हर साल साइबेरिया से हजारों किलोमीटर उड़कर पक्षी भारत की नदियों और तालाबों तक पहुंचते हैं, हाथियों के झुंड जंगलों से गुजरते हुए नए चरागाह तलाशते हैं और व्हेलें समुद्रों के रास्ते लंबी यात्राएं करती हैं। यह सब हमें बताता है कि प्रकृति में कितना गहरा संतुलन है, लेकिन अब यही संतुलन जलवायु परिवर्तन की मार से बिगड़ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की कन्वेंशन ऑन द कंज़र्वेशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीशीज़ (CMS) की नई रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने चेताया है कि जलवायु संकट प्रवासी प्रजातियों की जिंदगी और उनकी यात्राओं को गंभीर खतरे में डाल रहा है। फरवरी 2025 में एडिनबरा (यूके) में आयोजित वर्कशॉप में 73 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर चर्चा की थी। यह रिपोर्ट अगले साल ब्राजील में होने वाले CMS COP15 सम्मेलन का आधार बनेगी।
रिपोर्ट बताती है कि असर हर जगह दिख रहा है। अलास्का और आर्कटिक में पक्षियों को दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से कीड़ों का उभरने का समय बदल गया है। इससे अंडे और चूजे सही समय पर भोजन नहीं पा रहे। भारत और श्रीलंका में हाथियों का प्राकृतिक इलाका बदल रहा है, लेकिन जंगलों की कनेक्टिविटी टूटने से इंसानों और हाथियों का टकराव बढ़ गया है। समुद्र के गर्म होने से व्हेल के शिकार कम हो रहे हैं और नॉर्थ अटलांटिक की राइट व्हेल को लंबी और खतरनाक डिटूर लेनी पड़ रही है। हिमालय में मस्क डियर, हिमालयी तीतर और स्नो ट्राउट जैसी प्रजातियां ऊंचाई पर धकेली जा रही हैं और उनका क्षेत्र सिकुड़ रहा है। अमेज़न में 2023 में नदी का पानी 41 डिग्री तक पहुंच गया था, जिससे डॉल्फ़िन की मौत हुई। वहीं मेडिटेरेनियन में समुद्री हीटवेव्स से व्हेल और डॉल्फ़िन की रेंज 70% तक घट सकती है। समुद्र के सीग्रास मैदान भी बढ़ते तापमान, तूफानों और समुद्र के स्तर से टूट रहे हैं, जिससे कछुओं और डुगोंग जैसी प्रजातियों पर असर पड़ रहा है।
CMS की कार्यकारी सचिव एमी फ्रैंकल का कहना है कि प्रवासी जानवर धरती का अर्ली-वार्निंग सिस्टम हैं। अगर तितलियां, व्हेल और हाथी संकट में हैं, तो यह हमारे लिए भी चेतावनी है। ये प्रजातियां सिर्फ अपने लिए नहीं चलतीं बल्कि धरती की सेहत का आधार हैं। जंगल के हाथी कार्बन स्टोरेज क्षमता बढ़ाते हैं और व्हेल समुद्र में पोषक तत्वों का आदान-प्रदान करती हैं।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि समाधान हमारे पास हैं। जंगलों में इकोलॉजिकल कॉरिडोर बनाकर हाथियों और अन्य जानवरों को उनकी यात्रा पूरी करने का रास्ता दिया जा सकता है। समुद्र में व्हेल की सुरक्षा के लिए डायनेमिक मैनेजमेंट लागू किया जा सकता है। कई जगह स्थानीय और आदिवासी समुदाय पहले से ऐसे मॉडल सफलतापूर्वक अपना रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि माइग्रेशन के रास्तों से बाधाएं हटानी होंगी, सफल केस स्टडीज साझा करनी होंगी और आदिवासी ज्ञान को शामिल करना होगा।
धरती की इन यात्राओं पर पूरी पारिस्थितिकी टिकी है। अगर जलवायु परिवर्तन ने इन्हें काट दिया, तो न सिर्फ तितलियां और हाथी, बल्कि हमारी सांसें, जंगल और समंदर भी खतरे में पड़ जाएंगे। सवाल यही है कि क्या हम समय रहते इन यात्राओं को बचा पाएंगे, या आने वाली पीढ़ियां केवल किताबों में पढ़ेंगी कि कभी हाथियों के झुंड जंगल पार करते थे और व्हेलें महासागरों में गाती थीं।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

