- डॉ. सत्यवान सौरभ
हरियाणा के हिसार ज़िले का छोटा-सा गाँव पेटवाड़ आज पूरे देश में गर्व और प्रेरणा का प्रतीक बन गया है. इस गाँव की मिट्टी ने वह रत्न दिया है जिसने मेहनत, सादगी, ईमानदारी और निष्ठा के बल पर वकालत से लेकर देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक की यात्रा पूरी की — जस्टिस सूर्यकांत, जो अब भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) बने हैं. यह उपलब्धि केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस हरियाणवी संस्कृति, उस परिवार और उस शिक्षा की है जिसने अपने संस्कारों से न्याय, सेवा और समर्पण की भावना को जन्म दिया.
जस्टिस सूर्यकांत का जीवन किसी प्रेरक कथा से कम नहीं. चार भाई-बहनों (कमला देवी, ऋषिकांत,देवकांत, शिवकांत,सूर्यकांत) में सबसे छोटे सूर्यकांत ने बचपन से ही मेहनत, अध्ययन और संयम को अपने जीवन का आधार बना लिया था. उनके पिता पंडित मदन गोपाल जी एक साहित्यप्रेमी और नैतिक मूल्यों वाले व्यक्ति थे. वे अपने बच्चों को हमेशा शिक्षा और ईमानदारी का पाठ पढ़ाते थे. उनके जीवन का बड़ा हिस्सा लोगों को सही राह दिखाने और समाज में नैतिकता की मशाल जलाए रखने में बीता. पंडित मदन गोपाल जी के जीवन के संस्कारों का ही परिणाम है कि उनके पुत्र सूर्यकांत ने न केवल अपने परिवार का नाम रोशन किया, बल्कि पूरे हरियाणा और देश को गौरवान्वित किया.
गाँव पेटवाड़ की सादगी, खेतों की मिट्टी की खुशबू, और ग्रामीण जीवन की कठिनाइयाँ शायद वही प्रेरणास्रोत बनीं जिनसे सूर्यकांत ने अपनी राह तय की. गाँव से निकलकर उन्होंने अपनी शिक्षा और वकालत की यात्रा शुरू की. यह आसान सफर नहीं था — न साधन, न सुविधा — लेकिन था अटूट विश्वास और कर्मनिष्ठा. शुरुआती दिनों में उन्होंने सामान्य परिस्थितियों में रहकर अध्ययन किया और धीरे-धीरे अपने ज्ञान और तर्कशक्ति से सबका ध्यान खींचा.
1984 में सूर्यकांत ने वकालत के क्षेत्र में कदम रखा. उन्होंने हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट में वकालत करते हुए न केवल अनेक महत्वपूर्ण मामलों को सुलझाया बल्कि गरीबों और वंचितों के पक्ष में अपनी आवाज़ बुलंद की. उनकी पहचान एक संवेदनशील, निष्पक्ष और गहराई से सोचने वाले अधिवक्ता के रूप में बनी. बाद में जब वे न्यायिक सेवा में आए तो उन्होंने न्यायालय को केवल निर्णय का स्थान नहीं, बल्कि न्याय और मानवीय मूल्यों का मंदिर माना.
उनकी कार्यशैली में सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उन्होंने कभी भी अपने पद को प्रतिष्ठा का साधन नहीं बनाया, बल्कि सेवा का माध्यम माना. चाहे मामला गरीब किसान का हो, या किसी छोटे व्यापारी का, उन्होंने हर बार अपने निर्णयों में न्याय और संवेदना का संतुलन बनाए रखा. यही कारण रहा कि वे धीरे-धीरे न्यायिक जगत में एक विशिष्ट पहचान बनाते चले गए.
2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया. यह वह क्षण था जब हरियाणा के लोगों की आँखें गर्व से भर आईं. गाँव पेटवाड़ में उस दिन से लेकर आज तक उनके नाम से एक आत्मीयता जुड़ी है. जब यह समाचार आया कि जस्टिस सूर्यकांत अब देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश होंगे, तो गाँव के हर आँगन में दीपक जले, लोग एक-दूसरे को बधाइयाँ देने पहुँचे, और बुज़ुर्गों की आँखों से गर्व के आँसू छलक पड़े.
पंडित मदन गोपाल जी भले आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके संस्कार और उनके लिखे सैकड़ों पत्र आज भी परिवार में सहेज कर रखे गए हैं. वे पत्र सूर्यकांत जी के लिए केवल शब्द नहीं, बल्कि प्रेरणा के दीपक हैं. जिन प्रेम, अनुशासन और आत्मीयता से पंडित जी अपने बेटे को हर सप्ताह पत्र लिखते थे, वही आज उनकी आत्मा को शांति देता होगा कि उनका बेटा उसी मार्ग पर चला — सत्य, ईमान और न्याय का.
