नई दिल्ली, 9 अक्टूबर 2025. यूके के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने घोषणा की है कि यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंकेस्टर और यूनिवर्सिटी ऑफ़ सरे को भारत में अपने कैंपस खोलने की अनुमति मिल गई है. यह घोषणा प्रधानमंत्री स्टारमर के भारत के पहले दौरे के दौरान की गई. इन दोनों विश्वविद्यालयों के अनुमोदन के साथ ही भारत में यूके की शैक्षणिक संस्थानों की संख्या नौ हो गई है जो ऑफशोर कैंपस स्थापित कर रहे हैं.
इससे पहले इस साल यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथैम्पटन ने दिल्ली में अपना कैंपस खोला था, जबकि यूनिवर्सिटी ऑफ़ यॉर्क, यूनिवर्सिटी ऑफ़ एबरडीन, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिस्टल, यूनिवर्सिटी ऑफ़ लिवरपूल, क्वीन यूनिवर्सिटी बेलफास्ट और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कॉवेंट्री अगले साल से अपने कैंपस शुरू करने वाले हैं.
ब्रिटिश उच्चायोग के एक बयान के अनुसार प्रधानमंत्री स्टारमर ने पुष्टि की कि यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंकेस्टर और यूनिवर्सिटी ऑफ़ सरे को भारत में नए कैंपस खोलने की मंजूरी दी गई है ताकि बढ़ती हुई उच्च शिक्षा की मांग को पूरा किया जा सके. वर्तमान में भारत में विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे छात्रों की संख्या 40 मिलियन है और अनुमान है कि 2035 तक 70 मिलियन स्थानों की आवश्यकता होगी. यूके का विश्व-प्रसिद्ध उच्च शिक्षा क्षेत्र इस बढ़ती मांग का लाभ उठाते हुए हजारों भारतीय छात्रों को बिना देश छोड़ें यूके की डिग्री हासिल करने का अवसर देगा और भारत की अर्थव्यवस्था में भी करोड़ों पाउंड का योगदान होगा.
इन नए कैंपसों के उद्घाटन के साथ, यूके भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपस्थिति वाला देश बनने जा रहा है. प्रधानमंत्री स्टारमर और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि का जश्न मुम्बई में यूके के उपकुलपतियों के साथ बैठक में मनाया.
यूके के प्रधानमंत्री इस दो-दिवसीय व्यापार मिशन पर हैं, जिसका उद्देश्य विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के साथ संबंध मजबूत करना और ब्रिटिश जनता के लिए आर्थिक अवसरों को बढ़ाना है. प्रधानमंत्री स्टारमर ने कहा कि “हमारी महान ब्रिटिश विश्वविद्यालय दुनिया भर में अपनी उत्कृष्ट शिक्षा, उच्च-गुणवत्ता वाले शोध और नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता के लिए सराहे जाते हैं. मैं प्रसन्न हूं कि और अधिक भारतीय छात्र निकट भविष्य में विश्व-स्तरीय ब्रिटिश शिक्षा का लाभ उठा सकेंगे, जिससे हमारे दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत होंगे और हमारी अर्थव्यवस्था में करोड़ों का योगदान होगा.”
यूके की शिक्षा सचिव ब्रिजेट फिलिपसन ने कहा कि ब्रिटिश उच्च शिक्षा विश्व स्तरीय है और इस विस्तार से इसकी वैश्विक अपील का पता चलता है. उन्होंने कहा कि “भारत में नए कैंपस खोलने से अधिक युवा लोगों को यूके की शिक्षा का लाभ मिलेगा, साथ ही हमारे विश्वविद्यालयों के लिए वास्तविक लाभ पैदा होगा. जैसे ही हम अपनी अंतरराष्ट्रीय शिक्षा रणनीति तैयार कर रहे हैं, ये नए कैंपस हमारे उद्देश्य का संकेत हैं: दीर्घकालिक साझेदारी का निर्माण जो दोनों देशों के लिए विकास, नवाचार और अवसर प्रदान करे.”
भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के कैंपस स्थापित करने और संचालन से संबंधित नियमावली 2023 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा घोषित की गई थी. यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथैम्पटन इस नियमावली के तहत भारत में पहला विदेशी विश्वविद्यालय बनकर आया.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंकेस्टर और यूनिवर्सिटी ऑफ़ सरे के कैंपस न केवल भारतीय छात्रों को विश्व-स्तरीय शिक्षा का अवसर देंगे, बल्कि भारत और यूके के बीच शैक्षणिक और आर्थिक संबंधों को भी मजबूत करेंगे. इन कैंपसों के जरिए छात्र अपनी मातृभूमि में रहते हुए यूके की डिग्री हासिल कर सकेंगे, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करियर बनाने के बेहतर अवसर मिलेंगे.
विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में तेजी से बढ़ती संख्या में छात्रों के कारण इन विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलना एक रणनीतिक कदम है. 2035 तक भारत में उच्च शिक्षा में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या 70 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, जिससे स्थानीय और विदेशी संस्थानों दोनों के लिए अवसर पैदा होंगे.
ब्रिटिश उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए भारत का विस्तार आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. अनुमान है कि इन कैंपसों से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में करोड़ों पाउंड का योगदान होगा. इसके साथ ही भारत में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे, क्योंकि इन संस्थानों को संचालन के लिए स्थानीय कर्मचारियों की आवश्यकता होगी.
प्रधानमंत्री स्टारमर और प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर दोनों देशों के बीच शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार में सहयोग को आगे बढ़ाने पर भी चर्चा की. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा के माध्यम से युवा पीढ़ी को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना दोनों देशों की प्राथमिकता होनी चाहिए.
विशेषज्ञों का मानना है कि यूके विश्वविद्यालयों का यह कदम भारतीय छात्रों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में विकल्पों का विस्तार करेगा और उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक कौशल विकसित करने में मदद करेगा. भारतीय छात्रों को अब अपने देश में रहकर भी विश्व-स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा, जिससे उन्हें विदेश जाने के समय होने वाले आर्थिक और सामाजिक तनाव से भी बचाव मिलेगा.
इस कदम से न केवल शिक्षा का क्षेत्र प्रभावित होगा, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंधों को भी मजबूती मिलेगी. यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंकेस्टर और यूनिवर्सिटी ऑफ़ सरे के कैंपस भारत में शिक्षा के क्षेत्र में नए अध्याय की शुरुआत करेंगे और लाखों छात्रों के सपनों को साकार करने में मदद करेंगे.
भारत में इन कैंपसों के संचालन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा. निर्माण, संचालन और प्रशासनिक गतिविधियों के लिए रोजगार सृजन होगा. इसके अलावा, भारतीय छात्रों और उनके परिवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च से स्थानीय व्यवसायों को भी लाभ मिलेगा.
साथ ही, यह पहल दोनों देशों के बीच शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. इससे दोनों देशों के शोध, नवाचार और तकनीकी आदान-प्रदान को भी बढ़ावा मिलेगा. भविष्य में इससे भारत और यूके के विश्वविद्यालयों के बीच साझेदारी और छात्र आदान-प्रदान के अवसर भी बढ़ेंगे.
इस प्रकार, यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंकेस्टर और यूनिवर्सिटी ऑफ़ सरे का भारत में कैंपस खोलना शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम है. यह कदम भारतीय छात्रों के लिए वैश्विक स्तर की शिक्षा को सुलभ बनाएगा और दोनों देशों के बीच शिक्षा, अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती प्रदान करेगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

