बीकानेर के गांवों में अंधेरा एक इंतज़ार है न कि सुविधा

बीकानेर के गांवों में अंधेरा एक इंतज़ार है न कि सुविधा

प्रेषित समय :19:35:13 PM / Thu, Oct 16th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अनिता, लूणकरणसर. बीकानेर के लूणकरणसर ब्लॉक के ग्रामीण क्षेत्रों में हर शाम के साथ जो सन्नाटा उतरता है, वह केवल दिन ढलने का संकेत नहीं होता, बल्कि यह इस बात की भी आशंका होती है कि बिजली कभी भी जा सकती है. यह अचानक बुझ जाने वाला बल्ब और बंद हो जाने वाला पंखा इस पूरे इलाके के लाखों लोगों के लिए एक कड़वी और दैनिक हकीकत बन चुका है. लूणकरणसर के ग्रामीणों के लिए बिजली अब कोई बुनियादी अधिकार या सुविधा नहीं रही, बल्कि यह एक अनिश्चित "इंतज़ार" बन गई है. यह अंधेरा केवल रात का नहीं, बल्कि यहाँ के जीवन की हर दिशा में फैल चुका है, जिसका गहरा असर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, महिलाओं के घरेलू कार्य, किसानों की आजीविका और सबसे महत्वपूर्ण, लोगों की सेहत पर पड़ रहा है.

बिजली कटौती का सबसे गंभीर और बहुआयामी प्रभाव महिलाओं और किशोरियों पर पड़ता है. पारंपरिक रूप से घर के भीतर का संपूर्ण बोझ उन्हीं के कंधों पर होता है. भीषण गर्मी की शामों में, जब लूणकरणसर की हवाएँ झुलसा देने वाली होती हैं, बंद पंखों और बुझी लाइटों के बीच घर की घुटन बढ़ जाती है. रसोई में अंधेरे में खाना बनाना, मोबाइल की रोशनी में पानी भरना और बच्चों की देखभाल करना एक दुर्दम्य संघर्ष बन जाता है. इस दौरान बच्चों का रोना और बुजुर्गों की बेचैनी एक सामान्य दृश्य बन जाती है. किशोरियाँ, जो स्कूल से लौटकर अपने भविष्य को संवारने के लिए शाम को पढ़ने बैठना चाहती हैं, उन्हें टॉर्च या मोमबत्ती की हल्की, अस्थिर लौ में अपनी आँखों पर अत्यधिक ज़ोर डालते हुए किताबों पर झुकना पड़ता है. कई बार अंधेरा उनके लिए असुरक्षा की भावना भी पैदा करता है, जिससे उनकी घर से बाहर निकलने की आज़ादी और सीमित हो जाती है. यह अंधेरा उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डालता है, जहाँ पढ़ाई में रुकावट और सुरक्षा की चिंता उन्हें दोहरी थकान देती है.

इस क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था को बिजली कटौती का सबसे बड़ा आर्थिक झटका लगता है. किसान अपनी फसलों की सिंचाई के लिए मुख्य रूप से बिजली से चलने वाली मोटरों पर निर्भर रहते हैं, जो बिजली के अभाव में अक्सर बंद रहती हैं. कई किसानों को रात के गहरे अंधेरे में खेतों में जागते हुए बिजली आने का इंतज़ार करना पड़ता है. किसानों का दर्द यह है कि विशेषकर गर्मियों और सूखे के मौसम में पानी की अनुपलब्धता के कारण उनकी फसलें सूख जाती हैं या समय पर सिंचाई न होने से उत्पादन घट जाता है. इससे खेती की लागत और चिंता दोनों बढ़ जाती हैं. कुछ संपन्न किसानों ने सौर पंप या बैटरी सिस्टम का सहारा लिया है, लेकिन यह महंगा समाधान हर किसान की पहुँच से बाहर है, जिससे कृषि क्षेत्र में आर्थिक असमानता भी बढ़ रही है.

लूणकरणसर के स्वास्थ्य केंद्रों में भी यह समस्या कम विकट नहीं है. बिजली गुल होने से कई बार जीवन रक्षक उपकरणों, टीकाकरण या दवाओं को ठंडा रखने के लिए जरूरी फ्रिज और रेफ्रिजरेटर का संचालन बाधित हो जाता है. रात में किसी आपातकालीन या प्रसव के दौरान अंधेरा छा जाने पर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मियों को टॉर्च या मोबाइल फोन की रोशनी का सहारा लेना पड़ता है. यह स्थिति उस मानवीय असमानता को उजागर करती है, जिसमें एक बुनियादी सुविधा के अभाव से ग्रामीणों का स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन-गुणवत्ता सीधे तौर पर प्रभावित होती है.

राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति की यह स्थिति एक बड़ा विरोधाभास दिखाती है. राज्य सरकार के प्रयासों से लगभग सभी गाँवों में बिजली का कनेक्शन तो पहुँच चुका है, लेकिन बिजली की निरंतर उपलब्धता अभी भी एक चुनौती है. 2024 के एक अध्ययन के अनुसार, राज्य के लगभग 30 प्रतिशत ग्रामीण घरों को प्रतिदिन 12 घंटे से कम बिजली मिलती है, और कई बार शिकायत के बावजूद बिजली बहाल होने में छह घंटे से अधिक का समय लगता है. वोल्टेज में बार-बार उतार-चढ़ाव एक और समस्या है जो उपकरणों को खराब कर देती है. यह अंतर स्पष्ट करता है कि बिजली तक पहुँच और बिजली की उपलब्धता के बीच अभी भी एक गहरी खाई मौजूद है.

इन तमाम अंधेरों के बावजूद, लूणकरणसर के लोग अपनी उम्मीद का दिया बुझने नहीं दे रहे हैं. कई परिवारों ने अब सोलर लैंप और छोटे इन्वर्टर का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. कुछ गाँवों में स्थानीय और सामुदायिक प्रयासों के तहत स्कूलों और आंगनवाड़ियों में सौर पैनल लगाए गए हैं. ये छोटे-छोटे प्रयास इस बात का प्रमाण हैं कि ग्रामीण समुदाय केवल समस्या से जूझ नहीं रहा है, बल्कि अपने स्तर पर समाधान की दिशा में बढ़ रहा है. राज्य में चल रही प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) जैसी सौर ऊर्जा योजनाएँ ग्रामीण किसानों के लिए एक नई राह खोल रही हैं, जिनसे खेती और घरेलू ज़रूरतों के लिए स्थायी ऊर्जा उपलब्ध हो सकती है.

लूणकरणसर के लोग जानते हैं कि हर रात के बाद सुबह आती है. वे इस विश्वास पर कायम हैं कि शायद एक दिन, उनके गाँव में भी यह सुबह बिना कटौती के, स्थायी रोशनी लेकर आएगी. तब तक, वे अपने धैर्य और हिम्मत के उजाले से अंधेरे को मात दे रहे हैं. किशोरियाँ टॉर्च की रोशनी में अपने भविष्य को गढ़ती हैं, महिलाएँ मुश्किलों में भी घर को संभालती हैं, और किसान बिजली का इंतज़ार करते हुए भी अपनी धरती से मोह नहीं छोड़ते. यह लड़ाई केवल बिजली के तारों की नहीं है, बल्कि इंसानी इच्छाशक्ति की है, जहाँ हर अंधेरा किसी नई रोशनी की चाह लेकर आता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-