहा –
“विदेशों में रहने वाले भारतीय भी अपनी पहचान हिन्दी के माध्यम से ही बनाए रखते हैं।
वे घर-परिवार और सामाजिक आयोजनों में हिन्दी में ही संवाद करना पसंद करते हैं। यह भाषा उनकी जड़ों से जुड़ने का पुल है।
लेकिन हमारे यहाँ गाँव-गाँव में अंग्रेज़ी स्कूल खुलते जा रहे हैं। यह प्रवृत्ति हिन्दी की दुर्दशा का संकेत है। हमें इस पर गंभीरता से चिंतन करना होगा।”
हिन्दी हमारी संस्कृति का ध्वज है :उमेश कुमार सिंह
सेवानिवृत्त आईजी उमेश कुमार सिंह ने कहा –
“हिन्दी केवल भाषा नहीं, यह हमारी संस्कृति का ध्वज है।
हमें इसे आत्मगौरव और आत्मविश्वास के साथ अपनाना चाहिए।
यह भाषा हमारी पहचान है और हमारी अस्मिता का मूल आधार भी।”
हिन्दी : वैश्विक बाजार की भाषा
राजेन्द्र राजन ने बदलते समय का संकेत देते हुए कहा –
“आज बाजार भी हिन्दी की शक्ति को स्वीकार कर चुका है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय उपभोक्ताओं तक पहुँचने के लिए हिन्दी का सहारा ले रही हैं।
यह बताता है कि हिन्दी अब केवल साहित्य की भाषा नहीं, बल्कि व्यापार और संस्कृति की साझा भाषा भी बन चुकी है।
हमें इस अवसर को और मजबूत करना चाहिए।”
सम्मान समारोह : रचनात्मकता का अभिनंदन
इस अवसर पर साहित्य, पत्रकारिता और रंगकर्म के अनेक हस्ताक्षरों को सम्मानित किया गया।
यह क्षण सभागार के लिए गर्व का था, जब बेगूसराय की माटी के सपूतों को उनके योगदान के लिए सराहा गया।
साहित्यकारों को सम्मान
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भुवनेश्वर प्रसाद सिंह (गेहुनी) भुवन – डॉ० आनंद नारायण शर्मा सम्मान
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राजकिशोर सिंह (बीहट) – जनार्दन प्रसाद सिंह स्मृति सम्मान
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स्वाति गोदर (बेगूसराय) – डॉ० वचनदेव कुमार स्मृति सम्मान
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मिथिलेश मिश्र (छतौना) – वैद्यनाथ चौधरी स्मृति सम्मान
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रंजीत पंडित (आगापुर) – रामावतार यादव शक्र स्मृति सम्मान
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रूपम झा (वीरपुर) – शिवनंदन सिंह स्मृति सम्मान
पत्रकारिता क्षेत्र में सम्मान
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विनोद कुमार (दहिया) – कामता प्रसाद सिंह स्मृति सम्मान
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मो० उमर खान (बखरी) – जावेद इकबाल स्मृति सम्मान
रंगकर्म क्षेत्र में सम्मान
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रवि रंजन (बेगूसराय) – अशोक पाठक स्मृति सम्मान
श्रद्धांजलि और संवेदना
समारोह के दौरान जिला साहित्य अकादमी के अध्यक्ष सीताराम प्रभंजन की पत्नी के निधन पर शोक व्यक्त किया गया।
सभागार में उपस्थित सभी ने दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की।
यह क्षण गंभीर और भावुक था।
समारोह का साहित्यिक परिदृश्य
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स्वागत भाषण – डॉ० रामरेखा सिंह
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जिला साहित्य अकादमी का इतिहास – साहित्यिक पत्रिका समय सुरभि अनंत के संपादक नरेन्द्र कुमार सिंह
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धन्यवाद ज्ञापन – वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल पतंग
अनिल पतंग ने कहा –“ऐसे आयोजन समाज में साहित्य और भाषा के महत्व को पुनः स्थापित करते हैं।”
विशेष उपस्थिति
जिला महासचिव अग्निशेखर, मुक्तक विधा के सशक्त स्तम्भ तथा जाने माने हिंदी गजल कार अशांत भोला (गुरुवर) , दुर्गा प्रसाद राय, राम कुमार सिंह, प्रभात कुमार प्रभाकर, प्रो० अनिल प्रसाद सिंह, इंजीनियर कन्हैय पंडित, अमर शंकर झा सुब्बा, मनोरंजन विप्लवी समेत अनेक साहित्यप्रेमी और रंगकर्मी मौजूद रहे।उनकी उपस्थिति ने आयोजन की गरिमा को और बढ़ा दिया।
इस समारोह का निष्कर्ष यही रहा कि हिन्दी केवल भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर, अस्मिता और पहचान है।
वक्ताओं ने कहा –हिन्दी को साहित्य तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इसे विज्ञान, तकनीक, व्यापार और वैश्विक मंच पर भी मजबूती से स्थापित किया जाए।
राजेन्द्र राजन का यह कथन पूरे आयोजन का सार बनकर गूंजता रहा –“भाषा के नाम पर देश को बाँटने नहीं दें।”
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-वरिष्ठ रंगकर्मी रवि रंजन को रंगकर्म में योगदान के लिए सम्मान
जिले में साहित्य और रंगमंच के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले वरिष्ठ रंगकर्मी, लेखक और पत्रकार रवि रंजन को बेगूसराय जिला साहित्य अकादमी की ओर से सम्मानित किया गया। अकादमी ने उन्हें रंगकर्म के लिए योगदान हेतु अंगवस्त्र, शॉल और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया। सम्मान समारोह के दौरान रवि रंजन ने कहा कि नाटक सूली ऊपर रोज पिया में उनके निर्देशन और अभिनय की जो सामाजिक समरसता संदेश नाटक के माध्यम से समाज तक पहुंचाया गया था, उसकी गूंज आज भी है। उन्होंने कहा कि रंगमंच समाज का दर्पण होता है और यह समाज को आईना दिखाने का काम करता है।
उन्होंने रंगकर्म के जरिये समाज के हाशिये पर खड़े लोगों के लिए न केवल स्वर बुलंद किया, बल्कि सामाजिक कुरीतियों पर भी प्रहार किया। रवि रंजन ने कई अखबारों और पत्रिकाओं में लेख लिखकर समाज, राजनीति और संस्कृति पर अपनी बेबाक राय दी। उन्होंने आश्वस्त किया कि सामाजिक बुराइयों और विसंगतियों को दूर करने के लिए उनका प्रयास आगे भी जारी रहेगा।
इस मौके पर उपस्थित अतिथियों ने कहा कि रवि रंजन का रंगमंचीय योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने अपनी रचनात्मकता से कई पीढ़ियों को प्रेरित किया है।
रवि रंजन ने अपनी रंगमंचीय यात्रा की शुरुआत छात्र जीवन से की थी। उन्होंने ‘प्रहरी’ नाटक से रंगकर्म में अपनी अलग पहचान बनाई थी। इसके बाद उन्होंने कई नाटकों में निर्देशन और अभिनय कर अपनी कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।यह सम्मान समारोह कला और साहित्य के क्षेत्र में प्रेरणादायी योगदान देने वालों को समर्पित था।

