विश्वविद्यालयों को ट्रंप प्रशासन का प्रस्ताव: सौदा या फंदा?

विश्वविद्यालयों को ट्रंप प्रशासन का प्रस्ताव: सौदा या फंदा?

प्रेषित समय :21:46:21 PM / Fri, Oct 3rd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

वॉशिंगटन। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने देश के चुनिंदा विश्वविद्यालयों को एक नया प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव के तहत यदि विश्वविद्यालय सरकार द्वारा तय की गई शर्तों को मान लेते हैं, तो उन्हें अरबों डॉलर की फेडरल ग्रांट्स और मदद में प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन यह प्रस्ताव शिक्षा जगत में गहरी बहस और विरोध का कारण बन गया है।

प्रस्ताव की मुख्य शर्तें

प्रशासन के मुताबिक इस कॉम्पैक्ट (Compact) में शामिल विश्वविद्यालयों को सरकार की फंडिंग और सुविधाएँ दी जाएंगी, बशर्ते वे—

  • अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या सीमित करें।

  • रूढ़िवादी (Conservative) विचारों की सुरक्षा करें।

  • एडमिशन व नियुक्तियों में नस्ल और लिंग को कारक न मानें।

  • प्रवेश परीक्षाएँ अनिवार्य करें।

  • ग्रेड इन्फ्लेशन को रोकें।

  • बड़ी एंडोमेंट वाले विश्वविद्यालय विज्ञान विषय पढ़ने वाले छात्रों को ट्यूशन माफ करें।

विश्वविद्यालय जगत में विरोध

अमेरिका के कई शिक्षाविदों और संगठनों ने इसे शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला बताया है। यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया के प्रोफेसर जोनाथन ज़िमरमैन ने कहा—

"ट्यूशन को कम करना या वैचारिक विविधता बढ़ाना अच्छी बातें हैं, लेकिन जब इन सबका निर्धारण सरकार करेगी तो यह बेहद खतरनाक है।"

फाउंडेशन फॉर इंडिविजुअल राइट्स एंड एक्सप्रेशन (FIRE) ने कहा कि यह शर्त पहले संशोधन (First Amendment) का उल्लंघन कर सकती है। उनका तर्क है कि आज सरकार पसंदीदा विचारों को पुरस्कृत करेगी, तो कल नापसंद विचारों को दंडित भी कर सकती है।

 संगठनों और नेताओं की प्रतिक्रिया

  • अमेरिकन फेडरेशन ऑफ टीचर्स और अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स ने इसे "निष्ठा की शपथ (Loyalty Oath)" करार दिया।

  • कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूज़ॉम ने चेतावनी दी कि अगर कोई कैलिफोर्निया का विश्वविद्यालय इस समझौते पर हस्ताक्षर करेगा तो राज्य सरकार उसकी फंडिंग रोक देगी।

  • वहीं, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास बोर्ड ऑफ रीजेंट्स के अध्यक्ष केविन एल्टाइफ ने कहा कि यह प्रस्ताव टेक्सास की रिपब्लिकन नीतियों के अनुरूप है।

 किन विश्वविद्यालयों से संपर्क?

जिन 9 संस्थानों को यह प्रस्ताव दिया गया उनमें शामिल हैं:

  • यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना

  • ब्राउन यूनिवर्सिटी

  • डार्टमाउथ कॉलेज

  • एमआईटी

  • यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया

  • यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया

  • यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास

  • वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी

  • यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया

इनमें से अधिकतर ने तुरंत कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया।

कानूनी और प्रशासनिक सवाल

विशेषज्ञों का कहना है कि इस कॉम्पैक्ट के कई प्रावधान कानूनी सुरक्षा उपायों को दरकिनार करते हैं। पहले भी ट्रंप प्रशासन कई बार शैक्षिक नीतियों को बिना कांग्रेस से पास कराए सीधे संस्थानों से प्रतिज्ञापत्र (pledges) पर हस्ताक्षर कराकर लागू करने की कोशिश कर चुका है।

न्यायालयों ने पहले भी ऐसे प्रयासों पर सवाल उठाए हैं। हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुकदमा जीता था।

ट्रंप प्रशासन का यह प्रस्ताव विश्वविद्यालयों के लिए एक लाभकारी सौदा भी हो सकता है और शैक्षणिक स्वतंत्रता पर खतरा भी। कुछ संस्थान इसे अवसर मान रहे हैं तो कुछ इसे "सरकारी हस्तक्षेप और शक्ति केंद्रीकरण" की मिसाल बता रहे हैं। आने वाले दिनों में विश्वविद्यालयों का रुख तय करेगा कि यह कॉम्पैक्ट शिक्षा जगत में नई राह खोलेगा या गहरी खाई

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-