जस्टिस सूर्यकांत का यह उत्थान केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है; यह उस विश्वास का प्रमाण है कि भारत का कोई भी नौजवान, चाहे वह किसी छोटे गाँव से ही क्यों न हो, अगर उसके भीतर लगन और नैतिकता है तो वह किसी भी शिखर तक पहुँच सकता है. उनके जीवन से यह सिखने योग्य है कि सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए केवल प्रतिभा ही नहीं, बल्कि धैर्य, विनम्रता और अनुशासन की भी आवश्यकता होती है.
गाँव पेटवाड़ के लोग बताते हैं कि सूर्यकांत जी हमेशा अपने गाँव और जड़ों से जुड़े रहे. वे जब भी समय निकाल पाते, गाँव आते, बुज़ुर्गों से मिलते, बच्चों को पढ़ाई की प्रेरणा देते. उनका कहना था कि शिक्षा ही वह ताक़त है जो किसी को भी अंधकार से प्रकाश तक ले जा सकती है. उनकी इस सोच ने न केवल गाँव में, बल्कि पूरे क्षेत्र में युवाओं के भीतर आत्मविश्वास जगाया.
आज जब वे देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर पहुँचे हैं, तो उनके गाँव के लोग यह कहते नहीं थकते कि यह “हम सबकी जीत” है. वास्तव में यह उस भारत की जीत है जहाँ अब प्रतिभा का मूल्यांकन जन्म या संपत्ति से नहीं, बल्कि कर्म और निष्ठा से होता है.
उनके साथियों का कहना है कि जस्टिस सूर्यकांत बेहद शांत, सरल और सहृदय व्यक्ति हैं. वे अपनी बात को दृढ़ता से रखते हैं लेकिन कभी भी अहंकार से नहीं. सुप्रीम कोर्ट में उनके निर्णयों में यह स्पष्ट दिखता है कि वे केवल कानून की भाषा नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना की भाषा भी समझते हैं. न्यायालय के भीतर वे जितने सख्त हैं, बाहर उतने ही विनम्र और सहज. यही गुण उन्हें आम जनता के बीच प्रिय बनाते हैं.
उनकी पत्नी और परिवार ने भी हर कठिन दौर में उनका साथ दिया. गाँव के लोगों का कहना है कि सूर्यकांत जी के परिवार में संस्कार और आपसी प्रेम आज भी वैसा ही है जैसा पंडित मदन गोपाल जी के समय था. शायद यही वजह है कि सफलता के इतने ऊँचे पद पर पहुँचने के बावजूद उन्होंने कभी अपने भीतर के इंसान को मरने नहीं दिया.
जस्टिस सूर्यकांत की सफलता हमें यह भी सिखाती है कि सच्ची उपलब्धि वही है जो समाज को प्रेरित करे, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ता दिखाए. जब कोई व्यक्ति अपनी मेहनत से समाज में सम्मान अर्जित करता है, तो उसकी यात्रा केवल व्यक्तिगत नहीं रहती — वह एक पीढ़ी की आकांक्षाओं का प्रतीक बन जाती है.
हरियाणा जैसे राज्य में जहाँ शिक्षा और न्याय के क्षेत्र में अभी भी कई सुधारों की गुंजाइश है, वहाँ से देश का मुख्य न्यायाधीश बनना एक ऐतिहासिक संदेश देता है — कि परिवर्तन गाँव से भी शुरू हो सकता है. पेटवाड़ जैसे छोटे गाँव से उठकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचना यह दिखाता है कि भारत की मिट्टी में आज भी ऐसे बीज हैं जो अगर सही मार्गदर्शन और परिश्रम पाएँ तो पूरे देश को रोशन कर सकते हैं.
आज जब पूरा देश जस्टिस सूर्यकांत को मुख्य न्यायाधीश पद की बधाई दे रहा है, तो यह केवल एक व्यक्ति के लिए तालियाँ नहीं हैं, बल्कि उस हर माँ-बाप के सपनों के लिए भी हैं जो अपने बच्चों को ईमानदारी से बढ़ा रहे हैं, उस हर गाँव के लिए हैं जो अपने बेटों को मेहनत का मूल्य सिखाता है.
सूर्यकांत जी का यह उदय उस “नवभारत” की पहचान है जहाँ न्यायपालिका न केवल कानून का प्रहरी है बल्कि सामाजिक न्याय की आत्मा भी है. उनसे उम्मीद है कि वे अपने कार्यकाल में न्याय प्रणाली को और अधिक पारदर्शी, सरल और जनहितकारी बनाएँगे. उनकी सोच और अनुभव निश्चित रूप से देश की न्याय व्यवस्था को एक नई दिशा देंगे.
गाँव पेटवाड़ के उस छोटे से आँगन से लेकर सुप्रीम कोर्ट के विशाल भवन तक की यह यात्रा इस बात का प्रमाण है कि जो व्यक्ति अपने मूल्यों से कभी समझौता नहीं करता, उसे मंज़िलें खुद बुलाती हैं.
जस्टिस सूर्यकांत आज न केवल अपने गाँव के बेटे हैं, बल्कि हर उस भारतीय के प्रेरणास्रोत हैं जो यह मानता है कि सत्य और परिश्रम से बढ़कर कोई धर्म नहीं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

