पटना/नई दिल्ली :बिहार में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा और आगामी विधानसभा चुनाव 2025 एक अभूतपूर्व राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य तैयार कर रहे हैं। छठ का महापर्व 25 से 28 अक्टूबर तक चलेगा, जबकि विधानसभा चुनाव के मुख्य चरण 6 और 11 नवंबर को निर्धारित हैं। छठ पूजा और मतदान के बीच 8 से 10 दिन का छोटा अंतराल है, जिसने बिहार के राजनीतिक दलों, खासकर बीजेपी (NDA) और आरजेडी (महागठबंधन) के सामने, एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है: प्रवासी मतदाताओं को छठ पूजा के बाद भी राज्य में रोके रखना।
प्रवासी वोटरों का राजनीतिक गणित
बिहार में 48 लाख से अधिक प्रवासी वोटर हैं, जो हर साल छठ महापर्व मनाने के लिए दिल्ली, मुंबई, गुजरात और विदेशों से अपने गाँव लौटते हैं। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, इनमें से लगभग 45.78 लाख घरेलू प्रवासी हैं। पारंपरिक रूप से, छठ के ठीक बाद ये प्रवासी अपनी कर्मभूमि के लिए रवाना हो जाते हैं। यदि ये मतदाता, जिनका मतदान व्यवहार निर्णायक माना जाता है, वापस चले जाते हैं, तो बिहार में वोटिंग प्रतिशत में 5 से 7 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है, जिसका सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ेगा। यही कारण है कि इस बार चुनाव आयोग और राजनीतिक दल दोनों ही मतदान प्रतिशत को बेहतर बनाने के लिए सक्रिय हैं।
रेलवे की विशेष तैयारी, सियासत का बड़ा संदेश
प्रवासी मतदाताओं की सुविधा के लिए, रेलवे ने छठ पूजा और चुनाव के बीच यात्रा के लिए विशेष ट्रेनों की संख्या में भारी इज़ाफ़ा किया है। ईस्ट सेंट्रल रेलवे (ईसीआर) ने 12,000 से अधिक स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है। इसके साथ ही, पटना जंक्शन, दानापुर, और राजेंद्र नगर जैसे प्रमुख स्टेशनों पर भीड़ प्रबंधन के लिए आरपीएफ की अतिरिक्त कंपनियाँ और क्विक रिस्पांस टीमें (QRTs) तैनात की गई हैं। यह प्रशासनिक पहल न केवल धार्मिक भावनाओं का सम्मान करती है, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी देती है कि सरकार (यानी मौजूदा एनडीए गठबंधन) मतदाताओं की सुविधा के लिए प्रतिबद्ध है।
बीजेपी और आरजेडी का प्रवासी प्लान
प्रवासी मतदाताओं को चुनाव तक रोकने के लिए बीजेपी और आरजेडी दोनों ने बूथ-स्तरीय और भावनात्मक अभियान शुरू किए हैं:
-
बीजेपी (NDA) का प्लान: बीजेपी ने प्रदेश के सभी जिलों में बूथ-स्तरीय अभियान शुरू किया है। पार्टी कार्यकर्ता घर-घर जाकर प्रवासी लोगों से व्यक्तिगत रूप से आग्रह कर रहे हैं कि वे मतदान समाप्त होने तक बिहार में ही रुकें। यह रणनीति छठ के पवित्र माहौल और परिवार के भावनात्मक बंधन का उपयोग करते हुए मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करने पर केंद्रित है।
-
आरजेडी (महागठबंधन) का फोकस: विपक्षी महागठबंधन भी सामाजिक और आर्थिक दुर्दशा पर जोर दे रहा है, जिसका सामना ये प्रवासी मजदूर अन्य राज्यों में करते हैं। आरजेडी का प्रयास है कि प्रवासी मतदाताओं को यह महसूस कराया जाए कि उनका एक वोट राज्य में बदलाव ला सकता है, जिससे उन्हें रोजी-रोटी के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा।
पर्व बनाम चुनाव: नैतिकता की कसौटी
छठ पूजा, अपने अनुष्ठानों की शुद्धता और अटूट आस्था के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इस बार त्योहार के हर घाट, प्रसाद और यात्रा पर राजनीतिक गलियारों की नज़र है। नेताओं का छठ घाटों पर जाना, व्रतियों की मदद करना, और यहाँ तक कि प्रसाद वितरण में हिस्सा लेना, धार्मिक सम्मान और वोट बैंक को साधने का एक नाजुक मिश्रण बन गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जो पार्टी प्रवासी वोटरों को यह विश्वास दिलाने में सफल रहेगी कि उनका मतदान बहुमूल्य है और वे कुछ और दिन रुककर "अपने भविष्य" के लिए वोट करें, उसे इस चुनाव में निर्णायक बढ़त मिल सकती है। इस प्रकार, छठ पर्व इस बार सिर्फ आस्था का महापर्व नहीं, बल्कि बिहार के चुनावी भविष्य की आधारशिला भी बन गया है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

