छिंदवाड़ा में 24 मासूमों की मौत पर नौकरशाही की निर्लज्ज चुप्पी! स्वास्थ्य प्रमुख सचिव, पूर्व कलेक्टर और एसडीएम की क्रूर उदासीनता ने मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता को किया शर्मसार!

छिंदवाड़ा में 24 मासूमों की मौत पर नौकरशाही की निर्लज्ज चुप्पी!

प्रेषित समय :23:01:20 PM / Wed, Oct 15th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

विशेष संवाददाता 

जबलपुर: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और बैतूल में जहरीली कफ सिरप 'कोल्ड्रिफ' से 24 निर्दोष बच्चों की मौत का हृदय विदारक कांड अब महज एक त्रासदी नहीं, बल्कि प्रशासनिक हत्या का खुला प्रमाण बन चुका है। यह सामूहिक जनसंहार एक साल बाद भी प्रदेश की नौकरशाही की घोर उदासीनता और निष्क्रियता का नग्न प्रदर्शन कर रहा है। जहां एक ओर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव दो बार घटनास्थल का दौरा कर अपनी संवेदनशीलता और न्याय दिलाने की प्रतिबद्धता दिखा चुके हैं, वहीं ठीक इसके विपरीत, स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव, तत्कालीन कलेक्टर शीलेंद्र सिंह, और क्षेत्र के अनुविभागीय अधिकारी (एसडीएम) जैसे जिम्मेदार अधिकारी बच्चों की लाशों पर बेशर्मी से चुप्पी साधे बैठे हैं। यह सवाल अब चीख रहा है: आखिर कब तक नौकरशाही बच्चों की लाशों पर चुप्पी साधे बैठेगी?

24 मासूम जिंदगियों के चले जाने के बावजूद, प्रशासनिक निष्क्रियता का आलम यह है कि आज तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी पर गैर-इरादतन हत्या (बीएनएस धारा 105) का मुकदमा तक दर्ज नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की व्यक्तिगत संवेदनशीलता उल्लेखनीय है-उन्होंने पीड़ितों से मुलाकात की, व्यक्तिगत रूप से जांच की समीक्षा की, और बार-बार कहा कि “किसी भी दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा।” लेकिन मुख्यमंत्री की इस तत्परता को नौकरशाही ने पूरी तरह से ठेंगा दिखाया है।

 स्वास्थ्य प्रमुख सचिव संदीप यादव का आचरण नौकरशाही की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। जिस विभाग की लापरवाही से यह त्रासदी हुई, उसके प्रमुख यादव न तो घटनास्थल गए, न ही किसी सार्वजनिक बयान में जिम्मेदारी स्वीकार की, और सूत्रों के अनुसार, उन्होंने इस पूरे प्रकरण को “स्थानीय प्रशासन की गलती” बताकर अपने विभाग की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की शर्मनाक कोशिश की। 24 बच्चों की मौत को मात्र एक 'स्थानीय चूक' बताकर खामोश बैठना और अपनी तथा स्वास्थ्य मंत्री की इस त्रासदी से 'मुक्ति' घोषित करना क्या बीएनएस की धारा 105 के तहत घोर अपराध नहीं है? प्रशासनिक गलियारों में यह तीखा सवाल गूंज रहा है: जब प्रदेश का मुखिया न्याय के लिए दौड़ रहा है, तो स्वास्थ्य का मुखिया अपनी जिम्मेदारी से भाग क्यों रहा है?

इस जनसंहार की जड़ तत्कालीन कलेक्टर शीलेंद्र सिंह की शुरुआती आपराधिक लापरवाही में है। रिपोर्ट्स चीख-चीख कर बता रही हैं कि सातवीं मौत की जानकारी मिलने के बाद भी, कलेक्टर सिंह ने जहरीली सिरप 'कोल्ड्रिफ' के स्टॉक को जब्त करने, जांच के लिए नमूने भेजने और सार्वजनिक चेतावनी जारी करने में 15 दिनों की गंभीर और अक्षम्य देरी की। इस देरी ने 17 और मासूम जिंदगियों को मौत के मुंह में धकेल दिया। इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि कलेक्टर ने खुद स्वीकार किया कि उन्हें इस दौरान "राजनीतिक दबाव वाले 150 से अधिक कॉल्स" मिले थे। क्या जन सुरक्षा से बड़ा कोई "फोन कॉल" हो सकता है? क्या एक कलेक्टर की प्राथमिकता जनता की जान होनी चाहिए या राजनीतिक आदेश? यह लापरवाही केवल प्रशासनिक सुस्ती नहीं है, यह मानवीय अपराध है जिस पर आज तक कार्रवाई नहीं हुई है!

