हिंदी दिवस के अवसर पर मुंबई महानगर की सांस्कृतिक धरती ने एक ऐसे आयोजन का साक्षात्कार किया, जिसने न केवल भाषा-साहित्य के विविध रंगों को एक साथ प्रस्तुत किया बल्कि यह भी सिद्ध किया कि संवेदना और मानवीयता की भाषा कभी सीमाओं में बँधी नहीं होती.जनवादी लेखक संघ, मुंबई और स्वर संगम फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में मीरा रोड (पूर्व) स्थित विरंगुला केंद्र में बहुभाषी कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ. खचाखच भरे सभागार ने आरंभ से अंत तक हिंदी, उर्दू, मराठी और बंगाली कविता-शायरी का रसास्वादन किया.
अनिता भारती : समानता और दलित साहित्य की शक्ति
दिल्ली से पधारी चर्चित लेखिका, कवयित्री और एक्टिविस्ट अनिता भारती इस आयोजन की प्रमुख अतिथि रहीं. उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज की व्यथा और बदलाव की चेतना को आवाज़ दी.
उन्होंने कहा—
“कोई भी भाषा छोटी या बड़ी नहीं होती. हर भाषा अपनी तरह से मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करती है. मैंने जब मराठी से हिंदी में दलित साहित्य का अनुवाद पढ़ा, तो मुझे एक नई जीवन-दृष्टि और शक्ति मिली.”
उनके वक्तव्य ने श्रोताओं को यह सोचने पर विवश किया कि भाषाओं के बीच वास्तविक रिश्ता सत्ता या वर्चस्व का नहीं, बल्कि संवेदनाओं का होता है.
कुसुम त्रिपाठी : हिंदी भाईचारे की भाषा
कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर कुसुम त्रिपाठी ने अपने संबोधन में कहा—
“हिंदी किसी पर वर्चस्व जमाने की भाषा नहीं, बल्कि भाईचारे और प्रेम की भाषा है. यही हिंदी की असली ताक़त है.”
उनका यह कथन आयोजन के मूल भाव को मूर्त रूप देता प्रतीत हुआ.
ग़ज़ल और कविता का संगम
सभा में वरिष्ठ कवि एवं शायर हृदयेश मयंक और राकेश शर्मा की प्रस्तुति ने माहौल को भावविभोर कर दिया.
राकेश शर्मा की यह पंक्तियाँ—
“न हिंदी है, न उर्दू है मेरे अशआर की भाषा;
मैं शायर हूँ, मेरा दिल बोलता है प्यार की भाषा.”
—श्रोताओं के दिलों में सीधे उतर गईं.
वहीं हृदयेश मयंक की ग़ज़ल की पंक्तियाँ—
“फिर कहीं शोर उठा और कहीं आग लगी,
उसमें जलता हुआ मेरा घर उभर कर आया.”
—पर सभागार देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा.
नई पीढ़ी के कवियों की भागीदारी
कवि सम्मेलन में उर्दू, मराठी, हिंदी और बंगाली भाषाओं से जुड़े अनेक रचनाकारों ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं. इनमें मुस्तहसन अज्म, नैमिष राय, अनिल गौड़, भूपेंद्र मिश्र, सुनील ओवाल, आरिफ महमूदाबादी, आर.एस. विकल, रमन मिश्र, राजीव रोहित, इरफान शेख, सतीश शुक्ल रकीब, कुसुम तिवारी, जानी अंसारी, सुनील कुलकर्णी, पुलक चक्रवर्ती, सुरेश कोपीडष्कर, आर.एस. आघात आदि प्रमुख रहे.
प्रत्येक कवि की प्रस्तुति ने यह प्रमाणित किया कि भाषा भले ही अलग हो, लेकिन संवेदनाओं का स्रोत समान है.
अध्यक्षता, संचालन और आभार-प्रदर्शन
सभा की अध्यक्षता शैलेश सिंह ने की, जिन्होंने कहा कि—
“आज का यह बहुभाषी संगम हमें यह विश्वास दिलाता है कि भाषा की सीमाएँ कृत्रिम हैं, साहित्य और कविता की धारा सबको जोड़ती है.”
संचालन का दायित्व जुल्मीरामसिंह यादव ने कुशलता से निभाया और डॉ. मुख्तार खान ने आभार-प्रदर्शन करते हुए कहा—
“इस आयोजन ने साबित कर दिया कि साहित्य मनुष्यता की सबसे बड़ी पहचान है.”
इस अवसर पर शहर के अनेक साहित्यकार, चिंतक, पत्रकार और नाट्यकर्मी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे. डॉ. गुलाब यादव, मुशर्रफ शम्सी, संजय पांडे, विनोद यादव, मोइन अंसार, विजय यादव, दिनेश गुप्त, धर्मेंद्र चतुर्वेदी, अक्षय यादव, शिवशंकर सिंह, रामू जायसवाल, सभाजीत यादव, हेमंत सिंह सहित अनेक साहित्य-प्रेमियों की उपस्थिति ने समारोह को और भी गरिमामय बना दिया.
यह बहुभाषी कवि सम्मेलन केवल एक सांस्कृतिक आयोजन भर नहीं था, बल्कि यह उस व्यापक विचारधारा का सशक्त उदाहरण बना, जिसमें भाषाएँ एक-दूसरे की पूरक बनती हैं, न कि प्रतिस्पर्धी. हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित इस सम्मेलन ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि—
-
साहित्य का वास्तविक स्वरूप बहुभाषी है.
-
संवेदनाएँ किसी एक भाषा की बपौती नहीं.
-
काव्य मनुष्य को जोड़ता है, बाँटता नहीं.
सभागार से निकलते समय श्रोताओं के चेहरे पर संतोष और हृदय में उत्साह साफ झलक रहा था. हिंदी दिवस का यह आयोजन वास्तव में भाषाओं की विविधता और काव्य की एकता का जीवंत साक्ष्य बनकर उपस्थित हुआ.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

