इजरायल-हमास संघर्ष में बंधक बनाए गए नेपाली छात्र बिपिन जोशी को हमास ने मृत घोषित किया

इजरायल-हमास संघर्ष में बंधक बनाए गए नेपाली छात्र बिपिन जोशी को हमास ने मृत घोषित किया

प्रेषित समय :22:36:38 PM / Mon, Oct 13th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. इजरायल और हमास के बीच जारी संघर्ष के संदर्भ में दो विरोधाभासी खबरें सामने आईं जिसने एक तरफ उम्मीद जगाई तो दूसरी तरफ गहरे दुख का माहौल बना दिया. जहां एक ओर हमास के सैन्य विंग अल-कसम ब्रिगेड ने एक बयान जारी कर नेपाल के बिपिन जोशी समेत चार मृत बंधकों के नामों की घोषणा की, वहीं दूसरी ओर संघर्ष विराम समझौते के तहत 20 जीवित बंधकों को रिहा भी किया गया. बिपिन जोशी की कहानी इस पूरे क्रूर संघर्ष की सबसे मार्मिक गाथाओं में से एक है, क्योंकि वह गाजा में बंधक बनाए गए एकमात्र गैर-इजरायली नागरिक थे, जिनके जीवित होने की उम्मीद अब तक की जा रही थी.

नेपाल के मूल निवासी बिपिन जोशी हमला होने से महज एक महीने पहले ही नेपाल से इजरायल पहुंचे थे. वह एक छात्र विनिमय कार्यक्रम (Student Exchange Program) के तहत गाजा सीमा पर स्थित किबुत्ज अलुमिम में कृषि का अध्ययन और काम करने आए थे. 7 अक्टूबर को हुए हमास के बर्बर हमले में इस कार्यक्रम के तहत आए 17 नेपाली छात्रों में से 10 को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. बिपिन उस दिन एक बम शेल्टर में छिपे थे, और अपनी जान बचाने की कोशिश में उन्होंने कई लाइव ग्रेनेड को शेल्टर से बाहर फेंक दिया था. पीटीआई के अनुसार, इसी दौरान वह घायल हो गए और उन्हें हमास के लड़ाकों ने बंधक बना लिया था. उनकी गिरफ्तारी के बाद, उन्हें गाजा ले जाया गया और वह महीनों तक वहां की सुरंगों में कैद रहे. अब जब अल-कसम ब्रिगेड ने चार मृत बंधकों के नाम जारी किए हैं, जिनमें बिपिन जोशी का नाम भी शामिल है, तो उनके परिवार और पूरे नेपाल में शोक की लहर दौड़ गई है. हमास ने कहा है कि इन चार मृत बंधकों के शव सोमवार को सौंप दिए जाएंगे, हालांकि इसके लिए कोई निश्चित समय नहीं बताया गया है.

बिपिन की 17 वर्षीय बहन पुष्पा जोशी ने अपने भाई की रिहाई के लिए अथक प्रयास किए. वह नियमित रूप से अपनी याचिकाएं और आशाएं लेकर अधिकारियों से मिलने के लिए आठ घंटे की बस यात्रा करती थीं. उनकी दृढ़ता और विश्वास ने पूरे नेपाल और इजरायल के बंधक परिवारों को प्रेरित किया. अगस्त में, बिपिन जोशी का परिवार उनकी रिहाई की मांग को लेकर तेल अवीव के 'होस्टेज स्क्वायर' में चल रहे प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए इजरायल भी गया था. उन्होंने इजरायल के राष्ट्रपति इसहाक हर्जोग से भी मुलाकात की थी, और अपने बेटे की रिहाई के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से गुहार लगाई थी. पिछले सप्ताह ही, जोशी के परिवार ने एक वीडियो फुटेज जारी किया था, जिसे नवंबर 2023 के आसपास बंधक बनाए जाने की स्थिति में दबाव डालकर फिल्माया गया था. इस फुटेज ने एक बार फिर बिपिन की सुरक्षित वापसी की उम्मीदें जगाई थीं, लेकिन आज की घोषणा ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. बिपिन जोशी को शुरू से ही इकलौता गैर-इजरायली बंधक माना जाता था, जिसके जीवित होने की संभावना थी, और उनके हिंदू होने के कारण भी उनकी पहचान इस अंतरराष्ट्रीय त्रासदी में अलग से स्थापित हुई.

इस बीच, आज सोमवार 13 अक्टूबर को एक आशा भरी खबर भी आई. हमास और इजरायल के बीच हुए नए संघर्ष विराम समझौते के तहत 20 बंधकों को रिहा कर दिया गया. इन बंधकों को रेड क्रॉस की हिरासत में सौंपा गया, जिसके बाद उन्हें इजरायल लाया गया. इस समझौते में सभी जीवित बंधकों की रिहाई और मृत बंधकों के शवों को सौंपना शामिल था. आज रिहा किए गए 20 बंधकों के नाम जारी किए गए हैं, जिनमें गाजा में लंबे समय से कैद रहे कई इजरायली नागरिक शामिल हैं. रिहा होने वालों में गाज़ा सीमा के पास किबुत्ज से पकड़े गए कई नागरिक हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं, जो बंधक और लापता परिवार मंच द्वारा जारी की गई छवियों के कॉम्बो में भी दिखाई देते हैं: गैली बर्मन और ज़िव बर्मन (दोनों 28), ओमरी मिरान (48), माटन एंगरेस्ट (22), ईटन मोर (25), एलोन ओहेल (24), गाय गिलबोआ-दलाल (24), एल्काना बोहबोट (36), रोम ब्रास्लाव्स्की (21), निमरोड कोहेन (21), एरियल कूनियो (28), डेविड कूनियो (35), इवियतार डेविड (24), मैक्सिम हरकिन (37), ईटन हॉर्न (38), सेगेव कल्फोन (27), बार कूपरस्टीन (23), योसेफ-चाइम ओहाना (25), अविनातन ओर (32), और माटन ज़ंगौकर (25). ये सभी वे चेहरे हैं जो महीनों से बंधक संकट का प्रतीक बने हुए थे, और इनकी वापसी ने इनके परिवारों को राहत की सांस दी है.

बिपिन जोशी का नाम भी उन 25 बंधकों की छवि कॉम्बो में शामिल था जो रिहाई की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन उनकी रिहाई जीवित रूप में नहीं हो पाई. उनकी दुखद मौत की खबर ने इस रिहाई के मौके पर भी एक उदासी की छाया डाल दी है. यह घटनाक्रम न केवल बंधक संकट की जटिलता को दर्शाता है बल्कि यह भी बताता है कि इस संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्य भी क्रूरता का शिकार हुए हैं. अब जबकि अल-कसम ब्रिगेड ने शव सौंपने की घोषणा की है, तो बिपिन जोशी का परिवार अपने बेटे के पार्थिव शरीर की वापसी का इंतजार कर रहा है ताकि नेपाल में उनके गृह नगर में उन्हें अंतिम विदाई दी जा सके. बिपिन जोशी की कहानी युद्ध की विभीषिका में एक मासूम छात्र के सपने के टूटने और एक परिवार की उम्मीदों के बिखरने का प्रतीक बन गई है,

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-