यही उदासीनता अनुविभागीय अधिकारी  के स्तर पर भी साफ दिखी। जब जिले के स्वास्थ्य केंद्रों में बच्चे तड़पकर मर रहे थे, तब स्थानीय स्तर पर आपात समीक्षा बैठकें बुलाना, दवा वितरण पर रोक लगाना, और अस्पतालों की निगरानी करना सीधे SDM की जिम्मेदारी थी। लेकिन उनकी ओर से न कोई सक्रियता दिखी, न ही किसी कार्रवाई का आदेश। यह निष्क्रियता साबित करती है कि जमीनी स्तर का प्रशासन पूरी तरह सोया हुआ था और प्रशासनिक चेतना पूरी तरह मर चुकी थी।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस त्रासदी को सिर्फ “दवा की गलती” नहीं, बल्कि “प्रशासनिक हत्या” की तरह देखा, और यही कारण है कि वे बार-बार कहते रहे कि “बच्चों की मौत प्रणाली की असफलता है।” लेकिन इस स्पष्ट और कठोर संदेश के बावजूद, प्रमुख सचिव संदीप यादव ने न तो घटनास्थल जाकर पीड़ितों के आँसू देखे, न ही किसी उच्चस्तरीय जांच समिति का नेतृत्व किया। उनकी इस निर्लज्ज खामोशी ने मुख्यमंत्री के प्रयासों को कमजोर किया है।

आज, जब स्थानीय लोग और पीड़ित परिवार न्याय की मांग कर रहे हैं, तो यह दुखद है कि प्रशासनिक जवाबदेही अभी तक तय नहीं हो सकी है। बीएनएस धारा 105 के तहत गैर-इरादतन हत्या का मामला इन तीनों अधिकारियों- प्रमुख सचिव संदीप यादव, तत्कालीन कलेक्टर शीलेंद्र सिंह और अनुविभागीय अधिकारी (एसडीएम) के खिलाफ तत्काल दर्ज होना चाहिए। इन तीनों स्तरों की लापरवाही ने मिलकर इस जनसंहार को जन्म दिया है।

क्या मध्य प्रदेश की नौकरशाही वास्तव में इतनी शक्तिशाली हो चुकी है कि 24 मासूमों की लाशें भी उसकी नींद नहीं तोड़ पा रही हैं? अब समय है कि मुख्यमंत्री अपने ही शब्दों को अटूट कार्रवाई में बदलें। इन अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्यवाही शुरू की जाए, ताकि यह संदेश जाए कि राज्य की संवेदना अब भी जिंदा है और नौकरशाही की बेफिक्री को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। क्योंकि अगर आज भी यह तंत्र नहीं जागा, तो कल फिर किसी 'कोल्ड्रिफ' जैसी दवा से किसी और जिले में बच्चों की मौत होगी, और हम फिर वही सवाल पूछेंगे: "कब तक?"आज जरूरत है कार्रवाई की। मुख्यमंत्री को अब अपने ही शब्दों को अमल में बदलना होगा। प्रमुख सचिव, पूर्व कलेक्टर और अनुविभागीय अधिकारी पर गैर-इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज कर यह संदेश देना होगा कि राज्य की संवेदना अब भी जीवित है। क्योंकि अगर यह तंत्र आज नहीं जागा, तो कल किसी और जिले में कोई और ‘कोल्ड्रिफ’ फिर मासूमों की सांसें छीन लेगी।और तब, एक बार फिर यही सवाल गूंजेगा -“कब तक नौकरशाही बच्चों की लाशों पर चुप्पी साधे बैठेगी?”

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-